ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 17
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - ककुम्मतीगायत्री
स्वरः - षड्जः
आ न॑ इन्दो शत॒ग्विनं॒ गवां॒ पोषं॒ स्वश्व्य॑म् । वहा॒ भग॑त्तिमू॒तये॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । श॒त॒ऽग्विन॑म् । गवा॑म् । पोष॑म् । सु॒ऽअश्व्य॑म् । वह॑ । भग॑त्तिम् । ऊ॒तये॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न इन्दो शतग्विनं गवां पोषं स्वश्व्यम् । वहा भगत्तिमूतये ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । इन्दो इति । शतऽग्विनम् । गवाम् । पोषम् । सुऽअश्व्यम् । वह । भगत्तिम् । ऊतये ॥ ९.६५.१७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 17
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर ! (भगत्तिं) अस्मद्भक्तेः (ऊतये) रक्षार्थं (न आ वह) अस्मभ्यं प्राप्तो भवतु। अथ च (गवाम्) इन्द्रियाणां (शतग्विनं) सहस्रगुणां (पोषं) पुष्टिं तथा (स्वश्यं) गतिशीलां पुष्टिं मह्यं भवान् ददातु ॥१७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप ! (भगत्तिं) हमारी भक्ति की (ऊतये) रक्षा के लिये हे परमात्मन् ! (न आ वह) आप हमको प्राप्त हों और (गवाम्) इन्द्रियों की (शतग्विनम्) सहस्रगुणी (पोषं) पुष्टि (स्वश्यं) जो गतिशील है, ऐसी पुष्टि आप हमको दें ॥१७॥
भावार्थ
जो लोग परमात्मा की अनन्य भक्ति करते हैं, परमात्मा उनकी सब प्रकार से रक्षा करता है और उनकी इन्द्रियों को सहस्त्र प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न करता है अर्थात् ज्ञान-विज्ञानादि शक्तियों से उनकी सहस्त्र प्रकार की शक्तियें बढ़ जाती हैं। इसी का नाम इन्द्रियों की सहस्त्रशक्ति है ॥१७॥
विषय
ज्ञानेन्द्रियाँ - कर्मेन्द्रियाँ व ऐश्वर्य
पदार्थ
[१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! (नः) = हमारे लिये (शतग्विनम्) = शतवर्षपर्यन्त जानेवाले [शतंगच्छति ] (गवां पोषम्) = ज्ञानेन्द्रियों के पोषण का आवह प्राप्त करा । सोम के रक्षण से हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ सौ वर्ष तक सशक्त बनी रहें। [२] (स्वश्व्यम्) = [सु अश्व य] उत्तम कर्मेन्द्रियरूप अश्वों के समूह को [कर्मों में व्याप्त होनेवाली इन्द्रियों के समूह को ] प्राप्त करा । तथा (उतये) = हमारे रक्षण के लिये आवश्यक (भगत्तिम्) = [भग- दत्तिम्] ऐश्वर्य के दान को प्राप्त करा ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम शतवर्षपर्यन्त उत्तम ज्ञानेन्द्रियों, उत्तम कर्मेन्द्रियों व रक्षण के लिये आवश्यक ऐश्वर्य को प्राप्त कराता है। सोमरक्षणवाला पुरुष आवश्यक ऐश्वर्य को कमाता ही है ।
विषय
राजा से गौ आदि ऐश्वर्यों की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (नः) हमें (शतग्विनम्) सौ सौ गौओं या भूमियों के स्वामी, (गवां पोषम्) गौओं, बैलों, वाणियों और भूमियों को पुष्ट करने वाले (स्वश्व्यम्) उत्तम अश्वों के स्वामी को या धन को (आ वह) स्वयं धारण कर और हमें प्राप्त करा और (भगत्तिम्) ऐश्वर्य के दान को (ऊतये) हमारी रक्षा और समृद्धि के लिये (आ वह) प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indu, lord of joy, beauty and prosperity, bring us a hundredfold wealth and pleasure of divine service and dedication, rising prosperity of cows and horses, enlightenment and advancement, progress and achievement, all for peace and security.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक परमेश्वराची अनन्य भक्ती करतात. परमेश्वर त्यांचे सर्व प्रकारे रक्षण करतो व त्यांच्या इंद्रियांना सहस्र प्रकारच्या शक्तींनी संपन्न करतो अर्थात ज्ञान-विज्ञान इत्यादी शक्तींनी त्यांच्या हजारो प्रकारच्या शक्ती वाढतात. याचेच नाव इंद्रियांची सहस्रशक्ती आहे. ॥१७॥
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