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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 37
    ऋषिः - कुत्सः देवता - आत्मा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
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    यो वि॒द्यात्सूत्रं॒ वित॑तं॒ यस्मि॒न्नोताः॑ प्र॒जा इ॒माः। सूत्रं॒ सूत्र॑स्य॒ यो वि॒द्याद्स वि॑द्या॒द्ब्राह्म॑णं म॒हत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । वि॒द्यात् । सूत्र॑म् । विऽत॑तम् । यस्मि॑न् । आऽउ॑ता: । प्र॒ऽजा: । इ॒मा: । सूत्र॑म् । सूत्र॑स्य । य: । वि॒द्यात् । स: । वि॒द्या॒त् । ब्राह्म॑णम् । म॒हत् ॥८.३७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यो विद्यात्सूत्रं विततं यस्मिन्नोताः प्रजा इमाः। सूत्रं सूत्रस्य यो विद्याद्स विद्याद्ब्राह्मणं महत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । विद्यात् । सूत्रम् । विऽततम् । यस्मिन् । आऽउता: । प्रऽजा: । इमा: । सूत्रम् । सूत्रस्य । य: । विद्यात् । स: । विद्यात् । ब्राह्मणम् । महत् ॥८.३७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 37
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [विवेकी] (विततम्) फैले हुए (सूत्रम्) सूत्र [तागे समान कारण] को (विद्यात्) जान लेवे, (यस्मिन्) जिस सूत वा कारण में (इमाः) यह (प्रजाः) प्रजाएँ [कार्यरूप] (ओताः) ओत-प्रोत हैं। (यः) जो [विवेकी] (सूत्रस्य) सूत्र [कारण] के (सूत्रम्) सूत्र [कारण] को (विद्यात्) जान लेवे, (सः) वह (महत्) बड़े (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञान] को (विद्यात्) जान लेवे ॥३७॥

    भावार्थ

    मनुष्य कार्यरूप जगत् के कारण प्रकृति आदि को, और कारण के आदि कारण परमात्मा को जानकर ब्रह्मज्ञानी होता है ॥३७॥ इस मन्त्र का चौथा पाद मन्त्र २० में आया है ॥

    टिप्पणी

    ३७−(यः) विवेकी (विद्यात्) जानीयात् (सूत्रम्) सिविमुच्योष्टेरू च। उ० ४।१६३। षिवु तन्तुसन्ताने-ष्ट्रन् टेः ऊ च, यद्वा, सूत्र वेष्टने-अच्। कारणरूपं तन्तुम् (विततम्) विस्तृतम् (यस्मिन्) सूत्रे (ओताः) आङ्+वेञ् तन्तुसन्ताने-क्त। परस्परस्यूताः (प्रजाः) सृष्टाः पदार्थाः (इमाः) दृश्यमानाः (सूत्रम्) तन्तुरूपं कारणम् (सूत्रस्य) तन्तुरूपस्य कारणस्य (यः) (विद्यात्) (सः) (विद्यात्) (ब्राह्मणम्) म० २०। ब्रह्मज्ञानम् (महत्) बृहत् ॥

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    विषय

    सूत्रस्य सूत्रम्

    पदार्थ

    १. (यः) = जो उस (विततं सूत्रम्) = फैले हुए सूत्र को (विद्यात्) = जानता है, (यस्मिन्) = जिसमें कि (इमा: प्रजा:) = ये सब प्रजाएँ (ओता:) = ओत-प्रोत हैं। उस (सूत्रस्य सूत्रम्) = सूत्र के भी सूत्र को सर्वोपरि सूत्र को-(य: विद्यात्) = जो जानता है, (सः) = वह (महत् ब्राह्मणं विद्यात्) = उस महान् ज्ञानस्वरूप प्रभु को जानता है । वे ब्रह्म ही तो वह सूत्र हैं जिसमें कि सब लोक-लोकान्तर ग्रथित हुए-हुए हैं। २. (अहम्) = मैं उस (विततं सूत्रम्) = फैले हुए सूत्र को वेद-जानता हूँ, (यस्मिन्) = जिसमें कि (इमाः प्रजाः ओता:) = ये सब प्रजाएँ ओत-प्रोत हैं। (अथो) = और अब (अहम्) = मैं (सूत्रस्य सूत्रं) =  वेद-सूत्र के सूत्र को सर्वोपरि सूत्र को जानता हूँ (यत्) = जोकि (महत् ब्राह्मणम्) = महनीय ज्ञानस्वरूप ब्रह्म है।

    भावार्थ

    प्रभु वे सूत्र हैं, जिनमें कि ये सब लोक-लोकान्तररूप पिण्ड पिरोये हुए हैं। ('मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव') ऐसा गीता में कहा है। यजु:०३२.१२ में भी कहते हैं कि ('ऋतस्य तन्तुं विततं विनृत्य तदपश्यत्तदभवत्तदासीत्') = वे प्रभु'ऋत के फैले हुए तन्तु' ही हैं।

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    भाषार्थ

    (यः) जो (विततम्) विविध रूपों में फैले हुए (सूत्रम्) सूत्र को (विद्यात्) जाने, (यस्मिन्) जिस में (इमाः प्रजाः) ये प्रजाएं (ओताः) बुनी हुई हैं। तथा (यः) जो (सूत्रस्य सूत्रम्) सूत्र के सूत्र को (विद्यात्) जाने (सः) वह (ब्राह्मणम्, महत्) महत्-ब्रह्म को, या महावेदवेत्ता को (विद्यात्) जाने।

    टिप्पणी

    [मन्त्र में सूत्र है प्रकृति, और सूत्र का सूत्र हैं महत्-ब्रह्म। सूत्र का काम है बान्धना। प्रकृति द्वारा सूर्यादि पदार्थ बन्धे हुए हैं। ब्रह्म, सूत्र को भी बान्धे हुए है। अतः वह सूत्र का भी सूत्र है। प्रकृति तानारूप में है, और ये उत्पन्न पदार्थ उस ताना में बानारूप हैं। इस प्रकार समग्र जगत् परस्पर ओत-प्रोत है। ब्राह्मणम् = ब्रह्म; स्वार्थे अण। अथवा ब्रह्म= वेद, उस का महावेत्ता, ब्रह्म]।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Jyeshtha Brahma

    Meaning

    One who knows the web of life spread around, into which are woven all these forms of creation including humanity, and the one that knows the one essential and universal thread running through the entire web, that person really knows the Mahad-Brahma, Supreme Brahma and its creation.

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    Translation

    He, who knows the wide-spread thread, into which these creatures have been woven, and he, who knows the thread of the thread, may realize the great Lord supreme.

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    Translation

    One who knows the All-pervading Cord wherein all these creatures are inter-woven and one who knows the cods knows the Supreme Being.

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    Translation

    The man who knows the Vast Matter, on which all these creatures are strung, the man who knows the cause of Matter, knows the Mighty God.

    Footnote

    Cause of Matter: Most efficient cause.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३७−(यः) विवेकी (विद्यात्) जानीयात् (सूत्रम्) सिविमुच्योष्टेरू च। उ० ४।१६३। षिवु तन्तुसन्ताने-ष्ट्रन् टेः ऊ च, यद्वा, सूत्र वेष्टने-अच्। कारणरूपं तन्तुम् (विततम्) विस्तृतम् (यस्मिन्) सूत्रे (ओताः) आङ्+वेञ् तन्तुसन्ताने-क्त। परस्परस्यूताः (प्रजाः) सृष्टाः पदार्थाः (इमाः) दृश्यमानाः (सूत्रम्) तन्तुरूपं कारणम् (सूत्रस्य) तन्तुरूपस्य कारणस्य (यः) (विद्यात्) (सः) (विद्यात्) (ब्राह्मणम्) म० २०। ब्रह्मज्ञानम् (महत्) बृहत् ॥

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