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अथर्ववेद के काण्ड - 10 के सूक्त 8 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 8/ मन्त्र 31
    ऋषिः - कुत्सः देवता - आत्मा छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - ज्येष्ठब्रह्मवर्णन सूक्त
    1

    अवि॒र्वै नाम॑ दे॒वत॒र्तेना॑स्ते॒ परी॑वृता। तस्या॑ रू॒पेणे॒मे वृ॒क्षा हरि॑ता॒ हरि॑तस्रजः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अवि॑: । वै । नाम॑ । दे॒वता॑ । ऋ॒तेन॑ । आ॒स्ते॒ । परि॑ऽवृता । तस्या॑: । रू॒पेण॑ । इ॒मे । वृ॒क्षा: । हरि॑ता: । हरि॑तऽस्रज: ॥८.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अविर्वै नाम देवतर्तेनास्ते परीवृता। तस्या रूपेणेमे वृक्षा हरिता हरितस्रजः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अवि: । वै । नाम । देवता । ऋतेन । आस्ते । परिऽवृता । तस्या: । रूपेण । इमे । वृक्षा: । हरिता: । हरितऽस्रज: ॥८.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 10; सूक्त » 8; मन्त्र » 31
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    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के स्वरूप का उपदेश।

    पदार्थ

    (अविः) रक्षक (वै) ही (नाम) नाम (देवता) देवता [दिव्य शक्ति, परमात्मा] (ऋतेन) सत्यज्ञान से (परिवृता) घिरा हुआ (आस्ते) स्थित है। (तस्याः) उस [देवता] के (रूपेण) रूप [स्वभाव] से (इमे) यह (हरिताः) हरे (वृक्षाः) वृक्ष (हरितस्रजः) दाख [समान फलों] की मालावाले हैं ॥३१॥

    भावार्थ

    ज्ञानस्वरूप परमात्मा सर्वरक्षक प्रसिद्ध है, उसी की दया से यह हरे-हरे वृक्ष आदि प्राणियों को फल आदि से सुखदायक होते हैं ॥३१॥

    टिप्पणी

    ३१−(अविः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अव रक्षणादिषु-इन्। रक्षिका (वै) एव (नाम) संज्ञा (देवता) दिव्यगुणा शक्तिः परमेश्वरः (ऋतेन) सत्यज्ञानेन (आस्ते) तिष्ठति (परिवृता) आच्छादिता (तस्याः) देवतायाः (रूपेण) स्वभावेन (इमे) दृश्यमानाः (वृक्षाः) तरवः (हरिताः) हरितवर्णाः (हरितस्रजः) हरिता कपिलद्राक्षा-इति शब्दकल्पद्रुमः, हरित एव हरिताः। द्राक्षावत् फलानां स्रजो मालाः सन्ति येषां ते ॥

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    विषय

    अवि

    पदार्थ

    १. वे प्रभु बै-निश्चय से (अवि: नाम देवता) = [अव रक्षणे] 'रक्षक' इस नामवाली देवता हैं। प्रभु सबके रक्षक हैं, अत: उनका नाम 'अवि' है। ये प्रभु ऋतेन परीवृता आस्ते-ऋत से परिवृत हुए-हुए विद्यमान हैं। प्रभु में अनृत सम्भव नहीं। वे सत्यस्वरूप हैं-सत्य ही हैं। २. तस्याः -उस ऋत से परिवृत "अवि' नामवाली देवता के रूपेण-सौन्दर्य, प्रकाश [Beauty, elegance, grace] से इमे वृक्षा:-ये वृक्ष हरिता:-हरे-भरे हैं और हरितस्त्रज:-हरे-भरे पत्तों की मालाओंवाले हैं। वृक्षों को पत्तों द्वारा सौन्दर्य वे प्रभु ही प्राप्त करा रहे हैं।

    भावार्थ

    प्रभु सबके रक्षक और सत्यस्वरूप हैं। उसी की कृपा से ये वृक्ष हरे-भरे हैं।

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    भाषार्थ

    (अविः) रक्षा करने वाली (नाम देवता) प्रसिद्ध देवता (ऋतेन) सत्य ब्रह्म द्वारा (परीवृता) सब ओर से आवृत अर्थात् घिरी हुई (आस्ते) स्थित है। (तस्याः) उसके (रूपेण) रूप अर्थात् प्रकाश द्वारा (इमे) ये (वृक्षाः) वृक्ष (हरिताः) हरे हैं (हरितस्रजः) और हरी मालाओं वाले हैं।

    टिप्पणी

    [अविः१=अव रक्षणे; (भ्वादिः) रक्षा करने वाला सूर्य। अविः = The sun (आप्टे)। ऋतेन = "ऋतम् सत्यनाम" (निघं० ३।१०)। अभिप्राय है "सत्यब्रह्म" (यजु० ४०।१७)। सूर्य के प्रकाश द्वारा बृक्ष हरे हैं और लतारूपी हरी मालाओं वाले हैं। "ऋतम् उदकनाम" (निघं० १।१२)। वृक्ष हरे होते हैं सूर्य के प्रकाश द्वारा, तथा जलसेचन (२९) द्वारा। इस लिये मन्त्र में "ऋत" शब्द दो अर्थों वाला प्रयुक्त हुआ है। आस्ते = आस उपवेशने (अदादिः) सूर्य "आस्ते" अर्थात् एक स्थान में उपविष्ट है, स्थित है, स्थिर है, वह चलता नहीं]। [१. अवि का यौगिक अर्थ है रक्षक (अण रक्षणे, अदादिः)। सूर्य वस्तुतः पार्थिव वनस्पति-जगत् का तथा प्राणिजगत का रक्षक है। परन्तु रूढ्यर्थ में अवि का अर्थ है भेड़। भेड़ जाति की मादा को तो अवि कहते हैं, और नर को मैष। मन्त्र में अवि द्वारा मेषराशि भी विशेषतया सूचित की है। बसन्त ऋतु में सूर्य मेषराशि पर होता है, जबकि वनस्पतियों में नवप्राण का संचार होता है और वृक्ष तथा लताएं हरी-भरी होने लगती है, जिन का कि मन्त्र में "हरिताः हरितस्रजः" द्वारा वर्णन हुआ है। बसन्त से पूर्व शिशिर ऋतु होती है जब कि वनस्पतियों के पत्ते जीर्ण-शीर्ण हो जाते हैं, तभी शिशिर ऋतु को "पतझड़" भी कहते हैं, पत्ते झड़ने की ऋतु। अवि अर्थात् मेषराशि में स्थित सूर्य को लक्षणया अवि कहा है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Jyeshtha Brahma

    Meaning

    All protective is this power and presence covered in its own laws of nature’s mutability. By the light and form of its own might, the green trees wear the garland beauty of nature.

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    Translation

    Indeed there is a deity Avih (the protectress) by name, girt by divine law. With her beauty these trees are green, garlanded with green (leaves).

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    Translation

    Verily this Prakriti (matter in subtle state) is an illuminating substance which remains ever covered with the eternal law. The chain of these green trees are green through the virtue of this substance.

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    Translation

    Known by the name of Protector God rests girt by Eternal Truth. Through His grace, the green-garlanded trees have taken their robe of green.

    Footnote

    Green-garlanded: Having green leaves.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३१−(अविः) सर्वधातुभ्य इन्। उ० ४।११८। अव रक्षणादिषु-इन्। रक्षिका (वै) एव (नाम) संज्ञा (देवता) दिव्यगुणा शक्तिः परमेश्वरः (ऋतेन) सत्यज्ञानेन (आस्ते) तिष्ठति (परिवृता) आच्छादिता (तस्याः) देवतायाः (रूपेण) स्वभावेन (इमे) दृश्यमानाः (वृक्षाः) तरवः (हरिताः) हरितवर्णाः (हरितस्रजः) हरिता कपिलद्राक्षा-इति शब्दकल्पद्रुमः, हरित एव हरिताः। द्राक्षावत् फलानां स्रजो मालाः सन्ति येषां ते ॥

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