अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 27
ऋषिः - कुत्सः
देवता - आत्मा
छन्दः - भुरिग्बृहती
सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
0
त्वं स्त्री त्वं पुमा॑नसि॒ त्वं कु॑मा॒र उ॒त वा॑ कुमा॒री। त्वं जी॒र्णो द॒ण्डेन॑ वञ्चसि॒ त्वं जा॒तो भ॑वसि वि॒श्वतो॑मुखः ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । स्त्री । त्वम् । पुमा॑न् । अ॒सि॒ । त्वम् । कु॒मा॒र: । उ॒त । वा॒ । कु॒मा॒री । त्वम् । जी॒र्ण: । द॒ण्डेन॑ । व॒ञ्च॒सि॒ । त्वम् । जा॒त: । भ॒व॒सि॒ । वि॒श्वत॑:ऽमुख: ॥८.२७॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उत वा कुमारी। त्वं जीर्णो दण्डेन वञ्चसि त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम् । स्त्री । त्वम् । पुमान् । असि । त्वम् । कुमार: । उत । वा । कुमारी । त्वम् । जीर्ण: । दण्डेन । वञ्चसि । त्वम् । जात: । भवसि । विश्वत:ऽमुख: ॥८.२७॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
पदार्थ
[हे जीवात्मा !] (त्वम्) तू (स्त्री) स्त्री, (त्वम्) तू (पुमान्) पुरुष, (त्वम्) तू (कुमारः) कुमार [लड़का], (उत वा) अथवा (कुमारी) कुमारी [लड़की] (असि) है। (त्वम्) तू (जीर्णः) स्तुति किया गया [होकर] (दण्डेन) दण्ड [दमनसामर्थ्य] से (वञ्चसि) चलता है, (त्वम्) तू (विश्वतोमुखः) सब ओर मुखवाला [बड़ा चतुर होकर] (जातः) प्रसिद्ध (भवसि) होता है ॥२७॥
भावार्थ
जैसे परमात्मा में कोई लिङ्ग विशेष नहीं है, वैसे ही जीवात्मा में विशेष चिह्न नहीं है। वह शरीर के सम्बन्ध से स्त्री-पुरुष लड़का-लड़की आदि होता है, और शत्रुओं का दमन करके सब ओर दृष्टि करता हुआ धर्मात्मा होकर स्तुति और कीर्ति पाता है ॥२७॥
टिप्पणी
२७−(त्वम्) हे जीवात्मन् (स्त्री) (त्वम्) (पुमान्) पुरुषः (असि) (त्वम्) (कुमारः) बालकः (उत वा) अथवा (कुमारी) बालिका (त्वम्) (जीर्णः) जॄ स्तुतौ-क्त। जरा स्तुतिर्जरतेः स्तुतिकर्मणः निरु० १०।८। स्तुतः (दण्डेन) ञमन्ताड् डः। उ० १।११४। दमु उपशमे−ड, यद्वा, दण्ड दण्डनिपातने-अच्। दमनसामर्थ्येन। दण्डदानेन (वञ्चसि) वञ्चु गतौ प्रतरणे च। गच्छसि (त्वम्) (जातः) प्रसिद्धः (विश्वतोमुखः) विश्वेषु कर्मसु मुखं यस्य सः। महाविचक्षणः। ॥
विषय
विविधरूपों में
पदार्थ
१. हे जीवात्मन् ! (त्वम्) = तू इस शरीर-गृह में निवास करता हुआ (स्त्री) = स्त्री होता है, (त्वं पुमान् असि) = तू ही पुमान् होता है। (त्वं कुमार:) = तू कुमार होता है, (उत वा) = अथवा (कुमारी) = कुमारी के रूप में होता है। इसप्रकार कभी नर व कभी मादा के रूप में जन्म लेता है। २. (त्वम्) = तू ही जीर्ण: जीर्णशक्तिवाला होकर (दण्डेन वञ्चसि) = दण्ड के सहारे गतिवाला होता है। (त्वम्) = तु (जात:) = उत्पन्न हुआ-हुआ-शरीर को धारण किये हुए-(विश्वतोमुखः भवसि) = सब ओर मुखवाला होता है। बहिर्मुखी इन्द्रियों से चारों ओर दूर-दूर तक देखनेवाला व विषयों को भोगनेवाला बनता
भावार्थ
जीव शरीर में निवास करता हुआ 'पुरुष, स्त्री, कुमार व वृद्ध' के रूपों में होता है। शरीर में रहता हुआ यह चारों ओर दूर-दूर तक देखनेवाला व विषयों का उपभोग करनेवाला बनता है।
भाषार्थ
(त्वम्) तू (स्त्री) स्त्री (त्वम्) तू (पुमान्) पुरुष (असि) हो जाता है (त्वम्) तू (कुमारः) कुमार (उत वा) तथा (कुमारी) कुमारी हो जाता है। (स्तम्) तू (जीर्णः) बूढ़ा हो जाता है (दण्डेन) तो दण्डे के साथ (वञ्चसि) चलता है (त्वम्) तू (विश्वतोमुखः) नाना अर्थात् भिन्न-भिन्न मुखों वाला (जातः भवसि) जन्म लेता है।
टिप्पणी
[मन्त्र में प्रसङ्गवश जीवात्मा का वर्णन है। मन्त्र २६ में जीवात्मा का प्रासङ्गिक वर्णन हुआ है, और "जजार" द्वारा उस की जीर्णता का कथन किया है। मन्त्र २७ में भी "जीर्णः" द्वारा जीवात्मा के देह की जरावस्था को सूचित किया है। वही जीवात्मा स्त्री-पुमान् आदि रूप में जन्म लेता हुआ विश्वतोमुख होता रहता है। यह सब उस के कर्मों का फल है। (चकार)।]
विषय
(जीवात्मा खण्ड) जीव
शब्दार्थ
हे आत्मन् ! (त्वं स्त्री) तू स्त्री है (त्वम् पुमान् असि) तू पुरुष है (त्वं कुमार:) तू कुमार है (उत वा) अथवा (कुमारी) तू कुमारी है ( त्वं जीर्ण:) तू बूढ़ा होकर (दण्डेन वञ्चसि) दण्ड हाथ में लेकर चलता है (त्वम्) तू ही (जात:) शरीर-रूप में उत्पन्न होकर, शरीर के साथ संयुक्त होकर (विश्वतः मुख:) नाना प्रकार का (भवति) हो जाता है ।
भावार्थ
आत्मा क्या है ? उसका न कोई रंग है न रूप, न ही कोई लिङ्ग है । वह जैसा शरीर धारण कर लेता है वैसा ही कहा और पुकारा जाता है । जब आत्मा का संयोग पुरुष-शरीर के साथ हो जाता है तो उसे, पुरुष कहकर सम्बोधित किया जाता है। जब आत्मा स्त्री-शरीर में प्रविष्ट हो जाता है तो उसे स्त्री कहकर पुकारा जाता है। इसी प्रकार अवस्था के अनुसार उसे कुमार अथवा कुमारी कहा जाता है । जब मनुष्य बूढ़ा होकर दण्ड लेकर चलता है तो उसे वृद्ध कहते हैं । इस प्रकार आत्मा शरीर के साथ संयुक्त होकर नाना प्रकार का हो जाता है ।
इंग्लिश (4)
Subject
Jyeshtha Brahma
Meaning
O soul, you are man, you are woman, you are the boy and/or the girl. Grown old in body, you walk with a stick. As you are born in body you take the many forms of life in conformity with the body-state in time.
Translation
You are the female; also you are the male; you are a lad as well as a damsel. It is you, who growing old, totter with a staff (dandena). When coming into existence, you are face to face with each and every thing.
Translation
O individual soul! in accordance with thine actions thou assument the form of a woman and that of a man, sometimes thou be comest a bachelor and sometimes thou becomest a virgin. Thou walkest with the help of a staff when thy body becomes old and frail, thou takest ......birth again and again as thy face is turned towards all directions (in accordance by thy actions).
Translation
O soul, thou art a woman, and a man, thou art a boy, and a damsel. Grown old thou totterest with a staff. Assuming the physical body, thou appearest in different forms.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२७−(त्वम्) हे जीवात्मन् (स्त्री) (त्वम्) (पुमान्) पुरुषः (असि) (त्वम्) (कुमारः) बालकः (उत वा) अथवा (कुमारी) बालिका (त्वम्) (जीर्णः) जॄ स्तुतौ-क्त। जरा स्तुतिर्जरतेः स्तुतिकर्मणः निरु० १०।८। स्तुतः (दण्डेन) ञमन्ताड् डः। उ० १।११४। दमु उपशमे−ड, यद्वा, दण्ड दण्डनिपातने-अच्। दमनसामर्थ्येन। दण्डदानेन (वञ्चसि) वञ्चु गतौ प्रतरणे च। गच्छसि (त्वम्) (जातः) प्रसिद्धः (विश्वतोमुखः) विश्वेषु कर्मसु मुखं यस्य सः। महाविचक्षणः। ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal