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अथर्ववेद के काण्ड - 12 के सूक्त 2 के मन्त्र
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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 31
    ऋषिः - भृगुः देवता - मृत्युः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - यक्ष्मारोगनाशन सूक्त
    1

    इ॒मा नारी॑रविध॒वाः सु॒पत्नी॒राञ्ज॑नेन स॒र्पिषा॒ सं स्पृ॑शन्ताम्। अ॑न॒श्रवो॑ अनमी॒वाः सु॒रत्ना॒ आ रो॑हन्तु॒ जन॑यो॒ योनि॒मग्रे॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मा: । नारी॑: । अ॒वि॒ध॒वा: । सु॒ऽपत्नी॑: । आ॒ऽअञ्ज॑नेन । स॒र्पिषा॑ । सम् । स्पृ॒श॒न्ता॒म् । अ॒न॒श्रव॑: । अ॒न॒मी॒वा: । सु॒ऽरत्ना॑: । आ । रो॒ह॒न्तु॒ । जन॑य: । योनि॑म् । अग्रे॑ ॥२.३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इमा नारीरविधवाः सुपत्नीराञ्जनेन सर्पिषा सं स्पृशन्ताम्। अनश्रवो अनमीवाः सुरत्ना आ रोहन्तु जनयो योनिमग्रे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमा: । नारी: । अविधवा: । सुऽपत्नी: । आऽअञ्जनेन । सर्पिषा । सम् । स्पृशन्ताम् । अनश्रव: । अनमीवा: । सुऽरत्ना: । आ । रोहन्तु । जनय: । योनिम् । अग्रे ॥२.३१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 2; मन्त्र » 31
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    हिन्दी (4)

    विषय

    राजा और प्रजा के कर्तव्य का उपदेश।

    पदार्थ

    (इमाः) यह [विदुषी] (नारीः) नारियाँ (अविधवाः) सधवा [मनुष्योंवाली] और (सुपत्नीः) धार्मिक पतियोंवाली होकर (आञ्जनेन) यथावत् मेल से और (सर्पिषा) घी आदि [सार पदार्थ] से (सं स्पृशन्ताम्) संयुक्त रहें। (अनश्रवः) बिना आसुओंवाली, (अनमीवाः) बिना रोगोंवाली, (सुरत्नाः) सुन्दर-सुन्दर रत्नोंवाली (जनयः) माताएँ (अग्ने) आगे-आगे (योनिम्) मिलने के स्थान [घर, सभा आदि] में (आ रोहन्तु) चढ़ें ॥३१॥

    भावार्थ

    जो विदुषी स्त्रियाँ ब्रह्मचर्य आदि शुभ गुणवाली होती हैं, वे अपने विद्वान् सुयोग्य कुटुम्बियों, पतियों और पुत्र आदि के साथ शरीर और आत्मा से स्वस्थ रहकर बहुत धनवती और सुखवती होकर अग्रगामिनी बनती हैं ॥३१॥ यह मन्त्र आगे है−अ० १८।३।५७। और कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१०।१८।७ ॥

    टिप्पणी

    ३१−(इमाः) विदुष्यः (नारीः) नार्यः (अविधवाः) धूञ् धुञ् वा कम्पने−पचाद्यच्, यद्वा, धावु गतिशुद्ध्योः−पचाद्यच्, ह्रस्वः पृषोदरादित्वात्। धवाः=मनुष्याः−निघ० २।३। विधवा विधातृका भवति विधवनाद्वा विधावनाद्वेति घर्मशिरा अपि वा धव इति मनुष्यनाम तद्वियोगाद् विधवा−निरु० ३।१५। सधवाः। समनुष्याः (सुपत्नीः) धार्मिकपतिकाः (आञ्जनेन) आङ्+अञ्जू म्रक्षणे−ल्युट्। समन्ताद् मेलनेन (सर्पिषा) धृतादिसारपदार्थेन (संस्पृशन्ताम्) संयुक्ता भवन्तु (अनश्रवः) अश्रुवर्जिताः। अरुदत्यः (अनमीवाः) अरोगाः। शारीरिकमानसिकदुःखवर्जिताः (सुरत्नाः) बहुमूल्यधनोपेताः (आ रोहन्तु) अधितिष्ठन्तु (जनयः) जनन्यः मातरः (योनिम्) मिश्रणस्थानम्। गृहम्। समाजम् (अग्रे) प्रधाने स्थाने ॥

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    विषय

    पत्नी

    पदार्थ

    १. (इमा: नारी:) = ये स्त्रियाँ (अविधवा:) = विधवा न हों-पतियों से वियुक्त न हों। (सुपत्नी) = उत्तम पतियोवाली होती हुई (आञ्जनेन) = [अञ्जनं Fire] अग्निहोत्र के साधनभूत (सर्पिषा संस्पृशन्ताम्) = घृत से युक्त हों। सदा घृत से अग्निहोत्र करनेवाली हों। २. (अनश्रव:) = ये आसुओं से रहित हों। (अनमीवा:) = रोगरहित हों। (सरत्ना:) = उत्तम रमणीय धनोंवाली हों। ये (जनयः) = उत्तम सन्तानों को जन्म देनेवाली देवियाँ (योनिम् अग्ने आरोहन्तु) = घर में आगे आरोहण करें-अर्थात् घरों में आदरणीय स्थानों में आरूढ़ हों।

    भावार्थ

    पत्नी की स्थिति जितनी उत्कृष्ट होगी, उतना ही घर उत्तम बनेगा। ये कष्ट में न हों, नीरोग हों, रमणीय धनोंवाली हों। अग्निहोत्र करनेवाली हों।

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    भाषार्थ

    (अविधवाः) न विधवा अर्थात् जीवित पतियों वाली, (सुपत्नीः) उत्तम-पत्नियां - (इमाः नारीः) अर्थात् ये नारियां (आञ्जनेन=अञ्जनेन) अञ्जन, (सर्पिषा) और पिघले घृत के साथ (संस्पृशन्ताम्) संस्पर्श किया करें। (अनश्रवः) आसुवों से रहित अर्थात् सदा सुप्रसन्न (अनमीवाः) रोगरहित (सुरत्नाः) आभूषणों द्वारा सुभूषित, (जनयः) सन्तानोत्पादिका ये नारियां, (योनिम्) घर में (अग्रे) पतियों के आगे-आगे होकर (आरोहन्तु) चढ़ा करें, प्रवेश पाया करें।

    टिप्पणी

    [आरोहन्तु = घर की नींव पृथिवीतल से ऊंची और सीढ़ियों वाली होनी चाहिये। योनिः गृहनाम (निघण्टु ३।४)। संस्पृशन्ताम् = अञ्जन द्वारा आंखों का तथा सर्पिः द्वारा शरीर का स्पर्श]।

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    विषय

    क्रव्यात् अग्नि का वर्णन, दुष्टों का दमन और राजा के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    (इमाः) ये (नारी:) नारियें (अविधवाः) कभी विधवाएं न हों. बल्कि (सुपत्नीः) उत्तम गृहपत्नियें रहकर नित्य (आञ्जनेन) आंजन अर्थात् शरीर पर मलने योग्य (घृतेन) घृत से (संस्पृशन्ताम्) अपने शरीरों को लगावें। और (अनमीवाः) निरोग रहें। (अनश्रवः) कभी आंसू न बहाया करें। (सुरत्नाः) सुन्दर रत्न भूषण धारण करें और (जनयः) पुत्रोत्पादन में समर्थ बधू होकर (अग्रे) सबसे प्रथम (योनिम्) घर में पलङ्ग पर और या एकत्र होने की सभा आदि स्थानों पर (आरोहन्तु) ऊँचे, श्रादर योग्य स्थान पर आदरपूर्वक विराजें। इसी प्रकार की ऋचा पुरुषों के लिये भी पैप्पलाद शाखा में और कौशिक सूत्रों में भी ऊहना की गयी है।

    टिप्पणी

    (द्वि०) ‘संविशन्तु’ इति ऋ०। ‘मृशन्ताम्’, (तृ०) ‘अनमीवाः सुरत्नाः’ इति तै० ब्रा०। ‘इमा: वीरा अविधवाः सुजन्या नराञ्जनेन सर्पिषा संस्पृशन्ताम्। अनश्रवो अनमीवाः सुरत्ना स्योनाद् योनेरधितल्पं वृहेयुः [ रुहेयुः ] ॥’ इति पैप्प० सं०, अधिका ऋक्। ‘इमे जीवा अविधावाः सुजामयः’ इत्यादि पुरुष विषयषिणी कौशिकसूत्रेषु चोदाहृता।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    भृगुर्ऋषिः। अग्निरुत मन्त्रोक्ता देवताः, २१—३३ मृत्युर्देवता। २, ५, १२, २०, ३४-३६, ३८-४१, ४३, ५१, ५४ अनुष्टुभः [ १६ ककुम्मती परावृहती अनुष्टुप्, १८ निचृद् अनुष्टुप् ४० पुरस्तात् ककुम्मती ], ३ आस्तारपंक्ति:, ६ भुरिग् आर्षी पंक्तिः, ७, ४५ जगती, ८, ४८, ४९ भुरिग्, अनुष्टुब्गर्भा विपरीत पादलक्ष्मा पंक्तिः, ३७ पुरस्ताद बृहती, ४२ त्रिपदा एकावसाना आर्ची गायत्री, ४४ एकावताना द्विपदा आर्ची बृहती, ४६ एकावसाना साम्नी त्रिष्टुप्, ४७ पञ्चपदा बार्हतवैराजगर्भा जगती, ५० उपरिष्टाद विराड् बृहती, ५२ पुरस्ताद् विराडबृहती, ५५ बृहतीगर्भा विराट्, १, ४, १०, ११, २९, ३३, ५३, त्रिष्टुभः। पञ्चपञ्चाशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Yakshma Nashanam

    Meaning

    And these women, noble wives happily married to their husbands, should anoint themselves with cream and collyrium, and let them, free from tears and sorrow, free from ill-health, wearing jewels and ornaments, go forward in life as proud mothers in their home.

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    Translation

    Let these women, not widows, well-spoused, touch themselves with ointment, with butter, tearless, without disease, with good treasures, let the wives ascend first to the place of union.

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    Translation

    Let these ladies be good wives of their respective good husbands, let these never be widows. Let them ador them selves with fragrant balm and unguent. Let these ladies dressed with ornaments, having no tear in eyes and enjoying good health occupy a high status in their homes.

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    Translation

    Let these unwidowed dames with goodly husbands adorn themselves with fragrant balms and unguent. Decked with fair jewels, tearless, sound and healthy, let the dames occupy a foremost position in the house.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३१−(इमाः) विदुष्यः (नारीः) नार्यः (अविधवाः) धूञ् धुञ् वा कम्पने−पचाद्यच्, यद्वा, धावु गतिशुद्ध्योः−पचाद्यच्, ह्रस्वः पृषोदरादित्वात्। धवाः=मनुष्याः−निघ० २।३। विधवा विधातृका भवति विधवनाद्वा विधावनाद्वेति घर्मशिरा अपि वा धव इति मनुष्यनाम तद्वियोगाद् विधवा−निरु० ३।१५। सधवाः। समनुष्याः (सुपत्नीः) धार्मिकपतिकाः (आञ्जनेन) आङ्+अञ्जू म्रक्षणे−ल्युट्। समन्ताद् मेलनेन (सर्पिषा) धृतादिसारपदार्थेन (संस्पृशन्ताम्) संयुक्ता भवन्तु (अनश्रवः) अश्रुवर्जिताः। अरुदत्यः (अनमीवाः) अरोगाः। शारीरिकमानसिकदुःखवर्जिताः (सुरत्नाः) बहुमूल्यधनोपेताः (आ रोहन्तु) अधितिष्ठन्तु (जनयः) जनन्यः मातरः (योनिम्) मिश्रणस्थानम्। गृहम्। समाजम् (अग्रे) प्रधाने स्थाने ॥

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