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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 24
    ऋषिः - कुत्सः देवता - आत्मा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
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    श॒तं स॒हस्र॑म॒युतं॒ न्यर्बुदमसंख्ये॒यं स्वम॑स्मि॒न्निवि॑ष्टम्। तद॑स्य घ्नन्त्यभि॒पश्य॑त ए॒व तस्मा॑द्दे॒वो रो॑चत ए॒ष ए॒तत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श॒तम् । स॒हस्र॑म् । अ॒युत॑म् । निऽअ॑र्बुदम् । अ॒स॒म्ऽख्ये॒यम् । स्वम् । अ॒स्मि॒न् । निऽवि॑ष्टम् । तत् । अ॒स्य॒ । घ्न॒न्ति॒ । अ॒भि॒ऽपश्य॑त: । ए॒व । तस्मा॑त् । दे॒व: । रो॒च॒ते॒ । ए॒ष: । ए॒तत् ॥८.२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शतं सहस्रमयुतं न्यर्बुदमसंख्येयं स्वमस्मिन्निविष्टम्। तदस्य घ्नन्त्यभिपश्यत एव तस्माद्देवो रोचत एष एतत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शतम् । सहस्रम् । अयुतम् । निऽअर्बुदम् । असम्ऽख्येयम् । स्वम् । अस्मिन् । निऽविष्टम् । तत् । अस्य । घ्नन्ति । अभिऽपश्यत: । एव । तस्मात् । देव: । रोचते । एष: । एतत् ॥८.२४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।

    पदार्थ

    (शतम्) सौ, (सहस्रम्) सहस्र, (अयुतम्) दस सहस्र, (न्यर्बुदम्) दस करोड़, (असंख्येयम्) बे-गिनती (स्वम्) धन (अस्मिन्) इस [परमात्मा] में (निविष्टिम्) रक्खा हुआ है। (अस्य) इस (अभिपश्यतः) सब ओर देखते हुए [परमात्मा] के (तत्) उस [धन] को (एव) निश्चय करके वे [सब प्राणी] (घ्नन्ति) पाते हैं, (तस्मात्) उस [कारण] से (एषः) यह (देवः) देव [स्तुतियोग्य परमात्मा] (एतत्) अब (रोचते) रुचता है [प्रिय लगता है] ॥२४॥

    भावार्थ

    परमात्मा के अनन्त कोश से अनन्त प्राणी अपने पुरुषार्थ के अनुसार धन आदि पाकर बलवान् होते हैं, इसी से वह जगदीश्वर सबको सदा प्रिय लगता है ॥२४॥

    टिप्पणी

    २४−(शतम्) (सहस्रम्) (अयुतम्) दशस्रहस्रम् (न्यर्बुदम्) दशकोटिसंख्याकम् (असंख्येयम्) अपरिमेयम् (स्वम्) धनम् (अस्मिन्) परमात्मनि (निविष्टम्) स्थापितम् (तत्) धनम् (अस्य) ईश्वरस्य (घ्नन्ति) हन हिंसागत्योः। गच्छन्ति। प्राप्नुवन्ति (अभिपश्यतः) अवलोकमानस्य (एव) अवश्यम् (तस्मात्) कारणात् (देवः) स्तुत्यः परमात्मा (रोचते) प्रियो भवति (एषः) दृश्यमानः (एतत्) इदानीम् ॥

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    विषय

    देवः रोचते एष एतत्

    पदार्थ

    १. (अस्मिन्) = इस प्रभु में (शतम्) = सैकड़ों, (सहस्त्रम्) = हजारों, न्यर्बुदम् लक्षों व (असंख्येयम्) = गणनातीत (स्वम् धन निविष्टम्) = स्थापित है। (अस्य) = इस (अभिपश्यतः एव) = सब ओर देखते हुए प्रभु के (तत्) = इस तेज को ही (नन्ति) = सब सूर्य आदि लोक प्राप्त करते हैं। सूर्य आदि पिण्डों में अपना तेज नहीं, उनमें इस तेज को प्रभु ही स्थापित करते हैं। ('तस्य भासा सर्वमिदं विभाति')(तस्मात्) = उस कारण से (एतत्) = यह सूर्य आदि चमकता हुआ जो पिण्डमात्र है, (एष:) = यह (देव: रोचते) = प्रकाशमय प्रभु ही चमक रहा है, अर्थात् सूर्य, चन्द्र, तारा आदि में प्रभु की दीति ही दीप्त हो रही है।

    भावार्थ

    उस प्रभु में अनन्त ऐश्वर्य स्थापित है। सब ओर देखते हुए वे प्रभु ही इन सब पिण्डों को दीस करते हैं, अत: इन सूर्य आदि पिण्डों में प्रभु की दीप्ति ही दीप्त हो रही है।

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    भाषार्थ

    (शतम्) सौ (सहस्रम्) हजार (अयुतम्) दस हजार (न्यर्बुदम्) दस क्रोड़ (असंख्येम्) तथा असंख्यात (स्वम्) धन (अस्मिन्) इस [स्कम्भ-परमेश्वर] में (निविष्टम्) स्थित है। (अभिपश्यतः) साक्षात् देखते हुए (अस्य) इसके (तत्) उस धन को (घ्नन्ति एव) लोग प्राप्त करते ही रहते हैं, (तस्मात्) इससे (एषः) यह (देवः१) देव अर्थात् दाता (एतत् रोचते) इस रूप में रुचिकर होता है, प्रिय होता है।

    टिप्पणी

    [परमेश्वर असंख्यात धन का स्वामी है। इस स्वामी से पूछे बिना, लोग इसके देखते-देखते इसके धन को हथियाते रहते हैं, तब भी परमेश्वर इन्हें कुछ कहता नहीं, अतः इस रूप में परमेश्वर सब को प्रिय लगता है। वह है देव१ अर्थात् सब का दाता। घ्नन्ति= हन् गतौ, प्राप्तौ। न्यर्बुदम् = दस क्रोड (यजु० १७।७)]। [१. "देवो दानाद् वा" (निरुक्त ७।४।१५)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Jyeshtha Brahma

    Meaning

    Hundred, thousand, ten thousand, million, hundred million, uncountable, are the wealths of its own Prakrtic mutations concentred in this Supreme Divinity. People receive and benefit from them while he overwatches them all. For this reason this divine, infinitely generous Brahma, is dear and adorable.

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    Translation

    A hundred, a thousand, ten thousand, a hundred million, an innumerable wealth is laid in Him. That they strike upon even as He looks on. And therefrom this Lord shines forth here. (Satam = 100; sahasram = 1000; ayutam = 10000; nyarbudam= a hundred million)

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    Translation

    A hundred, thousand, myriad hundred million ye innumerable powers are held in Him. All the worlds aminate or imanimate attain that power from Him who beholds even all. Therefore this mighty God illuminate this world.

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    Translation

    A hundred, thousand, myriad, Yea a hundred million stores of wealth are laid in God. This wealth the men obtains as He looks on, and that is why He is loved by all.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−(शतम्) (सहस्रम्) (अयुतम्) दशस्रहस्रम् (न्यर्बुदम्) दशकोटिसंख्याकम् (असंख्येयम्) अपरिमेयम् (स्वम्) धनम् (अस्मिन्) परमात्मनि (निविष्टम्) स्थापितम् (तत्) धनम् (अस्य) ईश्वरस्य (घ्नन्ति) हन हिंसागत्योः। गच्छन्ति। प्राप्नुवन्ति (अभिपश्यतः) अवलोकमानस्य (एव) अवश्यम् (तस्मात्) कारणात् (देवः) स्तुत्यः परमात्मा (रोचते) प्रियो भवति (एषः) दृश्यमानः (एतत्) इदानीम् ॥

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