ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 12
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒या चि॒त्तो वि॒पानया॒ हरि॑: पवस्व॒ धार॑या । युजं॒ वाजे॑षु चोदय ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒या । चि॒त्तः । वि॒पा । अ॒नया॑ । हरिः॑ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । युज॑म् । वाजे॑षु । चो॒द॒य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अया चित्तो विपानया हरि: पवस्व धारया । युजं वाजेषु चोदय ॥
स्वर रहित पद पाठअया । चित्तः । विपा । अनया । हरिः । पवस्व । धारया । युजम् । वाजेषु । चोदय ॥ ९.६५.१२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 12
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे सर्वबलस्वायत्तकारिन् परमेश्वर ! भवान् (धारया) आनन्दवृष्ट्या (पवस्व) अस्मान् पवित्रयतु। या आनन्दवृष्टिः (चित्तः) अद्भुता। तथा (अया) कर्मशीलतादात्री अथ च (विपा) शुभकृत्येषु प्रेरयित्री वर्तते (अनया) एतादृश्या वृष्ट्या (पवस्व) अस्मान् पवित्रयतु (वाजेषु) यज्ञेषु (युजं) युक्तं मां (चोदय) शुभकर्मणि प्रेरयतु ॥१२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(हरिः) हे सम्पूर्ण बलों को स्वाधीन रखनेवाले परमात्मन् ! आप (धारया) आनन्द की वृष्टि से हमको (पवस्व) पवित्र करें, जो आनन्द की वृष्टि (चित्तः) अद्भुत है (अया) और कर्मशीलता देनेवाली है और (विपा) शुभकार्यों में प्रेरणा करनेवाली है (अनया) उससे (पवस्व) आप हमको पवित्र करें (वाजेषु) यज्ञों में (युजं) युक्त मुझको (चोदय) सत्कर्म की प्रेरणा करें ॥१२॥
भावार्थ
जो लोग सत्कर्मी बनने के लिये परमात्मा से प्रार्थना करते हैं, परमात्मा उन्हें अवश्यमेव शुभकर्मों में लगाता है ॥१२॥
विषय
अया - विपा [गतिशीलता व स्तुति]
पदार्थ
[१] शरीर में सुरक्षित सोम गतिशीलता का कारण बनता है और हमारी चित्तवृत्ति को प्रभु- प्रयण करता है। इसलिए मन्त्र में कहते हैं कि (अया) [अय गतौ ] = इस गतिशीलता से तथा (अनया) = इस विपा [विप् - praise] प्रभु के शंसन व स्तवन से (चित्तः) = जाना हुआ तू (हरिः) = सब बुराइयों का हरण करनेवाला होता हुआ (धारया पवस्व) = धारणशक्ति के साथ हमें प्राप्त हो । सोम की प्रसिद्धि यही है कि यह [क] हमें स्फूर्तिवाला बनाता है और [ख] हमें प्रभु के शंसन की वृत्तिवाला बनाता है। [२] हे सोम ! तू (युजम्) = अपने इस साथी इन्द्र को, जो निरन्तर सोमपान में प्रवृत्त है, (वाजेषु) = संग्रामों में (चोदय) = प्रेरित कर । एक जितेन्द्रिय पुरुष ही 'इन्द्र' है । यह इन्द्रियों को वश में करके सोम का पान करता है। इस सोम के रक्षण से शक्तिशाली बनकर अध्यात्म- संग्रामों में विजयी बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम (क) गतिशील में, (ख) प्रभुस्तवन की वृत्तिवाले हों, तथा अध्यात्म-संग्रामों में विजयी बनें। (ग)
विषय
वह अपने अधीनों को प्रेरित करे।
भावार्थ
(अया) इस (विपा) बुद्धि से (चित्तः) ज्ञानवान् और (हरिः) उत्तम संशय-दुःखों का नाशक होकर (अया धारया) इस प्रकार की वाणी, शक्ति या धारा गति से (वाजेषु) ज्ञान, ऐश्वर्य और संग्रामादि के अवसर पर (युजं) नियुक्त अधीन पुरुष, सहयोगी साथी को भी अश्ववत् (चोदय) चला, प्रेरित कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Invoked and moved by this earnest and vibrant adoration, pray bless us with this shower of purity, peace and bliss. You are the destroyer of want and suffering. Pray inspire, strengthen and fortify the friend, your instrument, in the battles of life.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक सत्कर्मी बनण्यासाठी परमात्म्याची प्रार्थना करतात परमात्मा त्यांना अवश्य शुभ कर्मात प्रेरित करतो. ॥१२॥
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