अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 50
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
1
इ॒दमिद्वा उ॒नाप॑रं दि॒वि प॑श्यसि॒ सूर्य॑म्। मा॒ता पु॒त्रं यथा॑ सि॒चाभ्येनं भूम ऊर्णुहि॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम् । इत् । वै । ऊं॒ इति॑ । न । अप॑रम् । दि॒वि । प॒श्य॒सि॒ । सूर्य॑म् । मा॒ता । पु॒त्रम् । यथा॑ । सि॒चा । अ॒भि । ए॒न॒म् । भू॒मे॒ । ऊ॒र्णु॒हि॒ ॥२.५०॥
स्वर रहित मन्त्र
इदमिद्वा उनापरं दिवि पश्यसि सूर्यम्। माता पुत्रं यथा सिचाभ्येनं भूम ऊर्णुहि॥
स्वर रहित पद पाठइदम् । इत् । वै । ऊं इति । न । अपरम् । दिवि । पश्यसि । सूर्यम् । माता । पुत्रम् । यथा । सिचा । अभि । एनम् । भूमे । ऊर्णुहि ॥२.५०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
परमात्मा की उपासना का उपदेश।
पदार्थ
[हे जीव !] (इदम् इत्)यही [सर्वव्यापक ब्रह्म] (वै) निश्चय करके है, (उ) और (अपरम्) दूसरा (न) नहींहै, तू (दिवि) ज्ञानप्रकाश में (सूर्यम्) सर्वप्रेरक परमात्मा को (पश्यसि)देखता है। (यथा) जैसे (माता) माता (पुत्रम्) पुत्र को (सिचा) अपने आँचल से, [वैसे] (भूमे) हे सर्वाधार परमेश्वर ! (एनम्) इस [जीव] को (अभि) सब ओर से (ऊर्णुहि) ढकले ॥५०॥
भावार्थ
परमात्मा सर्वव्यापकहै, उसके समान और कोई नहीं है, वह ज्ञाननेत्र से दीखता है। वह अपने शरणागतभक्तों की इस प्रकार सर्वथा रक्षा करता है, जैसे माता अपने छोटे बच्चों कीवस्त्र आदि से रक्षा करती है ॥५०॥इस मन्त्र का उत्तरार्ध ऋग्वेद में है−१०।१८।११, और आगे है-अथर्व १८।३।५० ॥
टिप्पणी
५०−(इदम्) दृश्यमानम्। सर्वव्यापकं ब्रह्म (इत्) एव (वै) निश्चयेन (उ) च (न) निषेधे (अपरम्) अन्यत् किंचित् (दिवि)ज्ञानप्रकाशे (पश्यसि) अवलोकयसि (सूर्यम्) सर्वप्रेरकं परमात्मानम् (माता) जननी (पुत्रम्) (यथा) येन प्रकारेण (सिचा) षिच क्षरणे-क्विप्। वस्त्रेण। चेलाञ्चलेन (अभि) सर्वतः (एनम्) जीवम् (भूमे) भवन्ति लोका यस्यां सा भूमिः परमेश्वरः। हेसर्वाधार परमात्मन् (ऊर्णुहि) आच्छादय। सर्वथा रक्ष ॥
विषय
जैसे माता पुत्र को
पदार्थ
१. गतमन्त्र के अनुसार उत्कृष्ट आत्मज्ञान को प्राप्त करनेवाले पितर प्रभु के प्रकाश को देखते हुए कहते हैं कि (इदम् इत् वा उ) = निश्चय से यह ब्रह्म ही सत्य है। (न अपरम्) = इसके समान और कुछ नहीं [अन्यत् सर्वमातम्] (दिवि सूर्य पश्यसि) = ये प्रभु तो ऐसे हैं जैसे द्युलोक में सूर्य [आदित्यवर्ण, तमसः परस्तात]। वहाँ अन्धकार का चिह भी नहीं है। २. (भूमे) = सब प्राणियों के निवास स्थानभूत प्रभो ! [भवन्ति भूतानि अस्याम्] (यथा) = जैसे माता-माता (पुत्रम्) = पुत्र को (सिचा) = वस्त्र प्रान्त से आच्छादित कर लेती है, इसीप्रकार आप (एनम्) = अपने इस रूप को (अभि ऊर्णहि) = आच्छादित करनेवाले हों।
भावार्थ
प्रभु अद्वितीय हैं, धुलोकस्थ सूर्य के समान दीप्त है 'ब्रह्म सूर्यसमै ज्योति: । प्रभु अपने भक्त को इसप्रकार अपनी गोद में सुरक्षित कर लेते हैं, जैसे माता वस्त्रप्रान्त से पुत्र को।
भाषार्थ
मृत्यु के पश्चात् पुनर्जन्म में (इदम्) यह भूमण्डल (इद् वै उ) ही निश्चय से तेरे लिये है, (अपरम्) इस से भिन्नलोक तेरे लिये (न) नहीं है। इस भूमण्डल में पैदा होकर (दिवि) द्युलोकस्थ (सूर्यम्) सूर्य को (पश्यसि) तू देखता रहे। (माता यथा) माता जैसे (सिचा) अपनी आंचल द्वारा (पुत्रम्) पुत्र को ढांपती है, वैसे (भूमे) हे मातृभूमि ! तू (एनम्) इस नवजात को (अभि ऊर्णुहि) वस्त्र आदि द्वारा आच्छादित करती रह।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
O man, soul born on earth, this now is your haven and home in life, no other. Being here, see the Sun in heaven. O Mother Earth, just as a mother covers her baby with the hem of her shawl, so pray cover this child with your motherly protection.
Translation
This time, verily, not further, seest thou the sun in the heaven; as a mother her son with her hem, do thou cover him, O earth.
Translation
O man, this is all ash af bodily remains and there is nothing here except this, you see the sun in the sky. This earth covers the man under it as mother to her child with her kirt.
Translation
O soul, this alone is verily the All-pervading God, and none else. Thou canst visualize Him through the luster of, knowledge! O God, protect this soul, as a mother draws her skirt about her son!
Footnote
See Rig, 10-18-11 and Atharva, 18-3-50. I: A learned person. Thee: Man. An aspirant after truth. Me: Learned person.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५०−(इदम्) दृश्यमानम्। सर्वव्यापकं ब्रह्म (इत्) एव (वै) निश्चयेन (उ) च (न) निषेधे (अपरम्) अन्यत् किंचित् (दिवि)ज्ञानप्रकाशे (पश्यसि) अवलोकयसि (सूर्यम्) सर्वप्रेरकं परमात्मानम् (माता) जननी (पुत्रम्) (यथा) येन प्रकारेण (सिचा) षिच क्षरणे-क्विप्। वस्त्रेण। चेलाञ्चलेन (अभि) सर्वतः (एनम्) जीवम् (भूमे) भवन्ति लोका यस्यां सा भूमिः परमेश्वरः। हेसर्वाधार परमात्मन् (ऊर्णुहि) आच्छादय। सर्वथा रक्ष ॥
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