अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 38
ऋषिः - कुत्सः
देवता - आत्मा
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
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वेदा॒हं सूत्रं॒ वित॑तं॒ यस्मि॒न्नोताः॑ प्र॒जा इ॒माः। सूत्रं॒ सूत्र॑स्या॒हं वे॒दाथो॒ यद्ब्राह्म॑णं म॒हद् ॥
स्वर सहित पद पाठवेद॑ । अ॒हम् । सूत्र॑म् । विऽत॑तम् । यस्मि॑न् । आऽउ॑ता: । प्र॒ऽजा: । इ॒मा: । सूत्र॑म् । सूत्र॑स्य । अ॒हम् । वे॒द॒ । अथो॒ इति॑ । यत् । ब्राह्म॑णम् । म॒हत् ॥८.३८॥
स्वर रहित मन्त्र
वेदाहं सूत्रं विततं यस्मिन्नोताः प्रजा इमाः। सूत्रं सूत्रस्याहं वेदाथो यद्ब्राह्मणं महद् ॥
स्वर रहित पद पाठवेद । अहम् । सूत्रम् । विऽततम् । यस्मिन् । आऽउता: । प्रऽजा: । इमा: । सूत्रम् । सूत्रस्य । अहम् । वेद । अथो इति । यत् । ब्राह्मणम् । महत् ॥८.३८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।
पदार्थ
(अहम्) मैं (विततम्) फैले हुए (सूत्रम्) सूत्र [तागे समान कारण] को (वेद) जानता हूँ, (यस्मिन्) जिस [सूत वा कारण] में (इमाः) ये (प्रजाः) प्रजाएँ (ओताः) ओत-प्रोत हैं। (अथो) और भी (अहम्) मैं (सूत्रस्य) सूत्र [कारण] के (सूत्रम्) सूत्र [कारण] को (वेद) जानता हूँ, (यत्) जो (महत्) बड़ा (ब्राह्मणम्) ब्राह्मण [ब्रह्मज्ञान] है ॥३८॥
भावार्थ
मनुष्य कार्य, कारण और आदिकारण ब्रह्म को साक्षात् करके ब्रह्मज्ञान का उपदेश करे ॥३८॥
टिप्पणी
३८−(वेद) जानामि (अहम्) विवेकी (अथो) अपि च। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३७ ॥
विषय
सूत्रस्य सूत्रम्
पदार्थ
१. (यः) = जो उस (विततं सूत्रम्) = फैले हुए सूत्र को (विद्यात्) = जानता है, (यस्मिन्) = जिसमें कि (इमा: प्रजा:) = ये सब प्रजाएँ (ओता:) = ओत-प्रोत हैं। उस (सूत्रस्य सूत्रम्) = सूत्र के भी सूत्र को सर्वोपरि सूत्र को-(य: विद्यात्) = जो जानता है, (सः) = वह (महत् ब्राह्मणं विद्यात्) = उस महान् ज्ञानस्वरूप प्रभु को जानता है । वे ब्रह्म ही तो वह सूत्र हैं जिसमें कि सब लोक-लोकान्तर ग्रथित हुए-हुए हैं। २. (अहम्) = मैं उस (विततं सूत्रम्) = फैले हुए सूत्र को वेद-जानता हूँ, (यस्मिन्) = जिसमें कि (इमाः प्रजाः ओता:) = ये सब प्रजाएँ ओत-प्रोत हैं। (अथो) = और अब (अहम्) = मैं (सूत्रस्य सूत्रं) = वेद-सूत्र के सूत्र को सर्वोपरि सूत्र को जानता हूँ (यत्) = जोकि (महत् ब्राह्मणम्) = महनीय ज्ञानस्वरूप ब्रह्म है।
भावार्थ
प्रभु वे सूत्र हैं, जिनमें कि ये सब लोक-लोकान्तररूप पिण्ड पिरोये हुए हैं। ('मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव') ऐसा गीता में कहा है। यजु:०३२.१२ में भी कहते हैं कि ('ऋतस्य तन्तुं विततं विनृत्य तदपश्यत्तदभवत्तदासीत्') = वे प्रभु'ऋत के फैले हुए तन्तु' ही हैं।
भाषार्थ
(अहम्) मैं (वेद) जानता हूँ (विततम्) विविध रूपों में फैले हुए (सूत्रम्) सूत्र को, (यस्मिन्) जिस में (इमाः प्रजाः) ये प्रजाएं (ओताः) बुनी हुई हैं। तथा (सूत्रस्य) सूत्र के (सूत्रम्) सूत्र को (अहम्, वेद) मैं जानता हूं, (अथ) और (ब्राह्मण महत्) महत्-ब्रह्म को या महावेदवेत्ता ब्रह्म को जानता हूँ।
इंग्लिश (4)
Subject
Jyeshtha Brahma
Meaning
I know the web of life spread around, into which are woven all these forms of creation including humanity, and I know the one essential and universal thread running through the entire web, the one that is the Mahad-Brahma, Supreme Brahma, its power and its creation.
Translation
I have realized the wide-spread thread, into which these creatures have been woven, and I have realized the thread of the thread and also that, which is the great Lord supreme.
Translation
I know the All-spreading Cord wherein are inter-woven all the creatures. I know the cord of the cords, hence know the Supreme Being.
Translation
I know the Vast Matter, on which all these creatures are strung. I know the Efficient Cause of Matter, Who is God the Almighty.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३८−(वेद) जानामि (अहम्) विवेकी (अथो) अपि च। अन्यत् पूर्ववत्−म० ३७ ॥
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