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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 23
    ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    आ न॑ इन्द्र म॒हीमिषं॒ पुरं॒ न द॑र्षि॒ गोम॑तीम् । उ॒त प्र॒जां सु॒वीर्य॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । नः॒ । इ॒न्द्र॒ । म॒हीम् । इष॑म् । पुर॑म् । न । द॒र्षि॒ । गोऽम॑तीम् । उ॒त । प्र॒ऽजाम् । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ न इन्द्र महीमिषं पुरं न दर्षि गोमतीम् । उत प्रजां सुवीर्यम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । नः । इन्द्र । महीम् । इषम् । पुरम् । न । दर्षि । गोऽमतीम् । उत । प्रऽजाम् । सुऽवीर्यम् ॥ ८.६.२३

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 23
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    विषयः

    अथ धनाद्यर्थं परमात्मप्रार्थना कथ्यते।

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे इन्द्र ! (नः) अस्मभ्यम् (महीम्) महतीम् (गोमतीम्) द्युतिमतीम् (इषम्) ऐश्वर्यम् (पुरम्, न) नागरमिव (आदर्षि) दातुमिच्छ (प्रजाम्) सन्ततिम् (उत्) अथ च (सुवीर्यम्) सुष्ठुवीर्यं च आदर्षि ॥२३॥

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    विषयः

    इन्द्रस्य प्रार्थना क्रियते ।

    पदार्थः

    इन्द्र ! नोऽस्मभ्यम् । महीम्=महतीम् । इषम्=अभिलषितमन्नराशिम् । आदर्षि=आद्रियस्व=दातुं कामयस्व । अत्र दृष्टान्तः−गोमतीम्= प्रशस्तगवादिपशुयुक्ताम् । पुरमिव=नगरीमिव । यथा काचिन्नगरी पश्वादिपूर्णा भवति । तथैव अस्माकं सम्पत्तिः सर्वप्रकारधनयुक्ता भवतु । तथा । प्रजाम्=सन्ततिम् । सुवीर्यञ्च देहि ॥२३ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    अथ धन वा जनों के लिये परमात्मा से प्रार्थना करना कथन करते हैं।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! (नः) हमको (महीम्) बड़े (गोमतीम्) कान्तिवाले (पुरं, न) पुर में होनेवाले के समान (इषम्) ऐश्वर्य्य को (आदर्षि) देने की इच्छा करें (उत्) और (प्रजाम्) सन्तान तथा (सुवीर्यम्) उत्तम बल देने की इच्छा करें ॥२३॥

    भावार्थ

    हे परमेश्वर ! हम लोग यज्ञों द्वारा आपका स्तवन करते हैं। आप कृपा करके बड़े नागरिक पुरुष के समान हमें ऐश्वर्य्यसम्पन्न करें, सुन्दर सन्तान दें और हमें बलवान् बनावें, ताकि हम अपने अभीष्ट कार्य्यों की सिद्धि करते हुए आपका विस्तार करें ॥२३॥

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    विषय

    इन्द्र की प्रार्थना करते हैं ।

    पदार्थ

    हे इन्द्र ! (नः) हम उपासक जनों को (महीम्) बहुत (इषम्) अभिलषित अन्नराशि (आदर्षि) दीजिये । यहाँ दृष्टान्त देते हैं−(गोमतीम्) प्रशस्त गौ, हिरण्य और विविध धनादिकों से युक्त (पुरम्+न) जैसे कोई महती नगरी हो, जैसे कोई पश्वादिपूर्ण नगरी होती है, तद्वत् मेरी सम्पत्ति विविध प्रकारों के धनों से पूर्ण हो । (उत) और (प्रजाम्) सन्तति और (सुवीर्यम्) शोभन वीर्य दीजिये ॥२३ ॥

    भावार्थ

    गोधूम, यवादि अन्नों और गवादि पशुओं के विना मनुष्य जीवनयात्रा नहीं कर सकते, अतः उन वस्तुओं के लिये भूयो भूयः प्रार्थना होती है, यह आशय है ॥२३ ॥

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    विषय

    पिता प्रभु । प्रभु और राजा से अनेक स्तुति -प्रार्थनाएं ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! प्रभो ! आत्मन् ! तू ( नः ) हमें ( महीम् ) बड़ी, पूज्य ( इषम् ) इच्छा, प्रेरणा, ( गोमतीं पुरं न ) गवादि सम्पदा युक्त नगरी के समान इन्द्रियों और वाणी से युक्त, पालन पोषण योग्य देह रूप पुरी को ( उत ) और ( प्रजां ) प्रजा, पुत्रादि और प्राणादि तथा ( सु-वीर्यम् ) उत्तम बलवीर्य ( आ दर्षि ) प्रदान करता है । (२) राजन् ! तू हमैं ( महीम् ) भूमि, अन्न, गवादि युक्त पुरी, प्रजा और उत्तम बल दे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वत्सः काण्व ऋषिः ॥ १—४५ इन्द्रः। ४६—४८ तिरिन्दिरस्य पारशव्यस्य दानस्तुतिर्देवताः॥ छन्दः—१—१३, १५—१७, १९, २५—२७, २९, ३०, ३२, ३५, ३८, ४२ गायत्री। १४, १८, २३, ३३, ३४, ३६, ३७, ३९—४१, ४३, ४५, ४८ निचृद् गायत्री। २० आर्ची स्वराड् गायत्री। २४, ४७ पादनिचृद् गायत्री। २१, २२, २८, ३१, ४४, ४६ आर्षी विराड् गायत्री ॥

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    विषय

    उत्तम साधन व उत्तम फल

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यवन् प्रभो ! आप (नः) = हमारे लिये (गोमती पुरं न) = इस प्रशस्त इन्द्रियोंवाली शरीर नगरी के समान (मही इषम्) = महनीय प्रेरणा को भी (अदर्षि) = प्राप्त कराइये । उत्तम इन्द्रियोंवाले शरीर के साथ उत्तम इच्छाओं व प्रेरणाओं को भी दीजिये। [२] (उत) = और इस प्रकार उत्तम इन्द्रियों, उत्तम शरीर व उत्तम प्रेरणाओं को प्राप्त कराके आप हमारे लिये (प्रजाम्) = उत्तम सन्तानों व (सुवीर्यम्) = उत्तम वीर्य [शक्ति] को प्राप्त कराइये।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु के अनुग्रह से हमें 'उत्तम इन्द्रियोंवाला शरीर, उत्तम प्रेरणा, उत्तम सन्तान व उत्तम शक्ति' प्राप्त हो।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, bestow upon us abundant food and high quality energy as well as a great city for habitation, rich in cows, culture and excellence and bless us with a noble virile progeny.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे परमेश्वर, आम्ही यज्ञाद्वारे तुझे स्तवन करतो. तू कृपा करून मोठ्या नागरिकाप्रमाणे आम्हाला ऐश्वर्यसंपन्न कर, सुंदर संतान दे व आम्हाला बलवान कर. त्यामुळे आम्ही आपल्या अभीष्ट कार्याची सिद्धी करून तुझा विस्तार करावा. ॥२३॥

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