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अथर्ववेद के काण्ड - 12 के सूक्त 4 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 50
    ऋषिः - कश्यपः देवता - वशा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - वशा गौ सूक्त
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    उ॒तैनां॑ भे॒दो नाद॑दाद्व॒शामिन्द्रे॑ण याचि॒तः। तस्मा॒त्तं दे॒वा आग॒सोऽवृ॑श्चन्नहमुत्त॒रे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । ए॒ना॒म् । भे॒द: । न । अ॒द॒दा॒त् । व॒शाम् । इन्द्रे॑ण । या॒चि॒त: । तस्मा॑त् । तम् । दे॒वा: । आग॑स: । अवृ॑श्चन् । अ॒ह॒म्ऽउ॒त्त॒रे ॥४.५०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उतैनां भेदो नाददाद्वशामिन्द्रेण याचितः। तस्मात्तं देवा आगसोऽवृश्चन्नहमुत्तरे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत । एनाम् । भेद: । न । अददात् । वशाम् । इन्द्रेण । याचित: । तस्मात् । तम् । देवा: । आगस: । अवृश्चन् । अहम्ऽउत्तरे ॥४.५०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 4; मन्त्र » 50
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    वेदवाणी के प्रकाश करने के श्रेष्ठ गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (उत) और (इन्द्रेण) ऐश्वर्यवान् [ब्रह्मचारी] से (याचितः) याचना किये हुए (भेदः) फूट डालनेवाले ने (एनाम्) इस (वशाम्) [कामनायोग्य वेदवाणी] को (न अददात्) नहीं दिया। (देवाः) विद्वानों ने (तस्मात् आगसः) उस पाप से (अहमुत्तरे) संग्राम में [जहाँ अपनी-अपनी बड़ाई के लिये झगड़ते हैं] (तम्) उस [वेदशत्रु] को (अवृश्चन्) छिन्न-भिन्न किया है ॥५०॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य वेदविद्या के दान को रोकता है, विद्वान् लोग उस जगत् के हानिकारक को नष्ट कर देते हैं ॥५०॥

    टिप्पणी

    ५०−(उत) अपि च (एनम्) (भेदः) म० ४९। भेदकः। कुटिलः (न) निषेधे (अददात्) दत्तवान् (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता ब्रह्मचारिणा (याचितः) प्रार्थितः (तम्) (देवाः) विद्वांसः (आगसः) पापात् (अवृश्चन्) छिन्नभिन्नं कृतवन्तः (अहमुत्तरे) अ० ४।२२।१। अहम्+उत्तरे। अहमुत्तरो भवामि अहमुत्तरो भवामीति कथनं यत्र। परस्परोत्कर्षाय योधानां धावनकर्मणि। महासंग्रामे ॥

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    विषय

    पराजय

    पदार्थ

    १. (उत) = और (इन्द्रेण) = एक जितेन्द्रिय ब्रह्मचारी [पुरुष] से (याचित:) = प्रार्थना किया गया भी यह (भेद:) = वेदवाणी का विदारण करनेवाल गोपति (एनां वशाम्) = इस वेदवाणी को (न अददात्) = नहीं देता था। इन्द्र ने भेद से वशा को देने की प्रार्थना की, परन्तु भेद ने इन्द्र के लिए इसे नहीं दिया, (तस्मात् आगस:) = उस अपराध से (देवा:) = देवों ने (अहमुत्तरे) = संग्राम में उस भेद को (अवृश्चन्) = छिन्न कर दिया। यह गोपति वेदवाणी को इन्द्र के लिए न देने के अपराध से संग्राम में पराजित हो गया।

    भावार्थ

    वेदवाणी को पात्रों में न प्राप्त करानेवाला जीवन संग्राम में पराजित हो जाता है।

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    भाषार्थ

    (इन्द्रेण) इन्द्र द्वारा (याचितः) प्रार्भित हुए राजन्य ने (एनाम्, वशाम्) इस काम्या और क्रान्तिमती वेदवाणी पर अधिकार (न, अददात्) न दिया, (उत) तथा (भेदः) भेदनीति ने भी न दिया, तो (तस्मात् एनसः) उस अपराध के कारण (देवाः) देवों ने (तम्) उस राजन्य को (अहमुत्तरे) युद्ध में (अवृश्चन्) काट डाला।

    टिप्पणी

    [भेदनीति से यदि सफलता न मिले तो दण्डनीति को अपना कर सफल होना चाहिये। इन्द्रेण-"इन्द्रश्च सम्राट्, वरुणश्च राजा” (यजु० ८।३७), अर्थात् इन्द्र है सम्राट् और वरुण है राजा अर्थात् माण्डलिक राजा। राजन्य, माण्डलिक-राजा प्रतीत होता है जोकि सम्राट् से नीचे पद का है। जब सम्राट् द्वारा प्रार्थना करने पर भी राजन्य ने वशा का अधिकार ब्रह्मवेत्ताओं को न दिया, और भेदनीति भी असफल हुई तब सम्राट् की स्वीकृति पा कर देवों ने राजन्य को काट डाला। अहमुत्तरे=युद्ध में; जिस में परस्पर लड़ने वाले दोनों पक्षों के नेता यह भाव रखते हैं कि युद्ध में मैं श्रेष्ठ हूं, मैं श्रेष्ठ हूं- इस प्रकार अहमहमिकया युद्ध लड़ते हैं]।

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    विषय

    ‘वशा’ शक्ति का वर्णन।

    भावार्थ

    (उत) और (एनाम्) इस (वशां) वशा को लक्ष्य करके (इन्द्रेण) इन्द्र द्वारा (याचितः भेदः) याचना किया गया ‘भेद’ भी (वशाम्) वशा को (न अददात्) न प्रदान करे (तस्मात्) इस कारण (तं) उस अदाता पुरुष को (आगसः) अपराध के कारण (अहमुत्तरे) युद्ध में (अवृश्चन्) मार काट डालते हैं।

    टिप्पणी

    ‘उतैताम्’ इति कचित् पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः। मन्त्रोक्ता वशा देवता। वशा सूक्तम्। १-६, ८-१९, २१-३१, ३३-४१, ४३–५३ अनुष्टुभः, ७ भुरिग्, २० विराड्, ३३ उष्णिग्, बृहती गर्भा, ४२ बृहतीगर्भा। त्रिपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Vasha

    Meaning

    And Dissension too did not give the gift of mother knowledge and freedom of speech when Indra, divine seeker, asked for it. And for the reason of that sin of denial, the angry divines uprooted and threw out the misappropriator in the battle of pride and self¬ aggrandisement.

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    Translation

    And Bheda gave her not, when asked by Indra for the cow; for that offense the gods-cut him off in the contest for superiority.

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    Translation

    Bheda begged by Indra, the mighty ruler does not give this Vasha to him. In consequence of this sin the Devas kill him in war.

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    Translation

    When an enemy of the Vedas, does not impart this knowledge to a Brahmchari when he asks for it; in strife for victory learned destroy him for that sin of his.

    Footnote

    Griffith considers Bheda to be the name of a person. The word means disunion.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५०−(उत) अपि च (एनम्) (भेदः) म० ४९। भेदकः। कुटिलः (न) निषेधे (अददात्) दत्तवान् (वशाम्) कमनीयां वेदवाणीम् (इन्द्रेण) परमैश्वर्यवता ब्रह्मचारिणा (याचितः) प्रार्थितः (तम्) (देवाः) विद्वांसः (आगसः) पापात् (अवृश्चन्) छिन्नभिन्नं कृतवन्तः (अहमुत्तरे) अ० ४।२२।१। अहम्+उत्तरे। अहमुत्तरो भवामि अहमुत्तरो भवामीति कथनं यत्र। परस्परोत्कर्षाय योधानां धावनकर्मणि। महासंग्रामे ॥

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