ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 13
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ न॑ इन्दो म॒हीमिषं॒ पव॑स्व वि॒श्वद॑र्शतः । अ॒स्मभ्यं॑ सोम गातु॒वित् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । म॒हीम् । इष॑म् । पव॑स्व । वि॒श्वऽद॑र्शतः । अ॒स्मभ्य॑म् । सो॒म॒ । गा॒तु॒ऽवित् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न इन्दो महीमिषं पवस्व विश्वदर्शतः । अस्मभ्यं सोम गातुवित् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । इन्दो इति । महीम् । इषम् । पवस्व । विश्वऽदर्शतः । अस्मभ्यम् । सोम । गातुऽवित् ॥ ९.६५.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) सर्वैश्वर्यसम्पन्नपरमात्मन् ! भवान् (विश्वदर्शतः) सकलसंसारदीपकोऽस्ति। अथ च (महीमिषं) समस्तैश्वर्यसम्पन्नोऽस्ति। (सोम) सर्वजनकपरमात्मन् ! भवान् (अस्मभ्यं) अस्माकं (गातुवित्) सर्वज्ञोऽस्ति (नः) अस्मान् (आ पवस्व) सर्वथा पवित्रयतु ॥१३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे सर्वप्रकाशक परमात्मन् ! आप (विश्वदर्शतः) सम्पूर्ण विश्व के प्रकाशक हैं और (महीमिषं) सर्वैश्वर्यसम्पन्न हैं। (सोम) हे सर्वोत्पादक परमात्मन् ! आप (अस्मभ्यं) हम लोगों के (गातुवित्) सम्पूर्ण ज्ञातव्य पदार्थों के ज्ञाता हैं, (नः) हमको (आ पवस्व) सब प्रकार से पवित्र करिए ॥१३॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि हे मनुष्यों ! तुमको अपनी पवित्रता की प्रार्थना केवल उसी देव से करनी चाहिये, जो सर्व ब्रह्माण्डों का ज्ञाता और सर्वोत्पादक है ॥१३॥
विषय
'विश्वदर्शत- गातुवित्' सोम
पदार्थ
[१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू (विश्वदर्शतः) = हमें सब वस्तुतत्त्वों का ज्ञान देनेवाला है । (नः) = हमारे लिये (महीं इषम्) = महनीय प्रभु-प्रेरणा को (आपवस्व) = सर्वथा प्राप्त करा । तेरे द्वारा निर्मल हृदय होकर हम प्रभु की प्रेरणा को सुननेवाले बनें। [२] (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये, हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (गातुवित्) = मार्ग का ज्ञान देनेवाली है। इसके रक्षण से ही बुद्धि सूक्ष्म विषयों का विवेक कर पाती है और हम निर्मल हृदय होकर हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा को सुन पाते हैं। इस प्रकार जीवन के मार्ग को हम देखते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें सब वस्तुतत्त्वों का ज्ञान देता है और मार्ग का दर्शन कराता है।
विषय
वह अपने अधीनों को प्रेरित करे।
भावार्थ
हे (इन्दो) तेजस्विन्! हे दयाशील ! हे जल-क्षरणशील मेघवत् शासक ! तू (विश्वदर्शतः) सब से देखने योग्य और सब को देखने वाला (महीम् इषं पवस्व) बड़ी भारी सेना वा शक्ति को प्राप्त कर, उसको सञ्चालित कर। (२) हे मेघ वा वायो वा सूर्य ! तू (इषं महीम् पवस्व) अन्न वा वृष्टि को भूमि की ओर प्रेरित कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥missing
इंग्लिश (1)
Meaning
Indu, lord of peace, purity and bliss, light of the world for universal humanity, bring us showers of peace and purity, food and energy, power and prosperity, and knowledge of the world in great abundance. O Soma, you are the absolute master of all the ways of the world and unfailing guide for us.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की हे माणसांनो! तुम्ही आपल्या पवित्रतेची प्रार्थना केवळ त्याच देवाला केली पाहिजे जो सर्व ब्रह्मांडाचा ज्ञाता व सर्वोत्पारक आहे. ॥१३॥
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