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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 10
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    वृषा॑ पवस्व॒ धार॑या म॒रुत्व॑ते च मत्स॒रः । विश्वा॒ दधा॑न॒ ओज॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषा॑ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । म॒रुत्व॑ते । च॒ । म॒त्स॒रः । विश्वा॑ । दधा॑नः । ओज॑सा ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषा पवस्व धारया मरुत्वते च मत्सरः । विश्वा दधान ओजसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा । पवस्व । धारया । मरुत्वते । च । मत्सरः । विश्वा । दधानः । ओजसा ॥ ९.६५.१०

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 10
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 2; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे जगदीश्वर ! भवान् (वृषा) सर्वाभीष्टदातास्ति (धारया) स्वकीयानन्दवृष्ट्या (पवस्व) अस्मान् पवित्रय। (मरुत्वते) ज्ञानक्रियाकुशलानां विदुषां (मत्सरः) आमोददायकोऽस्ति। (च) अथ च (विश्वाः) सम्पूर्णानि लोकलोकान्तराणि (ओजसा) आत्मिकबलेन (दधानः) दधाति ॥१०॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! (वृषा) आप सब कामनाओं की वर्षा करनेवाले हैं। (धारया) आनन्द की वृष्टि से (पवस्व) हमको पवित्र करो। (मरुत्वते) ज्ञान और क्रियाकुशल विद्वानों के लिये (मत्सरः) आप आनन्दमय हैं (च) और (विश्वाः) सम्पूर्ण लोक-लोकान्तरों को (ओजसा) अपने आत्मिक बल से (दधानः) आप धारण किये हुए हो ॥१०॥

    भावार्थ

    परमात्मा आनन्दस्वरूप है, उसमें दुःख का लेश भी नहीं। उसके आनन्द को ज्ञानी तथा विज्ञानी कर्मयोगी और ज्ञानयोगी ही पा सकते हैं, अन्य नहीं ॥१०॥

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    विषय

    मरुत्वते च मत्सरः

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! तू (वृषा) = शक्तिशाली है व सब सुखों का वर्षण करनेवाला है। तू (धारया) = अपनी धारण शक्ति के साथ हमें (पवस्व) = प्राप्त हो। (च) = और तू (मरुत्वते) = प्राणसाधना करनेवाले के लिये (मत्सरः) = आनन्द का संचार करनेवाला है। [२] (ओजसा) = ओजस्विता के साथ (विश्वा) = सब धनों को (दधान:) = तू हमारे अन्दर धारण करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना के द्वारा सुरक्षित सोम आनन्द का संचार करनेवाला है ।

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    विषय

    देह में वीर्य के तुल्य बलवान् राष्ट्र में शासक के कर्त्तव्य। वह अपने से बड़े के शासन में रहे।

    भावार्थ

    हे (सोम) उत्तम शासक ! हे बलशालिन् ! (मत्सरः) सब को हर्ष देने वाला और (ओजसा) बल पराक्रम से देह में वीर्य धातुवत् (विश्वा दधानः) राष्ट्र के सब अंगों का धारण पोषण करता हुआ, (मरुत्वते) प्राणोंवत् बलवान् और विद्वान् पुरुषों के स्वामी, राजा के कार्य के लिये (धारया पवस्व) उसकी आज्ञा से कार्य में प्रवृत्त हो। (२) देह में वीर्य, धारक पोषक शक्ति से युक्त होकर देह में व्यापे। इति द्वितीयो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord of absolute abundance and creativity, sustainer of all worlds of existence by absolute power and grandeur, you are all bliss for the people of vibrancy, action and gratitude. Pray bring us showers of peace, purity and power for the good life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा आनंदस्वरूप आहे. त्यात दु:खाचा लेशही नाही. त्याचा आनंद विज्ञानी कर्मयोगी व ज्ञानयोगीच प्राप्त करू शकतात, इतर नव्हे. ॥१०॥

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