अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 52
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
1
अ॒भि त्वो॑र्णोमिपृथि॒व्या मा॒तुर्वस्त्रे॑ण भ॒द्रया॑। जी॒वेषु॑ भ॒द्रं तन्मयि॑ स्व॒धा पि॒तृषु॒सा त्वयि॑ ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । त्वा॒ । ऊ॒र्णो॒मि॒ । पृ॒थि॒व्या: । मा॒तु: । वस्त्रे॑ण । भ॒द्रया॑ । जी॒वेषु॑ । भ॒द्रम् । तत् । मयि॑ । स्व॒धा । पि॒तृषु॑ । सा । त्वयि॑ ॥२.५२॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि त्वोर्णोमिपृथिव्या मातुर्वस्त्रेण भद्रया। जीवेषु भद्रं तन्मयि स्वधा पितृषुसा त्वयि ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । त्वा । ऊर्णोमि । पृथिव्या: । मातु: । वस्त्रेण । भद्रया । जीवेषु । भद्रम् । तत् । मयि । स्वधा । पितृषु । सा । त्वयि ॥२.५२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमात्मा की उपासना का उपदेश।
पदार्थ
[हे जीव !] (त्वा)तुझे (पृथिव्याः) जगत् के विस्तार करनेवाले परमेश्वर के [दिये] (भद्रया) कल्याणसे (अभि) सब ओर से (ऊर्णोमि) मैं ढकता हूँ, [जैसे] (मातुः) माता के (वस्त्रेण)वस्त्र से [बालक को]। (जीवेषु) जीवो में (भद्रम्) [जो] कल्याण हो, (तत्) वह (मयि) मुझ में [हो] (पितृषु) पितरों [रक्षक महात्माओं] में (स्वधा) [जो] आत्मधारण शक्ति हो, (सा) वह (त्वयि) तुझ में होवे ॥५२॥
भावार्थ
प्रत्येक मनुष्यपरमात्मा की शरण में रहकर इस प्रकार सुख पावे, जैसे बालक माता के पास पाता है, और ऐसा प्रयत्न करे कि सब प्राणी एक दूसरे के समान सुख पावें और ज्ञानीमहात्माओं के समान आत्मावलम्बन करें ॥५२॥
टिप्पणी
५२−(अभि) अभितः। सर्वतः (त्वा) जीवम् (ऊर्णोमि) आच्छादयामि (पृथिव्याः) प्रथेः षिवन्०। उ० १।१५०। प्रथ प्रख्याने−षिवन्, संप्रसारणं ङीष् च। प्रथयति विस्तारयति सर्वं जगत् सा पृथिवी परमेश्वरः।जगद्विस्तारकस्य परमेश्वरस्य (मातुः) जनन्याः (वस्त्रेण) वाससा यथा (भद्रया)सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेर्याप्रत्ययः। भद्रेण। कल्याणेन (जीवेषु)प्राणिषु (भद्रम्) यत् कल्याणम् (तत्) (मयि) प्राणिनि (स्वधा) या स्वधारणशक्तिः (पितृषु) पालकेषु महात्मसु (सा) (त्वयि) प्राणिनि भवतु ॥
विषय
पृथिवी माता के वस्त्र से अपना
पदार्थ
१. प्रभु कहते हैं कि हे साधका मैं (त्वा) = तुझे (पृथिव्याः मातु:) = इस पृथिवी माता के (वस्त्रेण) = वस्त्र से-आच्छादन शक्ति से (भद्रया) = कल्याण और सुख के हेतु से (अभि ऊर्णोमि) = आच्छादित करता हूँ। यह पृथिवी तुझे माता के समान अपनी गोद में कल्याण के हेतु से धारण करे। इससे तुझे भोजन व वस्त्र ठीक रूप में प्राप्त होते रहें। तू पृथिवी से ही भोजन व वस्त्रों को प्रास कर। मांस भोजनों से दूर रहना ही ठीक है। २. साधक प्रार्थना करता है कि (जीवेषु) = जीवों में (भद्रम्) = जो भद्र है-शुभ है तत् मयि-वह मुझमें हो, अर्थात् मैं सब शुभ बातों से युक्त होऊँ। ३. इस प्रार्थना को सुनकर प्रभु उत्तर देते हैं कि जो (पितृषु स्वधा) = पितरों के विषय में स्वधा है-अन्नादि का देना है, (सा त्वयि) = वह तुझमें हो, अर्थात् तु पितरों को आदरपूर्वक अन्नादि प्राप्त करानेवाला हो। यह बड़ों का आदर तुझे सदा सुपथ पर ले-चलनेवाला बनेगा।
भावार्थ
हम माता पृथिवी से भोजन व वस्त्रों को प्राप्त करें। अपने बड़ों को आदरपूर्वक अन्न प्राप्त कराएं, इससे हमारे जीवन में सब शुभों का समावेश होगा।
भाषार्थ
हे नवजात। (पृथिव्याः) पृथिवी के सदृश गुणोंवाली (मातुः) तेरी माता के बनाए (वस्त्रेण) वस्त्रों द्वारा, (भद्रया) भद्रसम्मत विधि से (त्वा) तुझे (अभि ऊर्णोमि) मैं पिता ढांपता हूं। (जीवेषु पितृषु) जीवित पितरों में (भद्रम्) जो कल्याणकारी तथा सुखदायी जीवन है, उनके सदुपदेशों द्वारा (तत्) वह भद्र जीवन (मयि) मुझ में हो, और जीवित पितरों के निमित्त जो (स्वधा) स्वादु अन्न मैंने तैयार किया है, (सा) वह (त्वयि) हे वनस्थ पिता आदि! आपके निमित्त हो।
टिप्पणी
[मन्त्र के पूर्वार्ध का सम्बन्ध मन्त्र संख्या (५०-५१) के साथ है, और उत्तरार्ध का सम्बन्ध अगले मन्त्रों के साथ है। 'जीवेषु' पद विशेषण है "पितृषु" का। इसलिये मन्त्र में जीवित पितर अर्थ किया गया है। "जीवेषु पितृषु" में अधिकरण सप्तमी तथा निमित्त सप्तमी इन दोनों के अर्थ उपपन्न हैं।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
O child born on earth, I protect you happily all round with the earthly vestments of mother nature. May all that what is in living beings be in me, and may all the essential power and potential that is in parents and seniors be in you.
Translation
I cover thee excellently with the garment of mother earth; what is excellent among the living, that with me; svadha among the Fathers, that with thee.
Translation
O elder one, I cover (dress) you with wearable cloth and with happiness available from the mother earth. Whatever good prevails in jivas may be in me and the powers found in elders and forefathers be in you.
Translation
O man, I cover thee with the bliss of God, the Diffuser of the world, as a child is wrapped with the mother’s vesture. Whatever goodness there is in souls, may that reside in me. May the spiritual force of the sages reside in thee.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५२−(अभि) अभितः। सर्वतः (त्वा) जीवम् (ऊर्णोमि) आच्छादयामि (पृथिव्याः) प्रथेः षिवन्०। उ० १।१५०। प्रथ प्रख्याने−षिवन्, संप्रसारणं ङीष् च। प्रथयति विस्तारयति सर्वं जगत् सा पृथिवी परमेश्वरः।जगद्विस्तारकस्य परमेश्वरस्य (मातुः) जनन्याः (वस्त्रेण) वाससा यथा (भद्रया)सुपां सुलुक्०। पा० ७।१।३९। विभक्तेर्याप्रत्ययः। भद्रेण। कल्याणेन (जीवेषु)प्राणिषु (भद्रम्) यत् कल्याणम् (तत्) (मयि) प्राणिनि (स्वधा) या स्वधारणशक्तिः (पितृषु) पालकेषु महात्मसु (सा) (त्वयि) प्राणिनि भवतु ॥
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