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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 23
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुम्मतीगायत्री स्वरः - षड्जः

    य आ॑र्जी॒केषु॒ कृत्व॑सु॒ ये मध्ये॑ प॒स्त्या॑नाम् । ये वा॒ जने॑षु प॒ञ्चसु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । आ॒र्जी॒केषु॑ । कृत्व॑ऽसु । ये । मध्ये॑ । प॒स्त्या॑नाम् । ये । वा॒ । जने॑षु । प॒ञ्चऽसु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य आर्जीकेषु कृत्वसु ये मध्ये पस्त्यानाम् । ये वा जनेषु पञ्चसु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । आर्जीकेषु । कृत्वऽसु । ये । मध्ये । पस्त्यानाम् । ये । वा । जनेषु । पञ्चऽसु ॥ ९.६५.२३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 23
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (ये) ये विद्वांसः (आर्जीकेषु कृत्वसु) सत्कर्मसु तथा (ये) ये खलु (पस्त्यानां मध्ये) गृहकर्मसु कुशलाः सन्ति (ये वा) अथ ये खलु (जनेषु पञ्चसु) पञ्चविधेषु मनुष्येषु शिक्षितुं शक्नुवन्ति, ते सर्वे अस्माकं कल्याणकारिणो भवन्तु ॥२३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (ये) जो विद्वान् (आर्जीकेषु कृत्वसु) सत्कर्मों में और (ये) जो विद्वान् (पस्त्यानां मध्ये) गृहकर्मों में चतुर हैं (ये वा) और जो (जनेषु पञ्चसु) पाँच प्रकार के मनुष्यों में शिक्षा दे सकते हैं, वे सब हमारे लिये कल्याणकारी हों ॥२३॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में विद्वानों के गुणों का वर्णन किया है। पाँच प्रकार के मनुष्यों की विद्या का तात्पर्य यहाँ यह है कि जो विद्वान् ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों में उपदेश कर सकते हैं और पाँचवें उन मनुष्यों में जो सर्वथा असंस्कारी हैं अर्थात् दस्युभाव को प्राप्त हैं, इन सबको सुधार सकते हैं, वे प्रजा के लिये सदैव कल्याणकारी होते हैं ॥२३॥

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    विषय

    क्रियाशील विद्यार्थी व शक्तियों का विस्तार करनेवाला

    पदार्थ

    [१] ये सोमकण वे हैं, (ये) = जो (आर्जीकेषु) = विद्या के अर्जन करनेवाले ब्रह्मचारियों के निमित्त [ सुन्विरे] = पैदा किये जाते हैं। इन सोमकणों से ही उनका मस्तिष्क विद्यार्जनक्षम बनता है। उन विद्यार्थियों के निमित्त जो कि (कृत्वसु) = खूद क्रियाशील, आलस्य शून्य हैं। आलस्यशून्यता भी तो इन विद्यार्थियों को सोमरक्षण से ही प्राप्त होती है। [२] ये सोमकण वे हैं ये जो पस्त्यानां (मध्ये) = गृहस्थ लोगों के बीच में पैदा किये जाते हैं। इन सोमकणों के संयत करने से ही ये सद्गृहस्थ बन पाते हैं। (वा) = अथवा ये सोमकण वे हैं (ये) = जो (पञ्चसु जनेषु) = पञ्च यज्ञों को करनेवाले लोगों में अथवा [पचि विस्तारे] अपनी शक्तियों का विस्तार करनेवाले लोगों के निमित्त पैदा किये जाते हैं। इन सोमकणों के रक्षण से ही वे गृहों को सुन्दर बना पाते हैं और अपनी शक्तियों का विस्तार कर पाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ-ये सोमकण विद्यार्थी को विद्यार्जनक्षम व क्रियाशील बनाते हैं तथा एक गृहस्थ को सद्गृहस्थ व शक्तियों का विस्तार करनेवाला बनाते हैं ।

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    विषय

    अभिषिक्तों का आकाश में नक्षत्रवत् प्रजाओं में स्थिति।

    भावार्थ

    (ये) जो (आर्जीकेषु) सरल धार्मिक पुरुषों के बीच वा समतल भागों में अभिषिक्त होते हैं, (ये कृत्वसु) जो कर्म करने वालों में अभिषिक्त होते हैं (ये पस्त्यानाम् मध्ये) जो प्रजाओं, गृहस्थों के बीच (वा पञ्चसु जनेषु) और पांचों प्रकार के जनों में पदाभिषिक्त होते हैं—

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Whatever powers of peace and energy are created and distilled in active forces, in holy acts, in the homes or among all five peoples of humanity, we pray, may flow and sanctify us.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन केलेले आहे. जे विद्वान, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र हे चार वर्ण व पाचवे संस्कारहीन दस्यू अशा पाच प्रकारच्या माणसांना उपदेश करून त्यांना सुधारू शकतात ते प्रजेसाठी कल्याणकारी असतात. ॥२३।

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