ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 1
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
हि॒न्वन्ति॒ सूर॒मुस्र॑य॒: स्वसा॑रो जा॒मय॒स्पति॑म् । म॒हामिन्दुं॑ मही॒युव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठहि॒न्वन्ति॑ । सूर॑म् । उस्र॑यः । स्वसा॑रः । जा॒मयः॑ । पति॑म् । म॒हाम् । इन्दु॑म् । म॒ही॒युवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
हिन्वन्ति सूरमुस्रय: स्वसारो जामयस्पतिम् । महामिन्दुं महीयुव: ॥
स्वर रहित पद पाठहिन्वन्ति । सूरम् । उस्रयः । स्वसारः । जामयः । पतिम् । महाम् । इन्दुम् । महीयुवः ॥ ९.६५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनो ध्यानविषयत्वं निरूप्यते ।
पदार्थः
(पतिम्) सर्वरक्षकं तथा (महामिन्दुं) अतिप्रकाशकं (सूरम्) सुवति प्रेरयति कर्मणि लोकमिति सूरः परमात्मा तं जगदीश्वरं (स्वसारः) स्वयं सरन्तीति स्वसारो बुद्धिवृत्तयः तथा (जामयः) जायन्त्यविद्यां नाशयन्तीति जामयो ज्ञानरूपा बुद्धिवृत्तयः (उस्रयः) परमात्मविषयिण्यः (महीयुवः) ब्रह्मविषयिण्यो वृत्तयः (हिन्वन्ति) परमात्मनः साक्षात्कारं कुर्वन्ति ॥१॥
हिन्दी (3)
विषय
अब परमात्मा का ध्यानविषयत्व निरूपण करते हैं।
पदार्थ
(पतिम्) जो सबका रक्षक है तथा (महामिन्दुं) सर्वोपरि जो सर्वप्रकाशक हैं (सूरम्) ऐसे परमात्मा को (स्वसारः) बुद्धिवृत्तियें (जामयः) ज्ञानरूप बुद्धिवृत्तियें (उस्रयः) परमात्मा को विषय करनेवाली (महीयुवः) ब्रह्मविषयणी उक्त प्रकार की वृत्तियें (हिन्वन्ति) साक्षात्कार करती हैं ॥१॥
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करता है कि हे जीवो ! तुम जगज्जन्मादिहेतुभूत महाशक्ति को विषय करनेवाली संस्कृत बुद्धियों को उत्पन्न करो, ताकि इन्द्रियागोचर उस सूक्ष्मशक्ति का तुम ध्यान द्वारा साक्षात्कार कर सको ॥१॥
विषय
उस्त्रि-स्वसा-जामि-महीयु
पदार्थ
[१] (उस्त्रयः) = [उस्र - going] गतिशील, (स्व-सारः) = आत्मतत्त्व की ओर चलनेवाले, (जामयः) = अपने में सद्गुणों को जन्म देनेवाले लोग (सूरम्) = शक्ति-संचार द्वारा कर्मों में प्रेरित करनेवाले (पतिम्) = रोगकृमि विनाश द्वारा हमारा रक्षण करनेवाले सोम को (हिन्वन्ति) = शरीर में ही प्रेरित करते हैं। [२] (महीयुवः) = महनीय शरीर को अपने साथ जोड़ने की कामनावाले लोग (महाम्) = इस महान् (इन्दुम्) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम को अपने अन्दर प्रेरित करते हैं। इस सोम के द्वारा ही शरीर शक्तिशाली बनता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम का रक्षण करनेवाले 'उस्रि, स्वसृ, जामि व महीयु' होते हैं, गतिशील, आत्मतत्त्व की ओर चलनेवाले, सद्गुणों का विकास करनेवाले, महनीय शरीर की कामनावाले ।
विषय
पवमान सोम। वरणीय वर। कन्याओं को चन्द्रवत् आह्लादक, ऐश्वर्यवान् पुरुष को वरण करने का उपदेश।
भावार्थ
(उस्रयः) एकत्र निवास करने वाली, (स्वसारः) बहनों के समान परस्पर प्रेम से रहने वाली, (जामयः) सन्तान उत्पन्न करने योग्य कन्याएं (महीयुवः) मान, सत्कार, आदर की आकांक्षा करती हुई, (महाम्) गुणों में महान् (इन्दुम्) चन्द्रवत् आह्लादक, हृदय में प्रेम युक्त, और ऐश्वर्यवान् पुरुष को (पतिम्) पति रूप से (हिन्वन्ति) प्राप्त किया करें, उससे पति होने की प्रार्थना किया करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Just as lights of the dawn like loving sisters fore- run and herald and exalt the sun, so do the senses, mind and intelligence together in service of the great soul reveal the power and presence of the supreme lord of the universe, blissful father sustainer of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा उपदेश करतो की, हे जीवांनो! तुम्ही जग, जन्म इत्यादींचा हेतू असणाऱ्या महाशक्तीला विषय बनविणारी संस्कृत बुद्धी उत्पन्न करा. त्यामुळे तुम्ही इंद्रियगोचर त्या सूक्ष्म शक्तीचा ध्यानाद्वारे साक्षात्कार करू शकाल. ॥१॥
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