ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 47
ऋषिः - वत्सः काण्वः
देवता - तिरिन्दिरस्य पारशव्यस्य दानस्तुतिः
छन्दः - पादनिचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्रीणि॑ श॒तान्यर्व॑तां स॒हस्रा॒ दश॒ गोना॑म् । द॒दुष्प॒ज्राय॒ साम्ने॑ ॥
स्वर सहित पद पाठत्रीणि॑ । श॒तानि॑ । अर्व॑ताम् । स॒हस्रा॑ । दश॑ । गोना॑म् । द॒दुः । प॒ज्राय॑ । साम्ने॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्रा दश गोनाम् । ददुष्पज्राय साम्ने ॥
स्वर रहित पद पाठत्रीणि । शतानि । अर्वताम् । सहस्रा । दश । गोनाम् । ददुः । पज्राय । साम्ने ॥ ८.६.४७
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 47
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 7
Acknowledgment
अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 7
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (2)
पदार्थः
(पज्राय, साम्ने) प्रार्जकाय सामविदे (अर्वताम्, त्रीणि, शतानि) अश्वानां त्रीणिशतानि (गोनां, दश, सहस्रा) गवां दशसहस्राणि (ददुः) ददति उपासकाः ॥४७॥
विषयः
ईशदानस्तुतिः ।
पदार्थः
मह्यं परमात्मा बहूनि वस्तूनि ददाति । स यो वा आत्मानमेवोपास्ते, आत्मगुणान् विज्ञातुं यतते सोऽपि महाधनाढ्यो भवतीत्यनया शिक्षते । यथा−स परमदेवः । पज्राय=परमोद्योगिने । साम्ने=सामविदे= परमात्मस्तावकाय । मह्यम् । अर्वतामश्वानाम्= कर्मज्ञानान्तःकरणरूपाणां त्रिविधानामिन्द्रियाणां वा । त्रीणि शतानि । अपि च । गोनाम्=गवां ज्ञानकर्मेन्द्रियाणां द्विविधानां वा । दश सहस्रा=सहस्राणि । ददुर्ददौ=दत्तवान् । अतोऽहं तं स्तौमि ॥४७ ॥
हिन्दी (4)
पदार्थ
(पज्राय, साम्ने) जो विविध विद्याओं का अर्जक सामवेद का ज्ञाता है, उसको (अर्वतां, त्रीणि, शतानि) तीन सौ घोड़े (गोनां, सहस्रा, दश) और दश सहस्र गौयें (ददुः) उपासक देते हैं ॥४७॥
भावार्थ
साङ्गोपाङ्ग सामवेद के ज्ञाता विद्वान् पुरुष को उपासक तीन सौ अश्व और दश सहस्र गौयें देते हैं अर्थात् परमात्मपरायण पुरुष, जिसको परमात्मा ऐश्वर्य्यशाली करता है, वह सामवेद के ज्ञाता को उक्त दान देकर प्रसन्न करता है, ताकि अन्य पुरुष उत्साहसम्पन्न होकर वेदों का अध्ययन करते हुए परमात्मपरायण हों ॥४७॥
विषय
ईश्वर से प्राप्त दान की स्तुति ।
पदार्थ
परमात्मा मुझको बहुत धन देता है । सो जो कोई परमात्मा की उपासना करता और आत्मगुणों को जानने के लिये प्रयत्न करता है, वह महाधनाढ्य होता है, यह शिक्षा इस ऋचा से दी जाती है । जैसे−(अर्वताम्) उत्तम, मध्यम और अधम तीन प्रकार के जो इन्द्रियरूप घोड़े हैं अथवा अश्वादि पशु उनके (त्रीणि+शतानि) तीन सौ अर्थात् तीन सौ घोड़े (गोनाम्) पाँच कर्मेन्द्रिय और पाँच ज्ञानेन्द्रियरूप जो दश इन्द्रिय हैं अथवा गौ आदि पशु, उनके (दश+सहस्रा) दश सहस्र (पज्राय) परमोद्योगी (साम्ने) सामवित् स्तुतिपाठक मुझको परमात्मा (ददुः) देता है ॥४७ ॥
भावार्थ
जिस हेतु मैं उद्योगी और सामवित् हूँ, अतः सामगान और उसकी आज्ञापालन से ईश्वर की कृपा पाकर इस लोक में बहुत धन प्राप्त करता हूँ । हे मनुष्यों ! तुम भी उसकी आज्ञा पर चलो और उद्योगी बनो, तो संसार में परम सुखी रहोगे ॥४७ ॥
विषय
समदर्शी को बड़ा लाभ ।
भावार्थ
वह परमेश्वर ( पज्राय ) प्रार्थना वा ज्ञानार्जन करने वाले, ( साम्ने ) सब के प्रति समान बुद्धि करने वाले समदर्शी पुरुष को (अर्वतां त्रीणि शतानि ) तीन सौ गतिशील वर्षों की आयु और ( गोनां दशसहस्रा ) वेद वाणियों के दश सहस्त्र मन्त्र, विद्वान् लोग ( ददुः ) प्रदान करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वत्सः काण्व ऋषिः ॥ १—४५ इन्द्रः। ४६—४८ तिरिन्दिरस्य पारशव्यस्य दानस्तुतिर्देवताः॥ छन्दः—१—१३, १५—१७, १९, २५—२७, २९, ३०, ३२, ३५, ३८, ४२ गायत्री। १४, १८, २३, ३३, ३४, ३६, ३७, ३९—४१, ४३, ४५, ४८ निचृद् गायत्री। २० आर्ची स्वराड् गायत्री। २४, ४७ पादनिचृद् गायत्री। २१, २२, २८, ३१, ४४, ४६ आर्षी विराड् गायत्री ॥
विषय
पज्र-समान्
पदार्थ
[१] ज्ञान धन आदि का अर्जन करनेवाला 'पज्र' है, शान्त स्वभाव का व्यक्ति 'सामन्' है। इस (पज्राय साम्ने) = ज्ञान आदि के अर्जक शान्त स्वभाव पुरुष के लिये सब देव (अर्वताम्) = [अव् हिंसायाम् to kill] रोग आदि का संहार करनेवाले प्राणों के (त्रीणि शतानि) = तीन सौ को ददुः - देते हैं। सब प्राकृतिक देव उसकी अनुकूलतावाले होते हुए इसे दीर्घजीवी बनाते हैं। यह 'पज्र सामन् ' तीन सौ वर्षों तक जीनेवाला होता है। [२] इस 'पज्र सामन्' को (वेद) = ज्ञानी पुरुष (गोनाम्) = ज्ञान की वाणियों के (दश सहस्त्रा) = इन दस हजारों को प्राप्त कराते हैं। ऋग्वेद की इन वाणियों द्वारा सब विज्ञान को प्राप्त करके यह 'पज्र सामन्' खूब ही अभ्युदय को प्राप्त करनेवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ-ज्ञान व धन आदि का अर्जन करनेवाले शान्त स्वभाव के बनकर हम तीन सौ वर्ष के दीर्घ जीवन को और इन सहस्रों ज्ञान वाणियों को प्राप्त हों।
इंग्लिश (1)
Meaning
Three hundred horses and ten thousand cows the lord has given to the celebrant of Sama Veda. (Horses and cows are symbols of achievement and generosity.)
मराठी (1)
भावार्थ
साङ्गोपांग सामवेदाचा ज्ञाता असलेल्या विद्वान पुरुषाला उपासक तीनशे अश्व व दशसहस्र गायी देतात. अर्थात् परमात्मपरायण पुरुष ज्याला परमेश्वर ऐश्वर्यवान करतो तो सामवेद ज्ञात्याला वरील प्रकारचे दान देऊन प्रसन्न करतो. त्यामुळे इतर पुरुष उत्साहसंपन्न बनून वेदांचे अध्ययन करत परामात्मपरायण व्हावेत. ॥४७॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal