Loading...
यजुर्वेद अध्याय - 1

मन्त्र चुनें

  • यजुर्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • यजुर्वेद - अध्याय 1/ मन्त्र 3
    ऋषिः - परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषिः देवता - सविता देवता छन्दः - भुरिक् जगती, स्वरः - निषादः
    10

    वसोः॑ प॒वित्र॑मसि श॒तधा॑रं॒ वसोः॑ प॒वित्र॑मसि स॒हस्र॑धारम्। दे॒वस्त्वा॑ सवि॒ता पु॑नातु॒ वसोः॑ प॒वित्रे॑ण श॒तधा॑रेण सु॒प्वा काम॑धुक्षः॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वसोः॑। प॒वित्र॑म्। अ॒सि॒। श॒तधा॑र॒मिति॑ श॒तऽधा॑रम्। वसोः॑। प॒वित्र॑म्। अ॒सि॒। स॒हस्र॑धार॒मिति॑ स॒हस्र॑ऽधारम्। दे॒वः। त्वाः॒। स॒वि॒ता। पु॒ना॒तु॒। वसोः॑। प॒वित्रे॑ण। श॒तधा॑रे॒णेति॑ श॒तऽधा॑रेण। सु॒प्वेति॑ सु॒ऽप्वा᳕। काम्। अ॒धु॒क्षः॒ ॥३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वसोः पवित्रमसि शतधारं वसोः पवित्रमसि सहस्रधारम् । देवस्त्वा सविता पुनातु वसोः पवित्रेण शतधारेण सुप्वा कामधुक्षः ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वसोः। पवित्रं। असि। शतधारमिति शतऽधारम्। वसोः। पवित्रं। असि। सहस्रधारमिति सहस्रऽधारम्। देवः। त्वाः। सविता। पुनातु। वसोः। पवित्रेण। शतधारेणेति शतऽधारेण। सुप्वेति सुऽप्वा। काम्। अधुक्षः॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते॥

    अन्वयः

    यो वसोर्वसुर्यज्ञः शतधारं पवित्रमसि शतधा शुद्धिकारकोऽस्ति सहस्रधारं पवित्रमसि सुखदोऽस्ति त्वा तं सविता देवः पुनातु। हे जगदीश्वर! भवान् वसोः वसुर्यज्ञः तेनास्माभिरनुष्ठितेन पवित्रेण शतधारेण सुप्वा यज्ञेनास्मान् पुनातु। हे विद्वन्! जिज्ञासो वा त्वं कां वाचमधुक्षः प्रपूरयितुमिच्छसि॥३॥

    पदार्थः

    (वसोः) वसुर्यज्ञः (पवित्रम्) शुद्धिकारकं कर्म (असि) अस्ति। अत्र सर्वत्र पुरुषव्यत्ययः (शतधारम्) शतं बहुविधमसंख्यातं विश्वं धरतीति तम्। शतमिति बहुनामसु पठितम् (निघं॰३.१) (वसोः) वसुर्यज्ञः (पवित्रम्) वृद्धिनिमित्तम् (असि) अस्ति (सहस्रधारम्) बहुविधं ब्रह्माण्डं धरतीति तं यज्ञम्। सहस्रमिति बहुनामसु पठितम् (निघं॰३.१) (देवः) स्वयंप्रकाशस्वरूपः परमेश्वरः (त्वा) तं यज्ञम् (सविता) सर्वेषां वसूनामग्निपृथिव्यादीनां त्रयस्त्रिंशतो देवानां सविता। सविता वै देवानां प्रसविता (शत॰१.१.२.१७) (पुनातु) पवित्रीकरोतु (वसोः) पूर्वोक्तो यज्ञः (पवित्रेण) पवित्रनिमित्तेन वेदविज्ञानकर्मणा (शतधारेण) बहुविद्याधारकेण परमेश्वरेण वेदेन वा (सुप्वा) सुष्ठुतया पुनाति पवित्रहेतुर्वा तेन (काम्) कां कां वाचं (अधुक्षः) दोग्धुमिच्छसीति प्रश्नः। अत्र लडर्थे लुङ्॥ अयं मन्त्रः (शत॰१.५.४.१२-१६) व्याख्यातः॥३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः पूर्वोक्तं यज्ञमनुष्ठाय पवित्रा भवन्ति, तान् जगदीश्वरो बहुविधेन विज्ञानेन सह वर्त्तमानान् कृत्वैतेभ्यो बहुविधं सुखं ददाति, परन्तु ये क्रियावन्तः परोपकारिणः सन्ति, ते सुखमाप्नुवन्ति नेतरेऽलसाः। अत्र कामधुक्ष इति प्रश्नोऽस्ति॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषयः

    पुनःसकीदृशइत्युपदिश्यते॥

    सपदार्थान्वयः

    योवसो:=वसुर्यज्ञःशतधारंपवित्रमसि=शतधाशुद्धिकारकोऽस्ति (शतधारम् =बहुविधमसंख्यातंविश्वंधरतीतितं, पवित्रम्=शुद्धिकारकंकर्म), सहस्रधारंपवित्रमसि=सुखदोऽस्ति (सहस्रधारम्=बहुविधंब्रह्माण्डंधरतीतितंयज्ञं, पवित्रम्=शुद्धिनिमित्तम्), त्वा=तं,तंयज्ञंसवितासर्वेषांवसूनामग्निपृथिव्यादीनांत्रयस्त्रिंशतोदेवानांप्रसवितादेवःस्वयंप्रकाशस्वरूपःपरमेश्वरःपुनातुपवित्रीकरोतु। हेजगदीश्वर ! भवान्तेनास्माभिरनुष्ठितेनपवित्रेणपवित्रनिमित्तेनवेदविज्ञानकर्मणाशतधारेणबहुविद्याधारकेणपरमेश्वरेणवेदेनवासुप्वा=यज्ञेनसुष्ठुतयापुनातिपवित्रहेतुर्वातेनअस्मान्पुनातुपवित्रीकरोतु। हेविद्वन्, जिज्ञासोवा! त्वंकांकांकां (वाचं) वाचमधुक्षः=प्रपूरयसि, वाप्रपूरयितुमिच्छसिदोग्धुमिच्छसीतिप्रश्नः।।१।३॥

    पदार्थः

    (वसोः) वसुर्यज्ञः (पवित्रम्) शुद्धिकारकंकर्म (असि) अस्ति।अत्रसर्वत्रपुरुषव्यत्ययः (शतधारम्) शतंबहुविधमसंख्यातंविश्वंधरतीतितम्।शतमितिबहुनामसुपठितम्॥निघं०३।१(वसोः) वसुर्यज्ञः (पवित्रम्) शुद्धिनिमित्तम् (असि) अस्ति (सहस्रधारम्) बहुविधंब्रह्माण्डंधरतीतितंयज्ञम्।सहस्रमितिबहुनामसुपठितम्॥निघं०।३।१॥ (देवः) स्वयंप्रकाशस्वरूपःपरमेश्वरः (त्वा) तंयज्ञम् (सविता) सर्वेषांवसूनामग्निपृथिव्यादीनांत्रयस्त्रिंशतोदेवानांप्रसविता।सवितावैदेवानांप्रसविता।।श०१।१।२।१७॥ (पुनातु) पवित्रीकरोतु (वसोः) पूर्वोक्तोयज्ञः (पवित्रेण) पवित्रनिमित्तेनवेदविज्ञानकर्मणा (शतधारेण) बहुविद्याधारकेणपरमेश्वरेणवेदेनवा (सुप्वा) सुष्ठुतयापुनातिपवित्रहेतुर्वातेन (काम्) कांकांवाचं (अधुक्षः) दोग्धुमिच्छसीतिप्रश्नः।अत्रलडर्थेलुङ्॥अयंमंत्रःश०१।७।१।१४-१७व्याख्यातः॥३॥

    भावार्थः

    [हेजगदीश्वर! भवान्तेनास्माभिरनुष्ठितेनपवित्रेण शतधारेणसुप्वा=यज्ञेनास्मान्पुनातु]

    येमनुष्याःपूर्वोक्तंयज्ञमनुष्ठायपवित्राभवन्तितान्जगदीश्वरोबहुविधेनविज्ञानेनसहवर्तमानान्कृत्वैतेभ्योबहुविधंसुखंददाति।परन्तु--येक्रियावन्तःपरोपकारिणःसन्तितेसुखमाप्नुवन्ति, नेतरेऽलसाः।

    [कामधुक्षः]

    अत्रकामधुक्षइतिप्रश्नोऽस्ति॥१॥३॥

    विशेषः

    परमेष्ठीप्रजापतिः। सविता=ईश्वरः॥ भुरिग्जगती। निषादः॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (5)

    विषय

    फिर उक्त यज्ञ कैसा सुख करता है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है॥

    पदार्थ

    जो (वसोः) यज्ञ (शतधारम्) असंख्यात संसार का धारण करने और (पवित्रम्) शुद्धि करनेवाला कर्म (असि) है तथा जो (वसोः) यज्ञ (सहस्रधारम्) अनेक प्रकार के ब्रह्माण्ड को धारण करने और (पवित्रम्) शुद्धि का निमित्त सुख देनेवाला (असि) है, (त्वा) उस यज्ञ को (देवः) स्वयं प्रकाशस्वरूप (सविता) वसु आदि तेंतीस देवों का उत्पत्ति करनेवाला परमेश्वर (पुनातु) पवित्र करे। हे जगदीश्वर! आप हम लोगों से सेवित जो (वसोः) यज्ञ है, उस (पवित्रेण) शुद्धि के निमित्त वेद के विज्ञान (शतधारेण) बहुत विद्याओं का धारण करने वाले वेद और (सुप्वा) अच्छी प्रकार पवित्र करने वाले यज्ञ से हम लोगों को पवित्र कीजिये। हे विद्वान् पुरुष वा जानने की इच्छा करने वाले मनुष्य! तू (काम्) वेद की श्रेष्ठ वाणियों में से कौन-कौन वाणी के अभिप्राय को (अधुक्षः) अपने मन में पूर्ण करना अर्थात् जानना चाहता है॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य पूर्वोक्त यज्ञ का सेवन करके पवित्र होते हैं, उन्हीं को जगदीश्वर बहुत-सा ज्ञान देकर अनेक प्रकार के सुख देता है, परन्तु जो लोग ऐसी क्रियाओं के करने वाले वा परोपकारी होते हैं, वे ही सुख को प्राप्त होते हैं, आलस्य करने वाले कभी नहीं। इस मन्त्र में (कामधुक्षः) इन पदों से वाणी के विषय में प्रश्न है॥३॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    वह यज्ञ कैसा है, यह फिर उपदेश किया है।।

    भाषार्थ

    जो (वसोः) यज्ञ (शतधारम्) शतधा (पवित्रम्) शुद्धिकारक (असि) है अर्थात् बहुविध असंख्य विश्वों को धारण करने वाला, शुद्धिकारक कर्म है, (सहस्रधारम्) बहुविध ब्रह्माण्ड को धारण करने वाला, (पवित्रम्) सुखदायक एवं शुद्धि का निमित्त (असि) है, (त्वा) उस यज्ञ को (सविता) सब वसु अर्थात् अग्नि, पृथिवी आदि तैंतीस देवों का उत्पादक (देवः) स्वयं प्रकाशस्वरूप परमेश्वर (पुनातु) पवित्र करे।

    हे जगदीश्वर! आप हम लोगों से सेवित (पवित्रेण) पवित्रताकारक वेद-विज्ञान-कर्म से (शतधारेण) बहुत विद्याओं के धारक परमेश्वर वा वेद से (सुप्वा) अच्छी प्रकार पवित्र करने वाले वा पवित्रता के हेतु यज्ञ से हमें (पुनातु) पवित्र कीजिये।

    हे विद्वान् अथवा जिज्ञासु मनुष्य! तू (काम्) कौन-कौन सी वाणी को (अधुक्षः) दुहना चाहता है? ॥ १। ३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य पूर्वोक्त यज्ञ का अनुष्ठान करके पवित्र होते हैं, उनको परमेश्वर बहुत प्रकार के विज्ञान से युक्त करके उन्हें अनेक प्रकार का सुख प्रदान करता है। परन्तुजो कर्मशील परोपकारी हैं वे सुख को प्राप्त करते हैं;  दूसरे आलसी लोग नहीं।

    इस मन्त्र में कामधुक्षःइन पदों से वाणी के विषय में प्रश्न है॥ १। ३॥

    भाष्यसार

    १. यज्ञ-- असंख्य प्रकार के विश्व को धारणाकरने वाला यज्ञ शुद्धिकारक एवं सुखदायक कर्म है।

    २. ईश्वर-- वसु अर्थात् अग्नि, पृथिवी आदि तैंतीस देवों को उत्पन्न करने वाला होने से यहाँ ईश्वर को सवितातथा स्वयं प्रकाशस्वरूप होने से देवकहा गया है।

    ्अग्नि, वायु, आकाश, चन्द्रमा, सूर्य और नक्षत्र सब सृष्टि के निवासस्थान होने से आठ वसु। प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनञ्जय और जीवात्मा-- ये ग्यारह रुद्र इसलिए कहाते हैं कि जब शरीर को छोड़ते हैं तब रोदन कराने वाले होते हैं। संवत्सर के बारह महीने बारह आदित्य इसलिए हैं कि ये सबकी आयु को लेते जाते हैं।बिजली का नाम ‘इन्द्रइस हेतु से है कि परम ऐश्वर्य का हेतु है। यज्ञ को प्रजापति कहने का कारण यह है कि जिससे वायु, वृष्टि-जल, औषधि की शुद्धि, विद्वानों का सत्कार और नाना प्रकार की शिल्पविद्या से प्रजा का पालन होता है। ये तैंतीस पूर्वोक्त गुणों के योग से देवकहाते हैं॥ [वसु=८, रुद्र=११, आदित्य= १२, इन्द्र (विद्युत्)=१ प्रजापति (यज्ञ)=१, सर्व योग=३३]॥

    ४. ईश्वर-प्रार्थना-- हे जगदीश्वर! आप पवित्रकारक वेद, विज्ञान तथा यज्ञ से हमें पवित्र कीजिये।

    ५. प्रश्न-- हे जिज्ञासु विद्वान् पुरुष! तू किस वाणी को दुहना चाहता है अर्थात् किस वाणी को प्राप्त करके तृप्त होना चाहता है, ज्ञान से भरपूर होना चाहता है?॥३॥

    विशेष

    परमेष्ठी प्रजापतिः।सविता =ईश्वरः।  भुरिग्जगती। निषादः।।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पवित्रता

    पदार्थ

    १. वही प्रेरणा देते हुए प्रभु कहते हैं  — ( वसोः ) = यज्ञ से  ( पवित्रम् असि ) = तूने अपने को पवित्र बनाया है। यहाँ ‘शतधारम्’ शब्द क्रियाविशेषण के रूप में है। ‘शतं धारा यस्मिन्’, [ धारा इति वाङ्नाम ]। जिस यज्ञ द्वारा पवित्रीकरण की क्रिया में शतशः वेदवाणियों का उच्चारण किया गया है। सैकड़ों ही क्या ( सहस्रधारम् )  = सहस्रों वेदवाणियों का उच्चारण हुआ है। ऐसी ( वसोः ) = यज्ञ की प्रक्रिया से ( पवित्रम् असि ) = तूने अपने को पवित्र बनाया है। वैदिक संस्कृति में मनुष्य यज्ञमय जीवन बिताता है। इस यज्ञमय जीवन की प्रेरणा उसे शतशः, सहस्रशः उच्चारण की गई वेदवाणियों से प्राप्त होती है, जिन्हें वह अपने इस यज्ञिय-जीवन में समय-समय पर प्रयुक्त करता है।

    २. [ क ] ( सविता देवः ) = सबको प्रेरणा देनेवाला, दिव्य गुणों का पुञ्ज वह प्रभु ( त्वा ) = तुझे ( पुनातु ) = पवित्र करे। जो मनुष्य प्रातः-सायं प्रभु-चरणों में उपस्थित होता है उसका जीवन पवित्र बनता ही है। उपासना के समान पवित्र करनेवाला अन्य कुछ नहीं है। [ ख ] ( सविता देवः ) = उदय होकर सबको कर्मों में प्रेरित करनेवाला प्रकाशमय सूर्य ( त्वा पुनातु ) = तुझे पवित्र करे। रोगकृमियों के संहार द्वारा सूर्य पवित्रता और नीरोगता प्रदान करता है।

    ३. ( वसोः ) = यज्ञ से ( पवित्रेण ) = अपने को पवित्र बनानेवाले ( शतधारेण ) = शतशः वेदवाणियों का उच्चारण करनेवाले पुरुष के साथ, अर्थात् उसके सम्पर्क में आने के द्वारा ( सुप्वा ) = तू अपने को उत्तम प्रकार से [ सु ] पवित्र करनेवाला [ पू ] हुआ है। मनुष्य यज्ञशील, ज्ञानी पुरुषों के सम्पर्क से उन-जैसा ही बनता हुआ अपने उत्थान को सिद्ध करता है। सत्सङ्ग —  ‘पापान्निवारयति योजयते हिताय’ पाप से हटाकर हित में जोड़ता है। वेद में कहा है — हे प्रभो! ऐसी कृपा कीजिए कि — ‘यथा नः सर्व इज्जनः संगत्या सुमना असत्’ हमारे सभी जन सत्सङ्ग से उत्तम मनोंवाले हों। एवं, पवित्र बनने के तीन उपाय हैं — 1. यज्ञमय जीवन बिताना, यज्ञों में लगे रहना, 2. प्रभु की उपासना करना, 3. यज्ञशील ज्ञानियों के सम्पर्क में रहना। इन उपायों को क्रिया में लानेवाले व्यक्ति से प्रभु कहते हैं कि वस्तुतः  ( काम् ) = उस अवर्णनीय आनन्द देनेवाली वेदवाणी को तो तूने ही ( अधुक्षः ) = दूहा है। इसका दोहन करने के कारण यह अपने जीवन में ऊँचा उठता हुआ ‘परमेष्ठी’ बना है। यह यज्ञशील बनकर सभी का पालन करने से ‘प्रजापति’ है।

    भावार्थ

    भावार्थ — हम यज्ञ, उपासना व सत्सङ्ग से अपने जीवनों को पवित्र बनाएँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सहस्रधार और शतधार वसु का वर्णन ।

    भावार्थ

    हे परमेश्वर ! आप (वसो;) सब को बसाने हारे और श्रेष्ठ कर्म और सब में बसने वाले वसु आत्मा के ( पवित्रम् ) परम पवित्र करने वाले और उसको ( शतधारम् ) सैकड़ों प्रकार से धारण पोषण करने वाले हो । हे परमेश्वर ! आप ( वसोः ) सब को बसाने वाले श्रेष्ठ कर्म और सब में बसने वाले आत्मा का ( सहस्रधारम् ) सहस्रों प्रकार से धारण करने वाले होकर उसको ( पवित्रम् ) पवित्र करने वाले ( असि ) हैं । हे पुरुष ! ( सविता देवः ) सर्वोत्पादक सर्व प्रेरक, सर्वप्रद परमेश्वर ( त्वा ) तुझको ( शतधारेण ) सैकडों धारण शक्ति से या धारण पोषण करने वाले सामर्थ्य से युक्त (सुप्वा ) उत्तम रीति से पवित्र करने वाले ( पवित्रेण ) पावन सामर्थ्य से ( पुनातु ) पवित्र करे । हे पुरुष ! तूने ( काम् ) किस २ वेदवाणी या ईश्वर की परम पावनी किस २ शक्ति का ( अधुक्षः ) गौ के समान पुष्टि-प्रद रस प्राप्त किया है और तू किस से परम बल प्राप्त किया करता है ? शत० १।७।१।१४-१७ ॥ 

     

    टिप्पणी

    ३-- सविता देवता । द० । 
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वायुः पयः प्रश्नश्च सविता च देवताः । भुरिग् जगती । निषादः स्वरः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सहस्रधार और शतधार वसु का वर्णन।

    भावार्थ

    हे परमेश्वर ! आप (वसो;) सब को बसाने हारे और श्रेष्ठ कर्म और सब में बसने वाले वसु आत्मा के ( पवित्रम् ) परम पवित्र करने वाले और उसको ( शतधारम् ) सैकड़ों प्रकार से धारण पोषण करने वाले हो । हे परमेश्वर ! आप ( वसोः ) सब को बसाने वाले श्रेष्ठ कर्म और सब में बसने वाले आत्मा का ( सहस्रधारम् ) सहस्रों प्रकार से धारण करने वाले होकर उसको ( पवित्रम् ) पवित्र करने वाले ( असि ) हैं । हे पुरुष ! ( सविता देवः )सर्वोत्पादक सर्व प्रेरक, सर्वप्रद परमेश्वर ( त्वा ) तुझको ( शतधारेण ) सैकडों धारण शक्ति से या धारण पोषण करने वाले सामर्थ्य से युक्त (सुप्वा ) उत्तम रीति से पवित्र करने वाले ( पवित्रेण ) पावन सामर्थ्य से ( पुनातु ) पवित्र करे । हे पुरुष ! तूने ( काम् ) किस २ वेदवाणी या ईश्वर की परम पावनी किस २ शक्ति का ( अधुक्षः ) गौ के समान पुष्टि-प्रद रस प्राप्त किया है और तू किस से परम बल प्राप्त किया करता है ? शत० १।७।१।१४-१७ ॥ 

     

    टिप्पणी

    ३-- सविता देवता । द० । 
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वायुः पयः प्रश्नश्च सविता च देवताः । भुरिग् जगती । निषादः स्वरः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    जे लोक पूर्वोक्त यज्ञ करून पवित्र होतात. त्यांनाच परमेश्वर पुष्कळ ज्ञान व अनेक प्रकारचे सुख देतो; पण जी माणसे परोपकारी असून, अशा प्रकारचे कार्य करतात त्यांनाच हे सुख प्राप्त होते. आळशी लोकांना हे सुख प्राप्त होत नाही. या मंत्रात (कामधुक्षः) या शब्दाद्वारे माणसांना वाणीसंबंधी प्रश्न विचारलेले आहेत.

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    यज्ञामुळे सुखाची वृद्धी कशाप्रकारे होते, पुढील मंत्रात याविषयी उपदेश केला आहे -

    शब्दार्थ

    शब्दार्थ - (वसोः) यज्ञ (शतधारम्) असंख्य, अपरिमित अशा जगाचे धारण करणारा आहे आणि (पवित्रम्) एक शुद्धिकारक कर्म (असि) आहे. (वसोः) यज्ञ (सहस्रधारम्) अनेकानेक ब्रह्मांडांना धारण करणारा व (पवित्रम्) शुद्धिचे कारण आहे आणि सुखदायक आहे. (त्वा) त्यायज्ञास (देवः) स्वतः प्रकाशस्वरूप असा (सविता) वसु आदी तेहतीस देवांची उत्पत्ती करणारा परमेश्‍वर (पुनातु) यज्ञास पवित्र करो. हे जगदीश्‍वरा, आम्हां सर्वांकडून ज्या यज्ञाचे अनुष्ठान केले जात आहे, त्या (वसो।) यज्ञाद्वारे (पवित्रेण) वायुमंडळाची (वातावरणाची) शुद्धी करण्याकरिता, वेदातील विज्ञानाने (शतधारेण) आणि अनेक विद्या धारण करणार्‍या वेदाला (सुप्वा) उत्तम प्रकारे पवित्र करणार्‍या या यज्ञाला पवित्र कर हे विद्यावान् पुरुष, किंवा हे जिज्ञासू मनुष्य, तू (काम्) वेदातील श्रेष्ठ वाणी पैकी कोणत्या वाणीच्या अर्थाला (अधुक्षः) करण्याची मनीषा बाळगून आहेस? किंवा कोणत्या वाणीचा अर्थाला जाणण्याची इच्छा बाळगतोस? ॥3॥

    भावार्थ

    भावार्थ - जी माणसे यज्ञाचे अनुष्ठान करून पवित्र होतात, जगदीश्‍वर त्यांना पुष्कळ ज्ञान देतो आणि अनेकविध सुख देतो. जे लोक अशा प्रकारचे याज्ञिक कर्म करणारे आहेत किंवा जे परोपकारी आहेत, त्यांनाच सुखाची प्राप्ती होते. आलस्य करणाऱ्यांना कधीच नाहीं. या मंत्रात (कामधुक्षः) (काम+अधुक्षः) या शब्दाने वाणीविषयी प्रश्‍न विचारला आहे. ॥3॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Yajna acts as purifier, makes explicit, true and perfect knowledge, spread in space through the rays of the sun, purifies the air, is the mainstay of the universe, and also adds to our comfort through its exalted office. It behoves us all the learned and their followers not to give up the performance of yajnas.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Yajna is the sustainer and purifier of countless worlds. It is the sustainer and purifier of the universe in countless ways. May the lord creator Savita sanctify yajna. May the Lord purify and sanctify us with yajna and the knowledge of the Veda. What message do you hope to receive ?

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    You are the purifier of riches passing down in a hundred streams. You are the purifier of riches in a thousand streams. (1) Let the Creator God purify you with a hundred streamed strainer of riches by purifying means. (2) Which of the cows would you like to milk?(3)

    Notes

    Vasoh, of vasu. Vasu is wealth, or riches. God is also called vasu, because in Him all the beings reside, and he resides in all the beings. Derived from वस् to dwell, meaning the original donor of dwellings. Satadharam, having a hundred streams. Supva, शोभन पुनाति इति सुपूः तेन सुप्वा, і. е. with the excellent strainer. - Uvata. Kam adhuksah, कां दोग्धुं इच्छसि(Daya. ). Which one would you like to milk?

    इस भाष्य को एडिट करें

    बंगाली (1)

    विषय

    পুনঃ স কীদৃশ ইত্যুপদিশ্যতে ॥
    পুনরায় উক্ত যজ্ঞ কীরূপ সুখ প্রদান করে, এই বিষয়ের উপদেশ পরবর্ত্তী মন্ত্রে করা হইয়াছে ।

    पदार्थ

    পদার্থঃ- যে (বসোঃ) যজ্ঞ (শতধারম্) অসংখ্য বিশ্বের ধারণকারী ও (পবিত্রম্) শুদ্ধিকারী কর্ম এবং যে (বসোঃ) যজ্ঞ (সহস্রধারম্) অনেক প্রকারের ব্রহ্মাণ্ড ধারণকারী এবং (পবিত্রম্) শুদ্ধির নিমিত্ত সুখ প্রদাতা । (ত্বা) সেই যজ্ঞকে (দেবঃ) স্বয়ং প্রকাশস্বরূপ (সবিতা) বসু ইত্যাদি তেত্রিশ দেবতা সকলের উৎপন্নকারী পরমেশ্বর (পুনাতু) পবিত্র করুন । হে জগদীশ্বর ! আপনি আমাদিগের দ্বারা সেবিত (বসোঃ) যজ্ঞ, সেই (পবিত্রেণ) শুদ্ধির নিমিত্ত বেদ-বিজ্ঞান (শতধারেণ) বহু বিদ্যার ধারণকারিণী বেদ এবং (সুপ্বা) সম্যক্ প্রকার পবিত্রকারী যজ্ঞ দ্বারা আমাদিগকে পবিত্র করুন । হে বিদ্বান্ পুরুষ অথবা জিজ্ঞাসু মনুষ্য! তুমি (কাম্) বেদের শ্রেষ্ঠ বাণীর মধ্য হইতে কোন্ কোন্ বাণীর অভিপ্রায়কে (অধুক্ষঃ) স্বীয় মনে পূর্ণ করিতে অর্থাৎ জানিতে চাও ॥ ৩ ॥

    भावार्थ

    ভাবার্থঃ- যে সব মনুষ্য পূর্বোক্ত যজ্ঞের সেবন করিয়া পবিত্র হয় তাঁহাদিগকেই জগদীশ্বর বহু জ্ঞান প্রদান করিয়া অনেক সুখ দিয়া থাকেন । যাঁহারা এমন ক্রিয়া করিয়া থাকেন অথবা পরোপকারী হয়েন তাঁহারাই সুখ প্রাপ্ত করিয়া থাকেন, আলস্যকারী ব্যক্তি কখনও নহে । এই মন্ত্রে (কামধুক্ষঃ) এই পদ দ্বারা বাণী সম্পর্কে প্রশ্ন করা হইয়াছে ।

    मन्त्र (बांग्ला)

    বসোঃ॑ প॒বিত্র॑মসি শ॒তধা॑রং॒ বসোঃ॑ প॒বিত্র॑মসি স॒হস্র॑ধারম্ । দে॒বস্ত্বা॑ সবি॒তা পু॑নাতু॒ বসোঃ॑ প॒বিত্রে॑ণ শ॒তধা॑রেণ সু॒প্বা᳕ কাম॑ধুক্ষঃ ॥ ৩ ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    বসোঃ পবিত্রমিত্যস্য ঋষিঃ স এব । সবিতা দেবতা । ভুরিগ্জগতী ছন্দঃ ।
    নিষাদঃ স্বরঃ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    उर्दू (1)

    Vishay

    یگیّہ کے انوشٹھان سے انیک سُکھوں کی پراپتی

    Padarth

    جو وسوہ یگیہ(شت دھارم) اسنکھیہ سنسار کا دھارن کرنے اور(پوترم) شُدھی کرنے والا کرم(اسی) ہے۔ تتھا جو(وسوہ یگیّہ( سہسر دھارم) انیک پرکار کے برہمانڈ کو دھارن کرنے اور(پوترم) شُدھی کا نمِت سُکھ دانے والا ہے۔(توا) اس یگیّہ کو(دیوہ) سوئیم پرکاش سوروپ(سوتا) وسو آدی دیووں کا اُتپتی کرنے والا پرمیشور(پناتُو) پوتر کرے۔ ہے پرمیشور آپ ہم لوگوں سے سیوت سیوا گئے ہے اُپاسنا آرادھنا کے یوگیہ جو(وسوہ) یگیہ ہے(پوتر بن) شُدھی کے نمِت وید کے وگیان(شت دھابن) بہت ودیاؤں کے دھارن کرنے والے وید اور(سُپوا) اچھی پرکار پوّتر کرنے والے یگیّہ سے ہم لوگوں کو پوّتر کیجیئے۔ ہے وِدوان پرش یا جاننے کی اچھا کرنے والے منش! تو(کام) وید کی شریشٹھ بانیوں میں سے کس کس بانی کے ابھی پرائے ارتھ کو(اُدھاکشاہ) اپنے من میں پورن کرنا- ارتھات جاننا چاہتا ہے؟

    Bhavarth

    جو منُش پوروکت یگیّہ کا سیون کرکے پوّتر ہوتے ہیں انہی کو جگدیشور بہت سا گیان دے کر انیک پرکار کے سُکھ دیتا ہے پرنتُو جو لوگ ایسی کریاؤں کے کرنے والے یا پروپکاری ہوتے ہیں۔ وہی سُکھ کو پراپت ہوتے ہیں۔ آلسیہ کرنے والے کبھی نہیں۔ یجُروید کے پہلے منتر میں ایشور کی پرارتھنا سے سب شُبھ کاریوں کی سِدّھی کا اُپدیش اور یگیّہ کو سب سے شریشٹھ کرم بتلاتے ہوئے اس کی پریرنا دی گئی۔دوسرے منتر میں وہ یگیّہ کیسا ہے؟ اس سوروپ کا ورنن کیا گیا اور ساتھ ہی یہ بھی بتلایا گیا کہ اس سے پوترتا کا پرکاش- پرتھوی کا راجیہ وایو روپی پران کے تُلیہ راجیہ نیتی- پرتاپ سب کی رکھشا اس لوک اور پرلوک میں سُکھ کی وردھی پرسپر کوملتا سے ورتنا اور چھل کپٹ کا تیاگ آدی شریشٹھ گُن اُتپن ہوتے ہیں۔ گویا یہ یگیّہ کرم کا پھل ہے۔ جو کرنے والے کو ملتا ہے۔ اس لئے یہ کہا کہ اپنا سُکھ بڑھانے کے لئے اور سب کے پروپکار کے لئے وِدّیا اور پُرشارتھ کے ساتھ پریتی پوروک شردھا سے اس کا انوشٹھان کرنا چاہیئے۔ اب اس منتر کے اُوپر رٰشی ور نے یہ شیرشک دیا ہے کہ یہ یگیّہ کیسا سُکھ دیتا ہے۔اس وشے کا اُپدیش اس منتر میں کیا ہے۔ منتر سار : 1- یگیّہ سارے جگت بھوت پرانی سب کو دھارن کرتا ہے۔انیک پرکار کا جو برہمانڈ ہے اس سب کے لئے یگیّہ شُدھی کا نمِت ارتھات ذریعہ ہے۔ 2- وہ سوتا دیو پربھو سُوریہ چندر تارے پرتھوی جل اگنی وایو پرکاش آدی وسو۔ دس پران اور جیواتما- آدی گیارہ اور بارہ مہینے یگیّہ اور بجلی آدی 33 دیووں کو پیدا کرکے اس سرشٹی یگیّہ کا سنچالن کو پوّتر کر رہے ہیں۔ ہمارے لئے بھی اُس پِتا پربُھو کا آدیش یہی ہے۔ اس یگیّہ سے ہی بڑھو اور اُنتی کرو۔ 3- وہ یگیّہ سوروپ پرمیشور ہی ہم سب کے لئے سیوا اُپاسنا اور آرادھنا اور پُوجا کے یوگیہ ہے۔ وہ پوجا اور آرادھنا کیا ہے- تن من دھن سے ہر گھڑی اپنے آپ کو اس کے ارپن سمرپن سمجھنا۔ اس کی ویدوکت آگیا کا پالن -پرتیک اس کی پرانی پرجا کے ساتھ پیار کرتے ہوئے راگ اور دویش کا تیاگ شبھ کرموں کو کرتے ہوئے بھی اپنے آپ کو کرتا نہ مان۔ اس کی آگیا سمجھ ہر گھڑی ہر سادھن شانت اور آنندت رہنا دُکھ ہو یا سُکھ جے ہو یا پراجئے۔ 4 - پرمیشور نے سمپورن وِشو کو پوتر کرنے کے لئے ہمیں دو سادھن وشیش دیئے ہیں۔ یگیّہ اور وید جس کے گیان اور وگیان سے منُش ماتر شُدھ پوتر ہوتے ہیں۔ 5- جو لوگ یگیّہ کے کرنے کرانے سے من بانی اور شریر سے پوتر ہوکر سب کے اُپکار کا کرم کرتے ہیں۔ پرمیشور اُن کو انیک پرکار کے سُکھوں سے بھر دیتا ہے لیکن افسوس کہ یگیّہ سے رہت آلسی منُش پربھو کی دی ہوئی رحمتوں نعمتوں اور برکتوں سے ایسے محروم رہتے ہیں۔ جیسے نافرمانبردار پُتر اپنے ماتا پتا کی آشیرواد سے۔

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top