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अथर्ववेद के काण्ड - 12 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 37
    ऋषिः - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त
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    प्र॑वी॒यमा॑ना चरति क्रु॒द्धा गोप॑तये व॒शा। वे॒हतं॑ मा॒ मन्य॑मानो मृ॒त्योः पाशे॑षु बध्यताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒ऽवी॒यमा॑ना । च॒र॒ति॒ । क्रु॒ध्दा । गोऽप॑तये । व॒शा । वे॒हत॑म्। मा॒ । मन्य॑मान: । मृ॒त्यो: । पाशे॑षु । ब॒ध्य॒ता॒म् ॥४.३७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रवीयमाना चरति क्रुद्धा गोपतये वशा। वेहतं मा मन्यमानो मृत्योः पाशेषु बध्यताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रऽवीयमाना । चरति । क्रुध्दा । गोऽपतये । वशा । वेहतम्। मा । मन्यमान: । मृत्यो: । पाशेषु । बध्यताम् ॥४.३७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 37
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (प्रवीयमाना) फेंकी जाती हुई (वशा) वशा [कामनायोग्य वेदवाणी] (गोपतये) पृथिवीपालक [राजा] के लिये (क्रुद्धा) क्रुद्ध होकर (चरति) विचरती है। “(मा) मुझ को (वेहतम्) गर्भघातिनी स्त्री [के समान रोगिणी] (मन्यमानः) मानता हुआ [वह राजा] (मृत्योः) मृत्यु के (पाशेषु) फन्दों में (बध्यताम्) बाँधा जावे” ॥३७॥

    भावार्थ

    जिस राजा के राज्य में वेदवाणी प्रचार से रोकी जाती है, वह राजा अपने राज्यसहित अधर्म बढ़ने से नष्ट हो जाता है ॥३७॥

    टिप्पणी

    ३७−(प्रवीयमाना) वी गत्यसनादिषु−कर्मणि शानच्, असनं क्षेपणम्, प्रक्षिप्यमाणा (चरति) विचरति (क्रुद्धा) कुपिता (गोपतये) भूपालाय। राज्ञे (वशा) कमनीया वेदवाणी (वेहतम्) अ० ३।२३।१। संश्चत्तृपद्वेहत्। उ० २।८५। वि+हन हिंसागत्योः−अति। पृषोदरादिरूपम्। गर्भघातिनीस्त्रीतुल्यरोगिणीम् (मा) माम् (मन्यमानः) जानन् (मृत्योः) मरणस्य (पाशेषु) बन्धेषु (बध्यताम्) गृह्यताम् ॥

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    विषय

    वेदवाणी के निरादर का परिणाम

    पदार्थ

    १. यह वशा कमनीया वेदवाणी (प्रवीयमाना) = [वी असने] परे फेंकी जाती हुई (गो-पतये) = [गौ-भूमि] भूमिपति राजा के लिए (क्रुद्धा चरति) = क्रुद्ध हुई-हुई गति करती है। यदि राजा राष्ट्र में इस वेदवाणी का प्रचार नहीं करता तो वह इस वशा के कोप का भाजन होता है। २. (मा) = मुझे-वशा को (वेहतम्) = एक बन्ध्या गौ [a barren cow] (मन्यमानः) = मानता हुआ-मुझे निष्फल समझता हुआ यह राजा (मृत्योः पाशेषु) = मृत्यु के पाशों में (बध्यताम्) = बाँधा जाए।

    भावार्थ

    वेदवाणी का निरादर राष्ट्र की अवनति का, मृत्यु [परतन्त्रता] का कारण बनता है।

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    भाषार्थ

    (प्रवीयमाना) गर्भवती (वशा) वशा (गोपतये) गोपति के लिये (क्रुद्धा) क्रुद्ध हुई सी (चरति) विचरती है। गोपति जोकि (मा) मुझे (वेहतम्) गर्भघातिनी (मन्यमानः) मानता है वह (मृत्योः) मृत्यु के (पाशेषु) फन्दों में (बध्यताम्) वान्धा जाय।

    टिप्पणी

    [मन्त्र ३५ के अभिप्राय के आधार पर मन्त्र ३७ की निम्नलिखित व्याख्या प्रतीत होती है:- कविता शैली में वेदवाणी कहती हैं कि पृथिवीपति मुझ गर्भवती को गर्भघातिनी न समझे। गर्भघातिनी गृहस्थ-जीवन के लिये अनुपयोगी है। इसी प्रकार यदि पृथिवीपति मुझ वेदवाणी को राष्ट्रिय जीवन के लिये अनुपयोगी समझता है तो वह जान ले कि मेरे पेट में जो सत्यनियमों के गर्भ विद्यमान हैं उन से लाभ न लेने पर पृथिवीपति अन्ततोगत्वा मृत्यु का ग्रास बनेगा। राष्ट्र में वेद प्रतिपादित समुन्नति के उपायों का आश्रय न लेने से प्रजा दुःखी हो कर पृथिवीपति का विनाश कर देंगी]।

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    विषय

    ‘वशा’ शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (प्रवीयमाना) नाना सन्तति उत्पन्न करने का कर्म करती हुई, सांड से लगती हुई अर्थात् उत्पादक वीर्यवान् पुरुष, परमेश्वर की संगिनी होकर (वशा) ‘वशा’ (गोपतये) गोपति, स्वामी राजा के प्रति (क्रुद्धा चरति) बड़ी क्रुद्ध होकर विचरती है कि (मा) मुझ को (वेहतम्) गर्भघातिनी, वन्ध्या (मन्यमानः) मानता हुआ पुरुष (मृत्योः) मृत्यु के (पाशेषु) पाशों में (बध्यताम्) बांधा जाय।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vasha

    Meaning

    Mother Vasha like a pregnant cow, abundant in the gifts of food for body, mind and soul for all, goes about furious with the ruler who believes that she is barren and utterly unproductive. “Cursed be the man who cries me foul and calls me barren,” she protests, “he deserves to be tied down in the chains of Yama, the dispenser of ultimate justice.”

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    Translation

    Being impregnated, the cow goes about angry at her master: thinking me barren, let him be bound in the fetters of death.

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    Translation

    The cow, having been pregnant wanders enraged against her master and tells (that) the man deeming her barren must be bound in snares of death.

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    Translation

    Vedic knowledge is full of anger for the king who restricts its propagation. Let the king who deems me barren and fruitless be bound in snares of Death.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३७−(प्रवीयमाना) वी गत्यसनादिषु−कर्मणि शानच्, असनं क्षेपणम्, प्रक्षिप्यमाणा (चरति) विचरति (क्रुद्धा) कुपिता (गोपतये) भूपालाय। राज्ञे (वशा) कमनीया वेदवाणी (वेहतम्) अ० ३।२३।१। संश्चत्तृपद्वेहत्। उ० २।८५। वि+हन हिंसागत्योः−अति। पृषोदरादिरूपम्। गर्भघातिनीस्त्रीतुल्यरोगिणीम् (मा) माम् (मन्यमानः) जानन् (मृत्योः) मरणस्य (पाशेषु) बन्धेषु (बध्यताम्) गृह्यताम् ॥

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