ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 21
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
इषं॑ तो॒काय॑ नो॒ दध॑द॒स्मभ्यं॑ सोम वि॒श्वत॑: । आ प॑वस्व सह॒स्रिण॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठइष॑म् । तो॒काय॑ । नः॒ । दध॑त् । अ॒स्मभ्य॑म् । सो॒म॒ । वि॒श्वतः॑ । आ । प॒व॒स्व॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
इषं तोकाय नो दधदस्मभ्यं सोम विश्वत: । आ पवस्व सहस्रिणम् ॥
स्वर रहित पद पाठइषम् । तोकाय । नः । दधत् । अस्मभ्यम् । सोम । विश्वतः । आ । पवस्व । सहस्रिणम् ॥ ९.६५.२१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 21
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सोम) हे जगदीश ! भवान् (नः तोकाय) अस्मत्सन्तानेभ्यः (सहस्रिणं) बहुविधधनानि (विश्वतः) परितः (दधत्) धारयतु। अथ च (अस्मभ्यं) मां (इषं) सर्वविधैश्वर्यं ददातु तथा (आ पवस्व) सर्वथा पवित्रयतु ॥२१॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सोम) हे परमात्मन् ! आप (नः) हमारे (तोकाय) सन्तानों के लिये (सहस्रिणं) अनन्त प्रकार के धन (विश्वतः) सब ओर से (दधत्) धारण कराएँ और (अस्मभ्यं) हमको सब प्रकार का ऐश्वर्य दें तथा (आ पवस्व) सब प्रकार से पवित्र करें ॥२१॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा से अभ्युदयप्राप्ति की प्रार्थना की गई है ॥२१॥
विषय
सात्त्विक अन्न, सुपथार्जित धन
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते! (नः तोकाय) = हमारे सन्तानों के लिये भी (इषम्) = उत्तम अन्नों को (दधत्) = धारण करता हुआ तू (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (विश्वतः) = सब दृष्टिकोणों से (सहस्त्रिणम्) = [स हस्] प्रसन्नता परिपूर्ण धन को (आपवस्व) = प्राप्त करा । [२] शरीर में संयत सोम से समय पर उत्पन्न हुए हुए सन्तान भी सदा उत्तम भावोंवाले होते हैं, वे उत्तम अन्नों के सेवन की ही कामना करते हैं। इस सोम के रक्षण से हम भी उन ऐश्वर्यों को कमानेवाले बनें, जो कि हमारे आनन्द की वृद्धि का कारण हों।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम सात्त्विक विचारोंवाले सन्तानों को जन्म देता है। हम सोमरक्षण से सत्य से धनों को कमाते हुए आनन्द-लाभ करते हैं ।
विषय
प्रजा की अगली सन्तति की उन्नति के लिये उसको सहस्रों के धन की प्राप्ति का आदेश।
भावार्थ
हे (सोम) ऐश्वर्यवन् ! अन्यों को सन्मार्ग में प्रेरित करने वाले ! विद्यादि में निष्णात ! तू (अस्मभ्यम्) हमारे लाभ, उपकार के लिये और (नः तोकाय) हमारे पुत्रादि के उपकार के लिये, (विश्वतः) हमारे सब ओर (इषं दधत्) अन्न, उत्तम वृष्टि, बलवती सेना और मार्गदर्शक वाणी इन को (दधत्) धारण करता हुआ, (सहस्रिणं) सहस्रों ऐश्वर्यों सुखों से युक्त वा सहस्रों जनों को धारण करने वाले, राष्ट्र धन को (आ पवस्व) प्राप्त कर, उसका शासन कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O Soma, bearing a thousandfold gifts of food, energy, knowledge and will of initiative and assertion from all sides of the world, pray flow to bless us and our future generations with the power and peace of divinity.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराची अभ्युदय प्राप्तीसाठी प्रार्थना केलेली आहे. ॥२१॥
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