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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 6 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 6/ मन्त्र 41
    ऋषिः - वत्सः काण्वः देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    ऋषि॒र्हि पू॑र्व॒जा अस्येक॒ ईशा॑न॒ ओज॑सा । इन्द्र॑ चोष्कू॒यसे॒ वसु॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋषिः॑ । हि । पू॒र्व॒ऽजाः । असि॑ । एकः॑ । ईशा॑नः । ओज॑सा । इन्द्र॑ । चो॒ष्कू॒यसे॑ । वसु॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋषिर्हि पूर्वजा अस्येक ईशान ओजसा । इन्द्र चोष्कूयसे वसु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋषिः । हि । पूर्वऽजाः । असि । एकः । ईशानः । ओजसा । इन्द्र । चोष्कूयसे । वसु ॥ ८.६.४१

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 6; मन्त्र » 41
    अष्टक » 5; अध्याय » 8; वर्ग » 17; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (2)

    पदार्थः

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! त्वम् (पूर्वजाः) सर्वेभ्यः पूर्वः (ऋषिः) सूक्ष्मद्रष्टा चासि (ओजसा) स्वपराक्रमेण (एकः, ईशानः) केवलः शासकः (वसु) धनाद्यैश्वर्यं च (चोष्कूयसे) अतिशयेन ददासि ॥४१॥

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    विषयः

    ईशमहिमानं दर्शयति ।

    पदार्थः

    हे इन्द्र ! त्वम् । ऋषिः=सर्वद्रष्टा सर्वगश्चासि । हि=निश्चयेन । पूर्वजाः=सर्वेषामग्रजाः । यद्वा । पूर्वान् जनयतीति पूर्वजाः । अन्तर्भावितण्यर्थः । सर्वेभ्यो यः पूर्वः पुरुषोऽस्ति तमपि स एव जनयति । स एव आदिगुरुरित्यर्थः । पुनः । ओजसा=बलेन । एकोऽपि= असहायोऽपि । अस्य=जगतः । ईशानः=ईश्वरः=स्वामी । हे इन्द्र ! स त्वम् । वसु=सर्वधनम् । चोष्कूयसे=बिभर्षि ॥४१ ॥

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    हिन्दी (6)

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे परमात्मन् ! आप (पूर्वजाः) सबसे पूर्व होनेवाले और (ऋषिः) सूक्ष्मद्रष्टा हैं (ओजसा) अपने पराक्रम से (एकः, ईशानः) केवल अद्वितीय शासक हो रहे हैं (वसु) सबको धनादि ऐश्वर्य्य (चोष्कूयसे) अतिशयेन दे रहे हैं ॥४१॥

    भावार्थ

    हे सबके पालक तथा रक्षक प्रभो ! आप सबसे प्रथम हैं, सूक्ष्मद्रष्टा और अपने अद्वितीय पराक्रम से सबका शासन कर रहे हैं और कर्मानुसार यथाभाग सबको धनादि ऐश्वर्य्य प्रदान करते हैं। कृपा करके उपासक की विशेषतया रक्षा करें, ताकि वह आपकी उपासना में निरन्तर तत्पर रहे ॥४१॥

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    विषय

    ईश्वर की महिमा दिखलाते हैं ।

    पदार्थ

    (इन्द्र) हे इन्द्र तू (ऋषिः) सर्वदृष्टा और सर्वत्र विद्यमान है । तू (हि) निश्चय (पूर्वजाः) सबमें अग्रज अथवा पूर्व को उत्पन्न करनेवाला है और (ओजसा) अपने महाबल से (एकः) अकेला ही तू (अस्य) इस जगत् का (ईशानः) ईश्वर=स्वामी है । हे इन्द्र ! वह तू (वसु) सर्व प्रकार के धन (चोष्कूयसे) धारण करता है ॥४१ ॥

    भावार्थ

    सृष्टि की आदि में उसी ने मनुष्यों को वेदविद्या दी, अतः वह ऋषि और सर्वशासक होने से ईशान कहलाता है, निश्चय वही सर्वसुखप्रदाता है, अतः वही सेव्य है ॥४१ ॥

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    पदार्थ

    पदार्थ = हे ( इन्द्र ) = परमेश्वर ! आप ( हि ) = निश्चित ( ऋषि:) = सर्वज्ञ ( पूर्वजा ) = सब से पूर्व विद्यमान ( ओजसा ) = अपने बल से ( एकः  ईशानः असि ) = अकेले सब पर शासन करनेवाले हैं और ( वसु ) = सब धन को ( चोष्कूयसे ) = अपने अधीन रखते हैं। 

    भावार्थ

     भावार्थ = हे सब ऐश्वर्य के स्वामी इन्द्र ! इस संसार में आपसे पूर्व विद्यमान आप ऋषि हैं। सबका द्रष्टा होने से आपको वेद ने ऋषि कहा है। संसार - भर का सारा धन आपके अधीन है। जिस पर आप प्रसन्न होते हैं, उसको अनेक प्रकार
    का धन आप ही देते हैं और आप अकेले ही अपने अनन्त बल से सब पर शासन कर रहे हैं ।

     

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    विषय

    स्तुतिविषयः

    व्याखान

    हे ईश्वर !(ऋषिः) सर्वज्ञ (पूर्वजा:) और सबके पूर्वजों के  (एकः हि) एक, अद्वितीय (ईशानः) ईशन-कर्त्ता, अर्थात् ईश्वरता करनेहारे तथा सबसे बड़े प्रलयोत्तरकाल में आप ही रहनेवाले (ओजसा) अनन्तपराक्रम से युक्त हो । हे (इन्द्र) महाराजाधिराज !(चोष्कूयसे वसु) ज्ञान आदि सब धन के दाता, अपनी कृपा का प्रवाह अपने सेवकों पर शीघ्र कर रहे हो। आप अत्यन्त आर्द्रस्वभाव हो ॥ २८ ॥
     

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    विषय

    पिता प्रभु । प्रभु और राजा से अनेक स्तुति-प्रार्थनाएं ।

    भावार्थ

    हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् प्रभो ! तू ( हि ) निश्चय से ( ऋषि: ) समस्त ज्ञानों का द्रष्टा, ( पूर्वजा: ) बसे पूर्व विद्यमान रहकर सब को उत्पन्न करने वाला, ( ओजसा ) बल पराक्रम से ( एकः ईशानः ) एक अद्वितीय सबका ईश्वर है, तू ही ( वसु ) बसे समस्त जीव को ( चोष्कून्यसे ) अपने वश करता, वा समस्त ऐश्वर्य प्रदान करता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वत्सः काण्व ऋषिः ॥ १—४५ इन्द्रः। ४६—४८ तिरिन्दिरस्य पारशव्यस्य दानस्तुतिर्देवताः॥ छन्दः—१—१३, १५—१७, १९, २५—२७, २९, ३०, ३२, ३५, ३८, ४२ गायत्री। १४, १८, २३, ३३, ३४, ३६, ३७, ३९—४१, ४३, ४५, ४८ निचृद् गायत्री। २० आर्ची स्वराड् गायत्री। २४, ४७ पादनिचृद् गायत्री। २१, २२, २८, ३१, ४४, ४६ आर्षी विराड् गायत्री ॥

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    विषय

    पूर्वजा ऋषि

    पदार्थ

    [१] हे प्रभो! आप (हि) = निश्चय से (ऋषिः) = तत्त्वद्रष्टा हैं । (पूर्वजाः असि) = बनने से पहले ही हैं 'हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे'। (एक:) = आप अद्वितीय हैं, (ओजसा ईशानः) = ओजस्विता के कारण सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के शासक हैं। [२] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! आप ही (वसु) = सब धनों को (चोष्कूयसे) = देते हैं। जीवन के लिये आवश्यक सब धन आप से ही प्राप्त कराये जाते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु तत्त्वद्रष्टा सदा से वर्तमान व ईशान हैं। प्रभु ही सब वसुओं को प्राप्त कराते हैं।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Indra, you are the omniscient poet and visionary of the universe, all seer, eternal and first manifestation of existence in creation, sole one and absolute ruler of the universe by your might and majesty, and you love to give wealth, honour and excellence with highest joy to humanity.

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    Purport

    O God Almighty! You are Omniscient. You are Supreme and sole ruler of all even of those who were born in the beginning of the creation. The Greatest of all You remain in immutable form even after the dissolution of the universe. You possess infinite valour. Indra! O King of kings! You are bestower of wealth of knowledge etc. The current of your mercy is flowing rapidly on your devotees, because you are of utmost tender naturemost kind-hearted.

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    हे सर्वांचा पालक व रक्षक प्रभो, तू सर्वप्रथम आहे. ससूक्ष्म द्रष्टा व आपल्या अद्वितीय पराक्रमाने सर्वांवर शासन करत आहेस व कर्मानुसार यथायोग्य सर्वांना धन, ऐश्वर्य प्रदान करतोस. कृपा करून उपासकाचे विशेष रक्षण कर. त्यामुळे तो आपल्या उपासनेत निरंतर तत्पर असावा. ॥४१॥

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    विषय

    स्तुती

    व्याखान

    हे श्वरा! (ऋषिः) तू सर्वज्ञ असून (पूर्वजाः) सर्व लोकांच्या पूर्वजांपासून [आतापर्यंत] एकच असून अद्वितीय असा आहेस. (ईशानः) तू सृष्टिकर्ता असून प्रचंड प्रलयानंतरही तुझे अस्तित्व असतेच. (ओजसा) म्हणूनच तू अत्यंत पराक्रमी आहेस. हे (इन्द्र) इंद्र महाराजाधिराज ! तू अत्यंत पराक्रमी आहेस. (चोष्कयसे वसुः) तु सर्व धन देणारा दाता आहेस. तुझ्या कृपेचा प्रवाह आपल्या सेवकाकडे ताबडतोब वळवितोस. कारण तू अत्यंत आर्द्र [नरम] स्वभावाचा आहेस ॥२८॥

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    ঋষির্হি পূর্বজা অস্যেক ঈশান ওজসা।

    ইন্দ্র চোষ্কূয়সে বসু।।৫৭।।

    (ঋগ্বেদ ৮।৬।৪১)

    পদার্থঃ হে (ইন্দ্র) পরমেশ্বর! তুমি (হি) নিশ্চিত (ঋষিঃ) সর্বজ্ঞ (পূর্বজা) সর্বাগ্রে বিদ্যমান। (ওজসা) নিজ বিভূতিরূপ শক্তি দ্বারা (একঃ ঈশানঃ অসি) একা সকলের উপর শাসন করো এবং (বসু) সমস্ত জগতকে (চোষ্কূয়সে) নিজের অধীনে রাখ।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে সকল ঐশ্বর্যের স্বামী পরমেশ্বর! এই সংসারে সবকিছুর পূর্বে বিদ্যমান তুমি আদি ঋষির ন্যায়। সর্বদ্রষ্টা তুমিই বেদের দাতা। এই সংসারের সকল কিছুই তোমার অধীন। যার উপর তুমি প্রসন্ন হয়ে থাক, তাঁকে অনেক প্রকারের ঐশ্বর্য তুমিই প্রদান করো। একাই তুমি অনন্ত বল দ্বারা সকলের ওপর শাসন করে থাক।।৫৭।।

     

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    नेपाली (1)

    विषय

    स्तुतिविषयः

    व्याखान

    हे ईश्वर ! ऋषिः = सर्वज्ञ पूर्वजाः = अरू सबै पूर्वजहरु का एक: हि= एक, अद्वितीय ईशानः = ईशन - कर्त्ता, अर्थात् ईश्वरता गर्नु हुने तथा सबैभन्दा महान् प्रलयोत्तर काल मा पनि आफु रहने ओजसा= अनन्त पराक्रम ले युक्त हुनुहुन्छ । हे इन्द्र = महाराजाधिराज ! चोष्यसे वसु = ज्ञान आदि सम्पूर्ण धन का दाता, आफ्नो कृपा को प्रवाह आफ्ना सेवक हरु माथि चाँडो गरी रहनु भएको छ। तपाईं अत्यन्तै आर्द्रस्वभाव हुनुहुन्छ ॥ २८ ॥

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