ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 11
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तं त्वा॑ ध॒र्तार॑मो॒ण्यो॒३॒॑: पव॑मान स्व॒र्दृश॑म् । हि॒न्वे वाजे॑षु वा॒जिन॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । ध॒र्तार॑म् । ओ॒ण्योः॑ । पव॑मान । स्वः॒ऽदृश॑म् । हि॒न्वे । वाजे॑षु । वा॒जिन॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा धर्तारमोण्यो३: पवमान स्वर्दृशम् । हिन्वे वाजेषु वाजिनम् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । धर्तारम् । ओण्योः । पवमान । स्वःऽदृशम् । हिन्वे । वाजेषु । वाजिनम् ॥ ९.६५.११
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 11
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 1
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ओण्योः) द्युलोकस्य तथा पृथिवीलोकस्य (धर्तारं) धारणकर्तारं (तं त्वा) उक्तगुणसम्पन्नं (पवमान) सर्वपवितारं तथा (स्वर्दृशं) समस्तलोकलोकान्तरज्ञं (वाजिनम्) समस्तशक्तिसम्पन्नं भवन्तं (वाजेषु) यज्ञेषु (हिन्वे) वयमाह्वयामः ॥११॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ओण्योः) द्युलोक और पृथिवीलोक के (धर्तारं) धारण करनेवाले जो आप हैं, (तं त्वा) उक्त गुणसम्पन्न आपको (पवमान) जो सबको पवित्र करनेवाले और (स्वर्दृशं) जो सब लोक-लोकान्तरों के ज्ञाता हैं, ऐसे (वाजिनम्) सर्वशक्तिसम्पन्न आपको (वाजेषु) सब यज्ञों में (हिन्वे) हम लोग आह्वान करते हैं ॥११॥
भावार्थ
जो लोग योगयज्ञ, ध्यानयज्ञ, विज्ञानयज्ञ, संग्रामयज्ञ और ज्ञानयज्ञ इत्यादि सब यज्ञों में एकमात्र परमात्मा का आश्रयण करते हैं, वे लोग अवश्यमेव कृतकार्य होते हैं। तात्पर्य यह है कि परमात्मा की सहायता बिना किसी भी यज्ञ की पूर्ति नहीं होती, इसलिये मनुष्यों को चाहिये कि वे सदैव परमात्मा की सहायता लेकर अपने उद्देश्य की पूर्ति करें ॥११॥
विषय
वाजेषु वाजिनम्
पदार्थ
[१] हे (पवमान) = हमें पवित्र करनेवाले सोम ! (ओण्योः) = द्यावापृथिवी के मस्तिष्क व शरीर के (धर्तारम्) = धारण करनेवाले, (स्वर्दृशम्) = उस स्वयं देदीप्यमान ज्योति के दिखलानेवाले (तं त्वा) = उस तुझको (हिन्वे) = मैं अपने शरीर में प्रेरित करता हूँ। शरीर में व्याप्त हुआ हुआ सोम हमारे जीवन को पवित्र बनाता है, मस्तिष्क को ज्ञान से उज्ज्वल करता है और शरीर को दृढ़ बनाता है । अन्ततः यह हमें उस स्वयं देदीप्यमान ज्योति प्रभु का दर्श कराता है। [२] (वाजेषु) = संग्रामों में (वाजिनम्) = शक्तिशाली इस सोम को मैं शरीर में प्रेरित करता हूँ। इसी सोम ने रोगकृमियों से संग्राम करना है । इसी ने मन में उत्पन्न हो जानेवाले काम-क्रोध को विनष्ट करता है । अध्यात्म-संग्राम में यह सोमरक्षण ही हमें विजयी बनाता है।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर में सुरक्षित सोम [क] हमें पवित्र करता है, [ख] हमारे मस्तिष्क व शरीर का धारण करता है, [ग] हमें स्वयं देदीप्यमान ज्योति प्रभु का दर्शन कराता है, [घ] अध्यात्म- संग्रामों में विजयी बनाता है।
विषय
राजा को ऐश्वर्य के लिये प्रेरणा।
भावार्थ
(ओण्योः धर्त्तारम्) आकाश और भूमि वा सूर्य और पृथिवी दोनों को धारण करने वाले (स्व:-दृशम्) ज्ञान प्रकाश को दिखाने वाले, या सब के द्रष्टा, (वाजिनम्) बलशाली, ऐश्वर्यवान्, ज्ञानी (तं त्वा) उस तुझ को (वाजेषु) संग्रामों, ज्ञानों और ऐश्वर्यों के सम्पादन के लिये हे (पवमान) अभिषेक योग्य ! (हिन्वे) प्रेरित करता हूं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That lord sustainer of earth and heaven, pure and purifying sanctifier, watchful guardian and giver of bliss, absolute victor in the evolutionary battles of existence, we invoke, exalt and glorify for our good and advancement.
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक योगयज्ञ, ध्यानयज्ञ, विज्ञानयज्ञ, संग्रामयज्ञ व ज्ञानयज्ञ इत्यादी सर्व यज्ञात एकमेव परमेश्वराचा आधार घेतात ते अवश्य कृतकार्य होतात. परमेश्वराच्या साह्याशिवाय कोणत्याही यज्ञाची पूर्ती होत नाही. त्यासाठी माणसांनी सदैव परमेश्वराचे साह्य घेऊनच आपल्या उद्देशाची पूर्ती करावी. ॥११॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal