ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 26
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
प्र शु॒क्रासो॑ वयो॒जुवो॑ हिन्वा॒नासो॒ न सप्त॑यः । श्री॒णा॒ना अ॒प्सु मृ॑ञ्जत ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । शु॒क्रासः॑ । व॒यः॒ऽजुवः॑ । हि॒न्वा॒नासः॑ । न । सप्त॑यः । श्री॒णा॒नाः । अ॒प्ऽसु । मृ॒ञ्ज॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र शुक्रासो वयोजुवो हिन्वानासो न सप्तयः । श्रीणाना अप्सु मृञ्जत ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । शुक्रासः । वयःऽजुवः । हिन्वानासः । न । सप्तयः । श्रीणानाः । अप्ऽसु । मृञ्जत ॥ ९.६५.२६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 26
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(शुक्रासः) वीर्यवन्तः (वयोजुवः) अन्नादिपदार्थविद्याविदः (श्रीणानाः) विद्यया संस्कृता विद्वांसः ऋत्विग्भिः (मृञ्जत) स्वीक्रियन्ते (न) यथा (अप्सु हिन्वानासः) जलशुद्धानि (सप्तयः) इन्द्रियाणां सप्तद्वाराणि (प्र) शुभगुणान् ददते ॥१६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(शुक्रासः) वीर्यवाले (वयोजुवः) अन्नादि की विद्या जाननेवाले (श्रीणानाः) विद्या द्वारा संस्कृत हुए उक्त प्रकार के विद्वान् ऋत्विक् लोगों द्वारा (मृञ्जत) वरण किये जाते हैं। (न) जैसे कि (अप्सु हिन्वानासः) जलों में शुद्ध किये हुए (सप्तयः) इन्द्रियों के सात द्वार (प्र) शुभ गुणों को देते हैं ॥१६॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि हे जीवों ! जिस प्रकार ज्ञानेन्द्रिय के सप्तद्वार जल में शुद्ध किये हुए सुन्दर ज्ञान के साधन बनते हैं, इसी प्रकार यज्ञों में वर्णन किये हुए विद्वान् ज्ञान द्वारा तुम्हारे कल्याणकारी होते हैं ॥१६॥
विषय
शुक्रासः वयोजुवः
पदार्थ
[१] (शुक्रासः) = ज्ञानदीप्ति के कारणभूत (वयोजुवः) = आयुष्य को दीर्घकाल तक प्रेरित करनेवाले सोमकण श्(रीणाना:) = हमारी शक्तियों को परिपक्व करते हुए हैं। ये सोमकण (अप्सु) = कर्मों में (प्रमृञ्जत) = शुद्ध किये जाते हैं, कर्मों को करते रहने पर वासनाओं का आक्रमण नहीं होता । सो कर्मों में लगे रहना ही सोमकणों के शोधन का मार्ग है। [२] ये सोमकण (हिन्वानासः) = प्रेरित किये जाते हुए (सप्तयः न) = घोड़ों के समान हैं । जैसे वे घोड़े हमें लक्ष्य-स्थान पर पहुँचाते हैं, उसी प्रकार ये सोमकण भी हमें प्रभु रूप लक्ष्य स्थान पर पहुँचानेवाले होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम-शुद्धि का साधन कर्त्तव्यपरायणता है। शुद्ध सोम हमें ज्ञानदीप्त, दीर्घ जीवनवाला तथा लक्ष्य स्थान को प्राप्त करनेवाला बनाते हैं।
विषय
अभिषिक्तों का आकाश में नक्षत्रवत् प्रजाओं में स्थिति।
भावार्थ
(शुक्रासः) कान्तिमान्, दीप्तियुक्त तेजस्वी पुरुष (सप्तयः न हिन्वानासः) वेगवान् अश्वों के समान प्रेरित होते हुए, (श्रीणानाः) सेवा करते हुए या प्रतिष्ठित होते हुए (अप्सु) अन्तरिक्ष में तेजोमय पिण्डों के समान (प्र मृञ्जत) अच्छी प्रकार अभिषिक्त हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Pure and powerful, vital and vitalising, stimulated and stimulating, energised and energising, seasoned and cleansing, sanctified and sanctifying somas, natural and human powers, reflect in the actions and achievements of humanity like the seven rays of light, and they shine and enlighten the world to move on with its daily rounds.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की हे जीवांनो! ज्या प्रकारे ज्ञानेंद्रियांची सप्त द्वारे जलाने शुद्ध करून सुंदर ज्ञानाचे साधन बनतात त्याच प्रकारे विद्वान ज्ञानाद्वारे तुमचे कल्याण करतात. ॥२६।
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