अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 5
ऋषिः - जातवेदा
देवता - भुरिक् त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
1
य॒दा शृ॒तंकृ॒णवो॑ जातवे॒दोऽथे॒ममे॑नं॒ परि॑ दत्तात्पि॒तृभ्यः॑। य॒दोगच्छा॒त्यसु॑नीतिमे॒तामथ॑ दे॒वानां॑ वश॒नीर्भ॑वाति ॥
स्वर सहित पद पाठय॒दा । शृ॒तम् । कृ॒णव॑: । जा॒त॒ऽवे॒द॒: । अथ॑ । इ॒मम् । ए॒न॒म् । परि॑ । द॒त्ता॒त् । पि॒तृऽभ्य॑: । य॒दो इति॑ । गच्छा॑ति । असु॑ऽनीतिम् । ए॒ताम् । अथ॑ । दे॒वाना॑म् । व॒श॒ऽनी: । भ॒वा॒ति॒ ॥२.५॥
स्वर रहित मन्त्र
यदा शृतंकृणवो जातवेदोऽथेममेनं परि दत्तात्पितृभ्यः। यदोगच्छात्यसुनीतिमेतामथ देवानां वशनीर्भवाति ॥
स्वर रहित पद पाठयदा । शृतम् । कृणव: । जातऽवेद: । अथ । इमम् । एनम् । परि । दत्तात् । पितृऽभ्य: । यदो इति । गच्छाति । असुऽनीतिम् । एताम् । अथ । देवानाम् । वशऽनी: । भवाति ॥२.५॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
आचार्य और ब्रह्मचारी के कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
(जातवेदः) हे प्रसिद्धज्ञानवाले ! [आचार्य] (यदा) जब (इमम्) इस [ब्रह्मचारी] को (शृतम्) [दृढ़ ज्ञानी] (कृणवः) तू कर लेवे, (अथ) तब (एनम्) इस [परिश्रमी] को (पितृभ्यः) पितरों [रक्षकविद्वानों] को (परि दत्तात्) तू दे दे। (यदो) जब ही वह (एताम्) इस (असुनीतिम्) बुद्धिके साथ नीति [उन्नति मार्ग] को (गच्छाति) पावे, (अथ) तब वह (देवानाम्) दिव्यपदार्थों का (वशनीः) वश में लानेवाला (भवाति) होवे ॥५॥
भावार्थ
जब ब्रह्मचारी आचार्यसे शिक्षा पाकर विद्वानों में गिना जावे, तब वह अपनी बुद्धि और विद्या के बल सेसंसार के स्थूल और सूक्ष्म पदार्थों के परीक्षण से उपकार करे ॥५॥
टिप्पणी
५−(यदा) (शृतम्)म० ४। परिपक्वं दृढज्ञानिनम् (कृणवः) कृवि हिंसाकरणयोः-लेटि अडागमः। त्वंकुर्याः (जातवेदः) हे प्रसिद्धज्ञान (अथ) तदा (इमम्) ब्रह्मचारिणम् (एनम्) परिश्रमिणंशिष्यम् (परिदत्तात्) समर्पय (पितृभ्यः) रक्षकविद्वद्भ्यः (यदो) यदा हि (गच्छाति) स प्राप्नुयात् (असुनीतिम्) असुः प्रज्ञानाम-निघ० ३।९। प्रज्ञया सहनीतिमुन्नतिमार्गम् (एताम्) प्रसिद्धां वेदविहिताम् (अथ) तदा (देवानाम्)उत्तमपदार्थानाम् (वशनीः) वशे नेता (भवाति) भूयात् ॥
विषय
असुनीति द्वारा देवों का वशीकरण
पदार्थ
१. हे (जातवेदः) = ज्ञानी आचार्य! आप (यदा) = जब (भृतं कृणवः) = शिष्य को ज्ञानपरिपक्व कर देते हैं, (अथ) = तो (ईम) = अब (एनम्) = इसको (पितृभ्यः) = अपने माता-पिता के लिए (परिदत्तात्) = वापस देने का अनुग्रह करें। २. आचार्यकुल में रहता हुआ (यदा) = जब (उ) = निश्चय से (एताम् असुनीतिम्) = इस प्राणविद्या को-जीवन-नीति को (गच्छाति) = अच्छी प्रकार प्राप्त कर लेता है, (अथ) = तब यह ज्ञान को प्राप्त पुरुष (देवानाम्) = सब देवों का-इन्द्रियों का (वशनी:) = वश में करनेवाला (भवाति) = होता है। प्राणसाधना द्वारा यह शरीरस्थ सब देवों को स्वस्थ व स्वाधीन देखता है। सूर्य आदि देवों के साथ इसकी अनुकूलता होती है।
भावार्थ
आचार्यकुल में प्राणविद्या व प्राणसाधना करके हम इन्द्रियों को वश में करनेवाले हों। सब देवों को हम वशीभूत कर पाएँ।
भाषार्थ
(जातवेदः) हे वेदाचार्य ! (यदा) जब आप इस ब्रह्मचारी को (शृतम्) परिपक्व तथा परिपक्वायुवाला (कृणवः) कर दें, (अथ) तदनन्तर (एनम् ईम्) इस ब्रह्मचारी को स्नातक बनाकर, (पितृभ्यः परि दत्तात्) इसके माता-पिता के प्रति सुपुर्द करें। (यदा उ) जब ही यह ब्रह्मचारी (एताम् असुनीतिम्) इस प्रज्ञा तथा प्राणशक्ति को (गच्छाति) प्राप्त कर ले, (अथ) तदनन्तर ही यह, (देवानाम्) इन्द्रियों को (वशनीः) अपने वश में रख सकनेवाला (भवति) हो सकेगा। [असु = प्रज्ञा (निघं० ३।९); असु= प्राण (उणा० १।१०)।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
When you have cleansed it of its dross and tempered it fully, send it up to the Pitaras, sustainers of living energy and life onward, and when he connects with the process of life and life energy within the laws of nature, then he will join with the further laws and dynamics of divinities in life and nature with his own mind and intelligence. (Mantras 4 and 5 have been interpreted in connection with the antyeshti sanskara of the dead and also in relation to the education and discipline of a Brahmachari. The Agni in one case is the funeral fire, and in the other case it is the teacher who maintains the discipline of spartan fire relentlessly. In the one case, the soul concerned goes to the Pitaras, that is, sun-rays, in the other case the Brahmachari goes home to his parents. In either case, the situation is transition of the person from one stage of life to another after having passed through the crucibles of fiery discipline.)
Subject
Jataveda
Translation
When thou shalt make him done, O Jatavedas, then commit him to the Fathers; when he shall go to that other life, then shall he become a controller of the gods.
Translation
O master of Vedic speech, you send this student to his father and mother when you develop him to all maturity and when he knows the working of vital breath and becomes the controller of his organs.
Translation
O renowned, learned preceptor, when thou hast made thy celibate disciple fully equipped with knowledge, send him back to his parents. When he will yoke wisdom with statesmanship, he will be able to control his organs throughout his life.
Footnote
See Rig, 10-16-2
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५−(यदा) (शृतम्)म० ४। परिपक्वं दृढज्ञानिनम् (कृणवः) कृवि हिंसाकरणयोः-लेटि अडागमः। त्वंकुर्याः (जातवेदः) हे प्रसिद्धज्ञान (अथ) तदा (इमम्) ब्रह्मचारिणम् (एनम्) परिश्रमिणंशिष्यम् (परिदत्तात्) समर्पय (पितृभ्यः) रक्षकविद्वद्भ्यः (यदो) यदा हि (गच्छाति) स प्राप्नुयात् (असुनीतिम्) असुः प्रज्ञानाम-निघ० ३।९। प्रज्ञया सहनीतिमुन्नतिमार्गम् (एताम्) प्रसिद्धां वेदविहिताम् (अथ) तदा (देवानाम्)उत्तमपदार्थानाम् (वशनीः) वशे नेता (भवाति) भूयात् ॥
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