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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 11
    ऋषिः - कुत्सः देवता - आत्मा छन्दः - जगती सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
    1

    यदेज॑ति॒ पत॑ति॒ यच्च॒ तिष्ठ॑ति प्रा॒णदप्रा॑णन्निमि॒षच्च॒ यद्भुव॑त्। तद्दा॑धार पृथि॒वीं वि॒श्वरू॑पं॒ तत्सं॒भूय॑ भव॒त्येक॑मे॒व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । एज॑ति । पत॑ति । यत् । च॒ । तिष्ठ॑ति । प्रा॒णत् । अप्रा॑णत् । नि॒ऽमि॒षत् । च॒ । यत् । भुव॑त् । तत् । दा॒धा॒र॒ । पृ॒थि॒वीम् । वि॒श्वऽरू॑पम् । तत् । स॒म्ऽभूय॑ । भ॒व॒ति॒ । एक॑म् । ए॒व ॥८.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यदेजति पतति यच्च तिष्ठति प्राणदप्राणन्निमिषच्च यद्भुवत्। तद्दाधार पृथिवीं विश्वरूपं तत्संभूय भवत्येकमेव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । एजति । पतति । यत् । च । तिष्ठति । प्राणत् । अप्राणत् । निऽमिषत् । च । यत् । भुवत् । तत् । दाधार । पृथिवीम् । विश्वऽरूपम् । तत् । सम्ऽभूय । भवति । एकम् । एव ॥८.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 11
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।

    पदार्थ

    (यत्) जो कुछ [जगत्] (एजति) चेष्टा करता है, (पतति) उड़ता है, (च) और (यत्) जो कुछ (तिष्ठति) ठहरता है, (प्राणत्) श्वास लेता हुआ, (अप्राणत्) न श्वास लेता हुआ (च) और (यत्) जो कुछ (निमिषत्) आँख मूँदे हुए (भुवत्) विद्यमान है, (विश्वरूपम्) सबको रूप देनेवाले (तत्) विस्तृत [ब्रह्म] ने [उस सबको और] (पृथिवीम्) पृथिवी को (दाधार) धारण किया था, (तत्) वह [ब्रह्म] (संभूय) शक्तिमान् होकर (एकम् एव) एक ही (भवति) रहता है ॥११॥

    भावार्थ

    एक अद्वितीय ब्रह्म विविध प्रकार जगत् को रचकर सबका धारण-पोषण करता है ॥११॥

    टिप्पणी

    ११−(यत्) यत्पदार्थमात्रम् (एजति) चेष्टते (पतति) उड्डीयते (यत्) (च) (तिष्ठति) (प्राणत्) प्रश्वसत् (अप्राणत्) अप्रश्वसत् ( निमिषत्) चक्षुर्निमीलनं कुर्वत् (च) (यत्) (भुवत्) शॄदॄभसोऽदिः। उ० १।१–३०। भू सत्तायाम्-अदि, कित्। वर्तमानम् (तत्) त्यजितनि०। उ० १।१३२। तनु विस्तारे-अदि, डित्। विस्तृतं ब्रह्म (दाधार) पुपोष (पृथिवीम्) (विश्वरूपम्) सर्वेषां रूपकरम् (तत्) (संभूय) शक्तिमद् भूत्वा (भवति) वर्तते (एकम्) अद्वितीयम् (एव) ॥

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    विषय

    सर्वं खल्विदम्

    पदार्थ

    १. (यत् एजति) = जो कम्पित होता है, (पतति) = गतिवाला होता है, (यत् च तिष्ठति) = और जो स्थित होता है, (प्राणत् अप्राणत्) = श्वास लेता हुआ, या न श्वास लेता हुआ है, (यत् च) = और जो (निमिषत् भुवत्) = सदा आँखे मूंदै हुए है, (तत्) = उस सबको, (पृथिवीम्) = इस सम्पूर्ण चराचर पदार्थों की आधारभूत पृथिवी को (दाधार) = वे प्रभुधारण कर रहे हैं-'ओम्' शब्द वाच्य प्रभु ही इस सबके आधार हैं। २. (विश्वरूपं तत्) = वह नानारूपोंवाला ब्रह्माण्ड (संभूय) = उस प्रभु के साथ होकर-उसी के एकदेश में स्थिर होकर-(एकम् एव भवति) = वह एक प्रभु ही हो जाता है। प्रभु-मध्य पतित [स्थित] होने से यह प्रभु के ग्रहण से ही गृहीत होता है-इसकी अलग सत्ता नहीं दिखती। 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म' का यही तो अर्थ है।

    भावार्थ

    सब प्राणिमात्र व सब पिण्ड प्रभु से धारण किये जा रहे हैं। प्रभु से भिन्न देश में स्थित न होने से ये प्रभु के ग्रहण से ही गृहीत होते हैं-ये सब प्रभु में ही समाये हुए हैं।

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    भाषार्थ

    (यत्) जो (एजति) गति करता है (पतति) जो उड़ता है. (यत् च) और जो (तिष्ठति) स्थित है (यद्) जो (प्राणत्) प्राण धारण किये हुये है (अप्राणत) और जो प्राण रहित है (निमिषत् च) और जो निमेषोन्मेष करता हुआ (भुवत्) विद्यमान है (तत्) उस (विश्वरूपम्) नानारूपी जगत् को (पृथिवीम्) और पृथिवी को (दाधार) स्कम्भ परमेश्वर धारण किये हुये है। (तत्) वह सब (संभूय) इकठ्ठा होकर (भवति) हो जाता है (एकम्, एव) एक हो।

    टिप्पणी

    [यह विषमरूपी जगत्, प्रलयकाल में जब इकठ्ठा हो जाता है, तब वह एक प्रकृतिरूप ही हो जाता है, विषमरूपी नहीं रहता]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Jyeshtha Brahma

    Meaning

    Whatever moves or thinks, whatever falls and flies, whatever stops and stays, whatever is breathing, or not breathing, winking or waking, indeed all that is, the entire universal form of existence, Skambha bears and sustains. All that, having been, having receded through the process of involution and become one with Prakrti, recedes as one with Brahma.

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    Translation

    That which moves, flies or stands, and which breathes, or breathes not, which winks and which has come into being, that one of universal forms sustains the earth. Being assembled, that becomes one only.

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    Translation

    That which moves, that which flies, that which stands, that which breaths and breaths not and that which existing shuts the eye, upholds the entity which wearing all forms of the world upholds the earth and everything becomes one consistent whole the matter with souls in him in the time of dissolution.

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    Translation

    God, the Fashioner of the universe upholds the earth, and everything in the world, which has power of motion, that which flies, or stands which breathes or breathes not, which existing, shuts the eye. God, Full of Power remains only one.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(यत्) यत्पदार्थमात्रम् (एजति) चेष्टते (पतति) उड्डीयते (यत्) (च) (तिष्ठति) (प्राणत्) प्रश्वसत् (अप्राणत्) अप्रश्वसत् ( निमिषत्) चक्षुर्निमीलनं कुर्वत् (च) (यत्) (भुवत्) शॄदॄभसोऽदिः। उ० १।१–३०। भू सत्तायाम्-अदि, कित्। वर्तमानम् (तत्) त्यजितनि०। उ० १।१३२। तनु विस्तारे-अदि, डित्। विस्तृतं ब्रह्म (दाधार) पुपोष (पृथिवीम्) (विश्वरूपम्) सर्वेषां रूपकरम् (तत्) (संभूय) शक्तिमद् भूत्वा (भवति) वर्तते (एकम्) अद्वितीयम् (एव) ॥

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