ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 4
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - पादनिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
वृषा॒ ह्यसि॑ भा॒नुना॑ द्यु॒मन्तं॑ त्वा हवामहे । पव॑मान स्वा॒ध्य॑: ॥
स्वर सहित पद पाठवृषा॑ । हि । असि॑ । भा॒नुना॑ । द्यु॒ऽमन्त॑म् । त्वा॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ । पव॑मान । सु॒ऽआ॒ध्यः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
वृषा ह्यसि भानुना द्युमन्तं त्वा हवामहे । पवमान स्वाध्य: ॥
स्वर रहित पद पाठवृषा । हि । असि । भानुना । द्युऽमन्तम् । त्वा । हवामहे । पवमान । सुऽआध्यः ॥ ९.६५.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमान) हे सर्वपावकपरमात्मन् ! त्वं (भानुना) सदर्थप्रकाशकतया (वृषाहि) वेदवाण्या वर्षकः खलु (असि) असि (स्वाध्यः) सुबुद्धिमन्तो वयं (द्युमन्तं) दीप्तिमन्तं (त्वा) भवन्तं (हवामहे) स्तुमः ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमान) सबको पवित्र करनेवाले हे जगदीश ! आप (भानुना) अच्छे अर्थ को प्रकाश करने से (वृषाहि) अवश्य वेदरूप वाणी की वर्षा करनेवाले (असि) हैं। (स्वाध्यः) अच्छी बुद्धिवाले हम लोग (द्युमन्तं) स्वयंप्रकाश (त्वा) आपकी (हवामहे) स्तुति करते हैं ॥४॥
भावार्थ
जो पुरुष परमात्मपरायण होते हैं, उन्हीं के परिश्रम सफल होते हैं। इस अभिप्राय से यह वर्णन किया है कि परमात्मा उद्योगी पुरुषों के उद्योगों को सफल करें ॥४॥
विषय
वृषा-द्युमान्
पदार्थ
[१] हे (पवमान) = हमें पवित्र करनेवाले सोम ! तू (भानुना) = ज्ञान के प्रकाश से (वृषा) = हमारे पर सुखों का वर्षण करनेवाला (असि) = है । (द्युमन्तम्) = ज्योतिर्मय, प्रशस्त ज्ञान ज्योति को प्राप्त करानेवाले (त्वा) = तुझ को (हि) = ही (हवामहे) = हम पुकारते हैं। तेरी ही आराधना करते हैं । [२] हे पवमान सोम! तेरी आराधना से हम (स्वाध्यः) = [सुकर्मणः, सुष्ठुध्यानवन्तो वा सा० ] उत्तम कर्मोंवाले व उत्तम ध्यानवाले बनते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें उत्तम ज्ञानवाला, उत्तम ध्यानवाला व उत्तम कर्मोंवाला बनाता है।
विषय
वह मेधवत् वीर्यवान्, सेक्ता, बली, हृष्टपुष्ट पवित्राचार हो। सब उसका आदर करें।
भावार्थ
तू (भानुना) तेज से (वृषा हि असि) जलवर्षक मेघ के समान वीर्य सेचन में समर्थ वा सुखप्रद, बलवान् (असि) हो। (द्युमन्तं वा) तेजोयुक्त धन के स्वामी तुझ को हम हे (पवमान) पवित्र आचारवान् ! हे स्नातक ! (स्वाध्यः) सुखपूर्वक तेरा सत्कार और चिन्तन करते हुए (हवामहे) आदरपूर्वक बुलाते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of purity, purifier and sanctifier of heart and soul, you are supremely generous and refulgent by your own light and glory. We, celebrants by our holiest thoughts and words, invoke and adore you for the light and wisdom of your divine glory and generosity.
मराठी (1)
भावार्थ
जे पुरुष परमात्मपरायण असतात त्यांचेच परिश्रम सफल होतात. परमात्म्याने उद्योगी पुरुषांच्या उद्योगांना सफल करावे. ॥४॥
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