ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 30
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - विराड्गायत्री
स्वरः - षड्जः
आ र॒यिमा सु॑चे॒तुन॒मा सु॑क्रतो त॒नूष्वा । पान्त॒मा पु॑रु॒स्पृह॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । र॒यिम् । आ । सु॒ऽचे॒तुन॑म् । आ । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो । त॒नूषु॑ । आ । पान्त॑म् । आ । पु॒रु॒ऽस्पृह॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ रयिमा सुचेतुनमा सुक्रतो तनूष्वा । पान्तमा पुरुस्पृहम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । रयिम् । आ । सुऽचेतुनम् । आ । सुक्रतो इति सुऽक्रतो । तनूषु । आ । पान्तम् । आ । पुरुऽस्पृहम् ॥ ९.६५.३०
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 30
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सुक्रतो) हे सर्वयज्ञाधिपते परमेश्वर ! भवान् (रयिम्) धनं तथा (सुचेतुनम्) शुभज्ञानं (तनूषु) मत्सन्ततिषु (आ) आ ददातु। भवान् (पुरुस्पृहम्) सर्वेषामुपास्यदेवोऽस्ति। तथा (पान्तं) सर्वपविता चास्ति। (सुक्रतो) हे शुभकर्मिन् ! भवानेव मयोपासनीयोऽस्ति ॥३०॥ इति पञ्चषष्टितमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सुक्रतो) हे सर्वयज्ञाधिपते परमात्मन् ! आप (रयिम्) धन को (सुचेतुनं) और सुन्दर ज्ञान को (तनूषु) हमारी सन्तानों में (आ) सब प्रकार से दें। आप (पुरुस्पृहं) सबके उपास्य देव हैं। (पान्तं) सबको पवित्र करनेवाले हैं। (सुक्रतो) हे शोभन कर्मोंवाले परमात्मन् ! आप ही हमारे उपास्य देव हैं ॥३०॥
भावार्थ
इस मन्त्र में नित्य-शुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वभाव सर्वरक्षक पतितपावन परमात्मा के गुणों का वर्णन किया गया है और उसको एकमात्र उपास्य देव माना है ॥३०॥ यह ६५ वाँ सूक्त और ६ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
रयि व सुचेतुना
पदार्थ
[१] हे (सुक्रतो) = उत्तम प्रज्ञान व शक्तिवाले सोम ! हम (तनूषु) = अपने शरीरों में तेरे (रयिम्) = ऐश्वर्य को (आ) [वृणीमहे] | = सब प्रकार से वरते हैं । तेरे (सुचेतुनम्) = उत्तम प्रज्ञान को (आ) = वरते हैं । [२] तुझे वरते हैं जो कि (पान्तम्) = हमारा रक्षण करता है और (पुरुस्पृहम्) = बहुतों से स्पृहणीय होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम, शरीर में सुरक्षित होने पर 'रयि व उत्तम चेतना' का कारण बनता है । इस सोम के रक्षण से शतशः वासनाओं का विखनन (नाश) करनेवाले 'शतं वैखानसाः' अगले सूक्त के ऋषि हैं—
विषय
वरण योग्य पुरुष के कर्त्तव्य।
भावार्थ
हम लोग इसी प्रकार (पुरु-स्पृहम्) बहुतों से चाहे गये, बहुप्रिय, बहुसम्मत, (पान्तम्) सर्वपालक, (मन्द्रम्) सब को हर्ष देने वाले, (वरेण्यं) वरण करने योग्य, सन्मार्ग में जनों को ले जाने वाले, (मनीषिणम्) बुद्धिमान् (वरेण्यम् आ आ) आदरपूर्वक वरण करने योग्य पुरुष को वरण करें और ऐसे ही सर्वप्रिय, बहुसम्मत, (रयिम्) ऐश्वर्यवान्, (सुचेतुनम्) उत्तम ज्ञानी, पुरुष को, हे (सुक्रतो) उत्तम कर्म-प्रज्ञावन् ! (तनूषु) अपने शरीरों और विस्तृत राष्ट्र कार्यों के निमित्त (आ आ आ आ आवृणीमहे) वरण किया करें। इति षष्ठो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O lord of holy action, we pray bring us the world’s wealth of enlightenment, protective, promotive and valued universally, for our body, mind and soul and vest it in our future generations.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्त स्वभाव, सर्वरक्षक, पतित पावन परमात्म्याच्या गुणांचे वर्णन केलेले आहे व त्याला एकमात्र उपास्यदेव मानलेले आहे. ॥३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal