अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 49
दे॒वा व॒शां पर्य॑वद॒न्न नो॑ऽदा॒दिति॑ हीडि॒ताः। ए॒ताभि॑रृ॒ग्भिर्भे॒दं तस्मा॒द्वै स परा॑भवत् ॥
स्वर सहित पद पाठदे॒वा: । व॒शाम् । परि॑ । अ॒व॒द॒न् । न । न॒: । अ॒दा॒त् । इति॑ । ही॒डि॒ता: । ॒ए॒ताभि॑: । ऋ॒क्ऽभि: । भे॒दम् । तस्मा॑त् । वै । स: । परा॑ । अ॒भ॒व॒त् ॥४.४९॥
स्वर रहित मन्त्र
देवा वशां पर्यवदन्न नोऽदादिति हीडिताः। एताभिरृग्भिर्भेदं तस्माद्वै स पराभवत् ॥
स्वर रहित पद पाठदेवा: । वशाम् । परि । अवदन् । न । न: । अदात् । इति । हीडिता: । एताभि: । ऋक्ऽभि: । भेदम् । तस्मात् । वै । स: । परा । अभवत् ॥४.४९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।
पदार्थ
(हीडिताः) क्रोधित (देवाः) विद्वान् लोग (एताभिः) इन (ऋग्भिः) स्तुतियोग्य वेदवाणियों द्वारा (भेदम्) फूट डालनेवाले से (परि) घिर कर (अवदन्) बोले−“(वशाम्) कामनायोग्य [वेदवाणी] (नः) हमको (न अदात्) उसने नहीं दी है, (इति) सो (तस्मात् वै) इससे ही (सः) वह (परा अभवत्) हारा है” ॥४९॥
भावार्थ
विद्वान् लोग निश्चय कर देते हैं कि वेदवाणी का रोकनेवाला पुरुष अज्ञान बढ़ने से क्लेश में पड़ता है ॥४९॥
टिप्पणी
४९−(देवाः) विद्वांसः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (परि) परीत्य (अवदन्) अब्रुवन् (न) निषेधे (नः) अस्मभ्यम् (अदात्) दत्तवान् (इति) एवम् (हीडिताः) म० २८। क्रुद्धाः (एताभिः) (ऋग्भिः) स्तुत्याभिर्वेदवाणीभिः (भेदम्) भिदिर् विदारणे−अच्। भेदकम्। कुटिलम् (तस्मात्) कारणात् (वै) (एव) (सः) भेदकः (पराभवत्) पराजितोऽभवत् ॥
विषय
भेद
पदार्थ
१.(न:) = हमारे लिए इसने (न अदात्) = इस वेदवाणी को नहीं दिया (इति) = इस कारण (हीडिता:) = क्रुद्ध हुए-हुए (देवा:) = देवों ने (वशाम्) = वेदवाणी से (एताभिः ऋग्भिः) = इन ऋचाओं से इसके (भेदम्) = पार्थक्य को (पर्यवदन्) = किया। देववृत्ति के व्यक्तियों ने गोपति से वशा की याचना की। उसने याचना की उपेक्षा करके वेदवाणी को नहीं दिया। देवों को यह ठीक नहीं लगा। देवों ने वशा से ही कहा कि इस गोपति का ऋचाओं से पार्थक्य हो जाए। २. (तस्माद्) = उस कारण से (स:) = गोपति (चै) = निश्चय से (पराभवत्) = पराभूत हो गया। वस्तुत: वेदज्ञान का प्रसार आवश्यक ही है। इसका प्रसार न करनेवाला 'भेद' है-इस वाणी का विदारण करनेवाला है। इस विदारण करने से इसका स्वयं विदारण हो जाता है।
भावार्थ
हम वेदज्ञान प्राप्त करें। इस वेदज्ञान को देववृत्ति के व्यक्तियों को देनेवाले बनें। इसका अदान हमारा ही विदारण करनेवाला होगा।
भाषार्थ
राजन्य ने (नः) हमें (न अदात्) भीमा वेदवाणी नहीं दी– (इति) इस से (हीडिताः) अनादृत या क्रुद्ध हुए (देवाः) देवो ने (वशाम्) वेदवाणी को (पर्यवदन्) मानो शिकायत की। और (एताभिः ऋग्भिः) इन ऋचाओं द्वारा देवों ने (भेदम्) भेदनीति का अवलम्ब किया, (तस्मात्) उस भेद से (सः) वह राजन्य (पराभवत्) पराभूत हुआ।
टिप्पणी
[वशाम, ऋग्भिः=देवों ने वशा को शिकायत की और ऋचाओं द्वारा भेदनीति अपनाई, - इस से भी सूचित होता है कि वशा और ऋचाएँ अभिन्न हैं, एकात्मरूप हैं। नीति चार प्रकार की होती है, साम, दाम, दण्ड और भेद। देवों ने भेदनीति को अपना कर राजा और प्रजा में भेद अर्थात् फूट पैदा कर राजन्य का पराभव किया। भेद के लिये देवों ने उन ऋचाओं का आश्रय लिया जिन में कि भेदनीति का वर्णन है]।
विषय
‘वशा’ शक्ति का वर्णन।
भावार्थ
(नः) हमें स्वामी (न अदात्) इस वशा को प्रदान नहीं करता (इति) इस कारण से (हीडिताः) क्रुद्ध हुए (देवाः) देवगण (एताभिः) इन (ऋग्भिः) ऋचाओं से (भेदम्) भेद को (परि-अवदन्) मन्त्रणा करते हैं (तस्मात्) इसलिये (वै) निश्चय से (सः) वह दधाता स्वामी (पराभवत्) पराजय को प्राप्त होता है।
टिप्पणी
(प्र०) ‘वशामुपवदर’ (द्वि०) ‘सनो राजत हेडितः’, (तृ०) ‘भेदस्य’ इति पैप्प० सं०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Vasha
Meaning
Frustrated and angry, the divine sages protested to Vasha with Rk verses saying, that the ruler denied them the gift of mother knowledge and freedom of speech. Then arose dissension and for that reason the ruler lost the dominion.
Translation
The gods talked about the cow in wrath, saying: he hath not given it to us; with these verses (they talked about) Bheda; therefore indeed he perished.
Translation
The Devas, men of learning, enraged with that the master of cow does not give her to them. say, with these verses they create Bheda. Consequently the with holder of cow finds him frustrated.
Translation
Learned persons say, ‘He who considers the laudable Vedic knowledge as causing disunion, and Dose not bestow it on us, suffers defeat humiliation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४९−(देवाः) विद्वांसः (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (परि) परीत्य (अवदन्) अब्रुवन् (न) निषेधे (नः) अस्मभ्यम् (अदात्) दत्तवान् (इति) एवम् (हीडिताः) म० २८। क्रुद्धाः (एताभिः) (ऋग्भिः) स्तुत्याभिर्वेदवाणीभिः (भेदम्) भिदिर् विदारणे−अच्। भेदकम्। कुटिलम् (तस्मात्) कारणात् (वै) (एव) (सः) भेदकः (पराभवत्) पराजितोऽभवत् ॥
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