ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 25
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
पव॑ते हर्य॒तो हरि॑र्गृणा॒नो ज॒मद॑ग्निना । हि॒न्वा॒नो गोरधि॑ त्व॒चि ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑ते । ह॒र्य॒तः । हरिः॑ । गृ॒णा॒नः । ज॒मत्ऽअ॑ग्निना । हि॒न्वा॒नः । गोः । अधि॑ । त्व॒चि ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवते हर्यतो हरिर्गृणानो जमदग्निना । हिन्वानो गोरधि त्वचि ॥
स्वर रहित पद पाठपवते । हर्यतः । हरिः । गृणानः । जमत्ऽअग्निना । हिन्वानः । गोः । अधि । त्वचि ॥ ९.६५.२५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 25
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(हरिः) परमेश्वरः (हर्यतः) विदुषामभिलाषुकः (जमदग्निना) अन्तश्चक्षुषा (गृणानः) गृहीतः यः (अधि त्वचि) शरीरे (गोः) इन्द्रियाणां (हिन्वानः) निर्मातास्ति स जगदीश्वरः (पवते) ज्ञानद्वारास्मान् पवित्रयति ॥२५॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(हरिः) परमात्मा (हर्यतः) विद्वानों को चाहनेवाला (जमदग्निना) अन्तःचक्षु से (गृणानः) ग्रहण किया हुआ जो (अधि त्वचि) शरीर में (गोः) इन्द्रियों की (हिन्वानः) रचना करनेवाला है, वह (पवते) ज्ञान द्वारा हमको पवित्र करता है ॥२५॥
भावार्थ
इससे परमात्मा से इस बात की प्रार्थना की है कि आप सर्वोपरि विद्वान् उत्पन्न करके हमारा कल्याण करें ॥२५॥
विषय
'ज्ञानाग्नि व जाठराग्नि का रक्षक' सोम
पदार्थ
[१] (हर्यतः) = हमारे लिये दिव्यगुणों को प्राप्त कराने की कामना करता हुआ, (हरिः) = यह दुःखों का हरण करनेवाला सोम (गो:) = ज्ञान की वाणियों के (त्वचि अधि)[त्वच् cover ] = रक्षण के निमित्त रक्षक आवरण के निमित्त (हिन्वानः) = शरीर में प्रेरित किया जाता है। शरीर में प्रेरित हुआ- हुआ सोम इन ज्ञानों का रक्षण करता है, सोम के अभाव में ज्ञानाग्नि बुझ जाती है । [२] यह सोम (जमदग्निना) = खूब खानेवाली है जाठराग्नि जिसकी ऐसे पुरुष से, दीप्त जाठराग्निवाले पुरुष से (गृणानः) = स्तुति किया जाता हुआ (पवते) = शरीर में गतिवाला होता है। वस्तुतः सोमरक्षण से ही जाठराग्नि दीप्त रहती है । सोम-विनाश जाठराग्नि की मन्दता का कारण बनता है । और जाठराग्नि को दीप्त रखता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम ज्ञानाग्नि का रक्षक आवरण बनता है।
विषय
अभिषिक्तों का आकाश में नक्षत्रवत् प्रजाओं में स्थिति।
भावार्थ
(गोः त्वचि अधि) भूमि की पीठ पर अध्यक्ष रूप से (हिन्वानः) स्थापित होता हुआ (हर्यतः) तेजस्वी पुरुष (जमदग्निना गृणानः) अग्रणी, तेजस्वी पुरुषों को ज्ञान से उज्ज्वल करने वाले विद्वान् पुरुष द्वारा आदेश पाता हुआ (पवते) काम करता है। इति पञ्चमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Soma, lord of power, peace and bliss, saviour and sanctifier of heart and soul, destroyer of suffering, lover of all, adored and exalted by sages and scholars of vision and wisdom, flows and sanctifies life and, presiding over the body, energises and sanctifies the organs of perception, volition and decision.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराला प्रार्थना केलेली आहे की तू सर्वश्रेष्ठ विद्वान उत्पन्न करून आमचे कल्याण कर. ॥२५॥
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