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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 36
    ऋषिः - कुत्सः देवता - आत्मा छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
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    इ॒मामे॑षां पृथि॒वीं वस्त॒ एको॒ऽन्तरि॑क्षं॒ पर्येको॑ बभूव। दिव॑मेषां ददते॒ यो वि॑ध॒र्ता विश्वा॒ आशाः॒ प्रति॑ रक्ष॒न्त्येके॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒माम् । ए॒षा॒म् । पृ॒थि॒वीम् । वस्ते॑ । एक॑: । अ॒न्तरि॑क्षम् । परि॑ । एक॑: । ब॒भू॒व॒ । दिव॑म् । ए॒षा॒म् । द॒द॒ते॒ । य: । वि॒ऽध॒र्ता । विश्वा॑: । आशा॑: । प्रति॑ । र॒क्ष॒न्ति॒ । एके॑ ॥८.३६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमामेषां पृथिवीं वस्त एकोऽन्तरिक्षं पर्येको बभूव। दिवमेषां ददते यो विधर्ता विश्वा आशाः प्रति रक्षन्त्येके ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमाम् । एषाम् । पृथिवीम् । वस्ते । एक: । अन्तरिक्षम् । परि । एक: । बभूव । दिवम् । एषाम् । ददते । य: । विऽधर्ता । विश्वा: । आशा: । प्रति । रक्षन्ति । एके ॥८.३६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 36
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।

    पदार्थ

    (एषाम्) इन [दिव्य पदार्थों] में से (एकः) एक [जैसे अग्नि] (इमाम्) इस (पृथिवीम्) पृथिवी को (वस्ते) ढकता है, (एकः) एक [जैसे वायु] ने (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष [मध्यलोक] को (परि बभूव) घेर लिया है। (येषाम्) इन में (यः) जो (विधर्ता) विविध प्रकार धारण करनेवाला है [जैसे वायु], वह (दिवम्) प्रकाश को (ददते) देता है, (एकः) कोई एक [दिव्य पदार्थ] (विश्वाः) सब (आशाः प्रति) दिशाओं में (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं ॥३६॥

    भावार्थ

    यह गत मन्त्र का उत्तर है। यद्यपि विशेष करके अग्नि पृथिवी का, वायु अन्तरिक्ष का और सूर्य प्रकाश का रक्षक है। तथापि यह अन्य सब चन्द्र नक्षत्र आदि लोकों के परस्पर रक्षक हैं ॥३६॥ भगवान् यास्क मुनि ने निरु० ७।५। में लिखा है−“निरुक्तज्ञाता मानते हैं कि तीन ही देव हैं, अग्नि पृथिवीस्थानी, वायु वा इन्द्र अन्तरिक्षस्थानी, सूर्य द्युस्थानी। उनकी बड़ी महिमा के कारण एक-एक के बहुत नाम होते हैं। अथवा कर्म के अलग-अलग होने से जैसे होता, अध्वर्यु, ब्रह्मा, उद्गाता यह एक के होने से [एक ही के बहुत नाम हैं] अथवा वे अलग-अलग होवें, क्योंकि [उनकी] अलग-अलग स्तुतियाँ हैं, वैसे ही [अलग-अलग] नाम हैं” ॥

    टिप्पणी

    ३६−(इमाम्) दृश्यमानाम् (एषाम्) दिव्यपदार्थानां मध्ये (वस्ते) आच्छादयति (एकः) अग्निर्यथा (अन्तरिक्षम्) (एकः) वायुर्यथा (परि बभूव) आच्छादितवान् (दिवम्) प्रकाशम् (एषाम्) (ददते) दद दाने। ददाति (यः) (विधर्ता) विविधं धारकः सूर्यो यथा (आशाः) पूर्वादयो दिशाः (प्रति) लक्ष्यीकृत्य (रक्षन्ति) (एके) अन्ये। चन्द्रनक्षत्रादयः ॥

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    विषय

    'अग्नि, वायु, सूर्य'

    पदार्थ

    १. (एषां एक:) = इन देवों में से एक 'अग्नि' नामक देव (इमां पृथिवीं वस्ते) = इस पृथिवी को आच्छादित करता है। एक-एक 'वायु' नामक देव (अन्तरिक्षं परि बभूव) = अन्तरिक्ष को व्याप्त कर रहा है। (एषाम्) = इनमें से एक 'सूर्य' नामक देव (दिवं ददते) = धुलोक को धारण करता है [दधते], वह सूर्य (यः) = जोकि (विधर्ता) = सब प्रजाओं का धारण करनेवाला है-('प्राण: प्रजानामुदयत्येष सूर्यः')(एके) = कई चन्द्र-नक्षत्रादि देव (विश्वाः आशाः प्रतिरक्षन्ति) = सब दिशाओं का रक्षण कर रहे हैं। वे देव ही इन सब पिण्डों के अधिष्ठातृदेव कहलाते हैं। इन सब देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले वे सर्वमहान् देव ही प्रभु हैं, ब्रह्म हैं।

    भावार्थ

    अग्नि' देव पृथिवी का धारण करता है, तो वायुदेव अन्तरिक्ष में व्याप्त हो रहा है। सूर्य धुलोक का अधिष्ठातृदेव है और यह सब प्राणियों का धारण कर रहा है। इनके अतिरिक्त चन्द्र-नक्षत्रादि देव सब दिशाओं के रक्षण का निमित्त बन रहे हैं। इन सब देवों को देवत्व प्राप्त करानेवाले प्रभु की महिमा को हम इन सब देवों में देखने का प्रयत्न करें।

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    भाषार्थ

    (एषाम्) इन [देवों] में (एकः) एक [पार्थिवाग्नि] (इमाम, पृथिवीम्) इस पृथिवी को (वस्ते) आच्छादित करती या ओढ़ती है, (एकः) एक [वायु] (अन्तरिक्षम्) अन्तरिक्ष को (परिबभूव) घेरे हुए है। (एषाम्) इन में (यः) जो (विधर्ता) विविध सौरमण्डल को धारण करता है वह सूर्य (दिवम्) प्रकाश या दिन (ददते) प्रदान करता है, (एके) ये तीनों (विश्वाः आशाः) सब दिशाओं की (प्रति रक्षन्ति) रक्षा करते हैं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र ३५ में "कतमे” द्वारा प्रश्न किया है, और मन्त्र ३६ में उत्तर दिया है। वस्ते = वस आच्छादने (भ्वादिः)। पृथिवीस्थ काष्ठादि में अग्नि विद्यमान होकर, पृथिवी को आच्छादित करती है; और अग्नि पृथिवी के गर्भ में भी है, अतः पृथिवी इसकी ओढ़नी है। यह ज्वालामुखी पर्वतों, तथा दावाग्नि रूप में प्रकट होती रहती है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Jyeshtha Brahma

    Meaning

    Of these divinities, one, Agni, pervades and covers the earth, another, Vayu, covers the middle regions all over, of these and over these, one, the sun that holds the solar system, gives the light of heaven, and all these pervade and protect all directions of space.

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    Translation

    One of them resides on the earth; one has pervaded the midspace; one among them, who is the main supporter, holds the sky; some of them guard all the quarters.

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    Translation

    This Agni which is one of them resides in the earth, the other one, the air pervades the atmosphere, the third one of them, the Sun which is the support of many worlds holds the heavenly region and there are some ones like moon and stars which guard all the regions.

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    Translation

    One of these, forces, the fire, inhabiteth the earth, another, i.e., air hath encompassed the atmosphere. One, the Sun, the supporter in diverse ways gives light. Some keeping watch guard all the quarters safely.

    Footnote

    Some refer to Moon and other planets.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३६−(इमाम्) दृश्यमानाम् (एषाम्) दिव्यपदार्थानां मध्ये (वस्ते) आच्छादयति (एकः) अग्निर्यथा (अन्तरिक्षम्) (एकः) वायुर्यथा (परि बभूव) आच्छादितवान् (दिवम्) प्रकाशम् (एषाम्) (ददते) दद दाने। ददाति (यः) (विधर्ता) विविधं धारकः सूर्यो यथा (आशाः) पूर्वादयो दिशाः (प्रति) लक्ष्यीकृत्य (रक्षन्ति) (एके) अन्ये। चन्द्रनक्षत्रादयः ॥

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