ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 22
ये सोमा॑सः परा॒वति॒ ये अ॑र्वा॒वति॑ सुन्वि॒रे । ये वा॒दः श॑र्य॒णाव॑ति ॥
स्वर सहित पद पाठये । सोमा॑सः । प॒रा॒ऽवति॑ । ये । अ॒र्वा॒ऽवति॑ । सु॒न्वि॒रे । ये । वा॒ । अ॒दः । श॒र्य॒णाऽव॑ति ॥
स्वर रहित मन्त्र
ये सोमासः परावति ये अर्वावति सुन्विरे । ये वादः शर्यणावति ॥
स्वर रहित पद पाठये । सोमासः । पराऽवति । ये । अर्वाऽवति । सुन्विरे । ये । वा । अदः । शर्यणाऽवति ॥ ९.६५.२२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 22
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ सोमसंज्ञकस्येश्वरस्योपासकानां विदुषां गुणा वर्ण्यन्ते ।
पदार्थः
(ये सोमासः) सौम्यस्वभाववन्त इमे विद्वांसः (परावति) परब्रह्मशक्तौ (ये) ये (अर्वावति) प्रकृतिशक्तौ तथा (ये) ये (वा अदः शर्यणावति) संसारशक्तावस्यां (सुन्विरे) ये कुशलास्तान् परमेश्वरः पवित्रयतु ॥२१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब सोम नामक परमेश्वर की उपासना करनेवाले विद्वानों के गुणों का वर्णन करते हैं।
पदार्थ
(ये सोमासः) जो सौम्यस्वभाववाले विद्वान् (परावति) परब्रह्मरूप शक्ति में (ये) और जो (अर्वावति) प्रकृतिरूप शक्ति में (ये) जो (वा) और (अदः शर्यणावति) इस संसाररूप शक्ति में (सुन्विरे) निपुण किये गए हैं, इन सब विद्वानों को परमात्मा पवित्र करे ॥२१॥
भावार्थ
इस मन्त्र का यह तात्पर्य है कि परमात्मा सब प्रकार के विद्वानों को पवित्र करता है।
विषय
अर्वावति परावति-शर्यणावति
पदार्थ
[१] ये (सोमासः) = जो सोमकण हैं वे (परावति) = सुदूर द्युलोक के निमित्त, इस शरीर में मस्तिष्क ही द्युलोक है, उस मस्तिष्क के निमित्त (सुन्विरे) = उत्पन्न किये जाते हैं। सोम इस मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि का ईंधन बनते हैं। [२] (ये) = जो सोमकण हैं वे (अर्वावति) = इस समीप के पृथिवीलोक के निमित्त उत्पन्न किये जाते हैं। इन सोमकणों से ही शरीररूप पृथिवीलोक नीरोग होकर दृढ़ बनता है । [३] (ये वा) = या ये जो सोमकण हैं वे (अदः) = उस (शर्यणावति) [शर्यणो अन्तरिक्षदेशः द० १ । ८४ । १४] = जिसमें वासनाओं का हिंसन किया गया है, उस हृदयान्तरिक्ष के निमित्त उत्पन्न किये जाते हैं। इन सोमकणों के द्वारा हृदय में वासनाओं का संहार होकर पवित्रता का सम्पादन होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमकण मस्तिष्क को ज्ञानाग्रिदीप्त, शरीर को सुदृढ़ तथा हृदय को वासना संहारवाला बनाते हैं ।
विषय
नाना अभिषिक्तों के कर्त्तव्य। वे सब प्रजा के दुःख-निवारणार्थ ही हों। अध्यक्ष शासकों पर भी एक अति विद्वान् जमदग्नि पुरुष की नियुक्ति।
भावार्थ
(ये सोमासः) जो विद्वान् उत्तम शासक और शास्त्रज्ञ जन, (अर्वावति सुन्विरे) समीप के देश में अभिषिक्त वा स्नातक होते हैं और (ये परावति सुन्विरे) जो दूर देश में अभिषिक्त या स्नातक होते हैं और (ये वा) जो (शर्यणावति) हिंसाकारिणी, शस्त्रधारिणी सेना से युक्त प्रदेश या सेनापति आदि के मुख्य और गौण पदों पर अभिषिक्त होते हैं
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Whatever gifts of power and peace for humanity are created in the farthest nature or in this world of existence or in that unknown transcendent source of all that is in existence, all that, O Soma, lord of supreme power and unfathomable peace, bear and bring for us and our future generations.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात हे सांगितलेले आहे की परमात्मा सर्व सौम्यरूपाच्या, परब्रह्मात रत असणाऱ्या, प्रकृतिरूपी व संसाररूपी शक्तीत असणाऱ्या विद्वानांना पवित्र करतो. ॥२२॥
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