अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 12
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
1
यौ ते॒ श्वानौ॑यम रक्षि॒तारौ॑ चतुर॒क्षौ प॑थि॒षदी॑ नृ॒चक्ष॑सा। ताभ्यां॑ राज॒न्परि॑ धेह्येनंस्व॒स्त्यस्मा अनमी॒वं च॑ धेहि ॥
स्वर सहित पद पाठयौ । ते॒ । श्वानौ॑ । य॒म॒ । र॒क्षि॒तारौ॑ । च॒तु॒:ऽअ॒क्षौ । प॒थि॒सदी॒ इति॑ प॒थि॒ऽसदी॑ । नृ॒ऽचक्ष॑सा । ताभ्या॑म् । रा॒ज॒न् । परि॑ । धे॒हि॒ । ए॒न॒म् । स्व॒स्ति । अ॒स्मै॒ । अ॒न॒मी॒वम् । च॒ । धे॒हि॒ ॥२.१२॥
स्वर रहित मन्त्र
यौ ते श्वानौयम रक्षितारौ चतुरक्षौ पथिषदी नृचक्षसा। ताभ्यां राजन्परि धेह्येनंस्वस्त्यस्मा अनमीवं च धेहि ॥
स्वर रहित पद पाठयौ । ते । श्वानौ । यम । रक्षितारौ । चतु:ऽअक्षौ । पथिसदी इति पथिऽसदी । नृऽचक्षसा । ताभ्याम् । राजन् । परि । धेहि । एनम् । स्वस्ति । अस्मै । अनमीवम् । च । धेहि ॥२.१२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
समय के सुप्रयोग का उपदेश।
पदार्थ
(यम) हे संयमी मनुष्य ! (यौ) जो (चतुरक्षौ) चारो दिशाओं में व्यापक, (पथिषदी) मार्ग में बैठनेवाले, (नृचक्षसा) नेता पुरुषों से देखने योग्य (श्वानौ) दो चलनेवाले [राति-दिन] (ते)तेरे (रक्षितारौ) दो रक्षक हैं। (राजन्) है ऐश्वर्यवान् जीव ! (ताभ्याम्) उनदोनों [राति-दिन] को (एनम्) यह [अपना आत्मा] (परि धेहि) सौंप दे, और (अस्मै) इस [अपने आत्मा] को (स्वस्ति) सुन्दर सत्ता [बड़ा कल्याण] (च) और (अनमीवम्) नीरोगता (धेहि) दे ॥१२॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जो तुमपूर्ण भक्ति से अपने समय को धर्म में लगाओगे, तो तुम नीरोग रहकर सदा आनन्दभोगोगे ॥१२॥
टिप्पणी
१२−(यौ) रात्रिदिवसौ (ते) तव (श्वानौ) म० ११। गमनशीलौ (यम) हेसंयमिन् जीव (रक्षितारौ) रक्षकौ (चतुरक्षौ) म० ११। चतसृषु दिक्षु व्यापकौ (पथिषदी) षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-इन्। मार्गे सीदन्तौ व्यापकौ (नृचक्षसा)नेतृमनुष्यैर्द्रष्टव्यौ (ताभ्याम्) रात्रिदिवसाभ्याम् (राजन्) ऐश्वर्यवन् पुरुष (परि धेहि) डुधाञ् दाने। समर्पय (एनम्) स्वात्मानम् (स्वस्ति) सुसत्ताम्।महत्कल्याणम् (अस्मै) स्वात्मने (अनमीवम्) नैरोग्यम् (च) (धेहि) देहि ॥
विषय
उपादेय काम व मन्यु
पदार्थ
१. हे (यम) = सर्वनियन्ता प्रभो! (यौ) = जो (ते) = आपके (श्वानौ) = गति के द्वारा वृद्धि के कारणभूत (रक्षितारौ) = हमारे जीवन का रक्षण करनेवाले, (चतुरक्षौ) = चार आँखोंवाले, अर्थात् सदा सावधान, (पथिरक्षी) = मार्ग के रक्षक (नृचक्षसा) = [चक्ष् to look after] मनुष्यों का पालन करनेवाले काम व क्रोध [मन्यु] हैं, (ताभ्याम्) = उन दोनों के लिए (एनम्) = इस उपासक को (परिभेहि) = धारण कर, २. (च) = और हे (राजन) = संसार के शासक व व्यवस्थापक प्रभो! इन रक्षक काम व क्रोध के द्वारा (अस्मै) = इस पुरुष के लिए (स्वस्ति) = उत्तम स्थिति को-कल्याण को तथा (अनमीवम) = नीरोगता को (धेहि) = धारण कीजिए। काम-क्रोध प्रबल हुए तो ये मनुष्य को समाप्त कर देनेवाले होते हैं।'काम' शरीर को जीर्ण करता है तो क्रोध मन को अशान्त कर देता है। ये ही काम-क्रोध सीमा के अन्दर होने पर मनुष्य के रक्षक व पालक हो जाते हैं। काम उसे वेदाधिगम व वैदिक कर्मयोग में लगाकर उत्तम स्थिति प्राप्त कराता है और मन्यु [मर्यादित क्रोध] उसे उपद्रवों से आक्रान्त नहीं होने देता। फुफकारता हुआ सर्प चीटियों व क्षुद्र पशुओं से आक्रान्त नहीं होता-इसीप्रकार मन्युवान् होते हुए हम भी अनमीव' बने रहते हैं।
भावार्थ
वे काम-क्रोध जो अमर्यादित रूप में विनाशक होते हैं, वे मर्यादित होते हुए हमें 'स्वस्तिवान् व अनमीव' बनाएं।
भाषार्थ
(यम) हे जगन्नियामक ! (चतुरक्षौ) चार-चार आंखोंवाले, (पथिषदी) आत्मिकोन्नति के मार्ग में रुकावटरूप में स्थित, (नृचक्षसा) आगे न बढ़ने देने के लिये नर-नारियों पर दृष्टि रखनेवाले, (ते) आपके (यौ श्वानौ) जो दो कुत्ते हैं, (रक्षितारौ) जो मानो नर-नारियों के रक्षक बने हुए हैं, (राजन्) हे जगत्स्वामिन्! (ताभ्याम्) उन कुत्तों के द्वारा, आप ने इस के कर्मानुसार, (एनम्) इस नर-नारी जगत् पर (परि धेहि) घेरा डाल रखा है। (अस्मे) इस नर-नारी जगत् का हे प्रभो ! (स्वस्ति) आप कल्याण (धेहि) कीजिये, (अनमीवं च) और इसे अज्ञान के रोग से रहित कीजिये।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
O Yama, lord of time and laws of divine nature, those two, day and night, are your guardian sentinels of twelve hour duration each, all watching protective companions of humanity on way. O ruling lord of light, to their care entrust this soul. Let there be peace and well being for it all round, and bless it with good health and freedom from sin and ailment.
Translation
What two defending dogs thou hast, O Yama, four-eyed, sitting by the road, men watching with them, O King, do thou surround him: assign to him well-being and freedom from disease (also Rg.X14.11)
Translation
O All-controlling Lord, protect this man from those two doge i.e. day and night which are yours, which have their impact in four quarters of the space, which are protecting forces, which come in way of all the living creatures and have their effect on all the human-beings. O Lord give him prosperity and freedom from diseases.
Translation
O God, ever fleeting are thy day and nigh, they watch living beings, pervade all the four directions, guard our pathway, keep an eye on men! O God, protect this soul, with both of them on all sides, and endow it with prosperity and health.
Footnote
See Rig, 10-14-11.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१२−(यौ) रात्रिदिवसौ (ते) तव (श्वानौ) म० ११। गमनशीलौ (यम) हेसंयमिन् जीव (रक्षितारौ) रक्षकौ (चतुरक्षौ) म० ११। चतसृषु दिक्षु व्यापकौ (पथिषदी) षद्लृ विशरणगत्यवसादनेषु-इन्। मार्गे सीदन्तौ व्यापकौ (नृचक्षसा)नेतृमनुष्यैर्द्रष्टव्यौ (ताभ्याम्) रात्रिदिवसाभ्याम् (राजन्) ऐश्वर्यवन् पुरुष (परि धेहि) डुधाञ् दाने। समर्पय (एनम्) स्वात्मानम् (स्वस्ति) सुसत्ताम्।महत्कल्याणम् (अस्मै) स्वात्मने (अनमीवम्) नैरोग्यम् (च) (धेहि) देहि ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal