अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 46
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - अनुष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
1
प्रा॒णो अ॑पा॒नोव्या॒न आयु॒श्चक्षु॑र्दृ॒शये॒ सूर्या॑य। अप॑रिपरेण प॒था य॒मरा॑ज्ञः पि॒तॄन्ग॑च्छ॥
स्वर सहित पद पाठप्रा॒ण: । अ॒पा॒न: । वि॒ऽआ॒न: । आयु॑: । चक्षु॑: । दृ॒शये॑ । सूर्या॑य । अप॑रिऽपरेण । प॒था । य॒मऽरा॑ज्ञ: । पि॒तॄन् । ग॒च्छ॒ ॥२.४६॥
स्वर रहित मन्त्र
प्राणो अपानोव्यान आयुश्चक्षुर्दृशये सूर्याय। अपरिपरेण पथा यमराज्ञः पितॄन्गच्छ॥
स्वर रहित पद पाठप्राण: । अपान: । विऽआन: । आयु: । चक्षु: । दृशये । सूर्याय । अपरिऽपरेण । पथा । यमऽराज्ञ: । पितॄन् । गच्छ ॥२.४६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
पितरों के गुणों का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य ! तेरे] (प्राणः) प्राण [श्वास], (अपानः) अपान [प्रश्वास], (व्यानः) व्यान [सर्वशरीरव्यापक वायु], (आयुः) जीवन और (चक्षुः) नेत्र (सूर्याय दृशये) सर्वप्रेरकपरमात्मा के देखने को [होवें]। (अपरिपरेण) इधर-उधर न घूमनेवाले [सर्वथा सीधे] (पथा) मार्ग से (यमराज्ञः) यम [न्यायकारी परमात्मा] को राजा रखनेवाले (पितॄन्)पितरों [रक्षक महात्माओं] को (गच्छ) प्राप्त हो ॥४६॥
भावार्थ
मनुष्य अनन्यभाव सेपरमात्मा की प्राप्ति के लिये वेदानुयायी महात्माओं की शरण लेवे ॥४६॥
टिप्पणी
४६−(प्राणः)श्वासः (अपानः) प्रश्वासः (व्यानः) सर्वशरीरव्यापको वायुः (आयुः) जीवनम् (चक्षुः) नेत्रम् (दृशये) दर्शनाय। द्रष्टुम् (सूर्याय) सूर्यम्। सर्वप्रेरकंपरमात्मानम् (अपरिपरेण) छन्दसि परिपन्थिपरिपरिणौ पर्यवस्थातरि। पा० ५।२।८९। अत्रपरिपरशब्द इनिप्रत्ययान्तो दृश्यते। परि परितः सर्वतः परः परभावो भिन्नभावःकुटिलभावो न विद्यते यस्मिन् तादृशेन महासरलेन (पथा) मार्गेण (यमराज्ञः) यमोन्यायकारी परमात्मा राजा येषां तान् (पितॄन्) पालकान्। महापुरुषान् (गच्छ)प्राप्नुहि ॥
विषय
अपरिपर पथ [अकुटिल मार्ग]
पदार्थ
१. हम इस बात को कभी न भूलें कि (प्राण:) = प्राण, (अपान:) = अपान, (व्यान:) = व्यान, (आयु:) = जीवन तथा (चक्षुः) = आँख-ये सब (सूर्याय दृशये) = उस सूर्यस्थ ज्योति ब्रह्मा के दर्शन के लिए दिये गये हैं। वस्तुतः जीवन का लक्ष्य ब्रह्मप्राप्ति ही है, २. अत: हे साधक! तू (यमराज्ञः) = उस सर्वनियन्ता शासक [देदीप्यमान] प्रभु के-प्रभु से उपदिष्ट (अपरिपरेण पथा) = अकुटिल मार्ग से (पितृृन् गच्छ) = पितरों को प्राप्त होनेवाला हो। अकुटिल मार्ग से चलता हुआ तू भी पितरों में गिना जानेवाला हो। 'आर्जवं ब्रह्मणः पदम्' सरलता ही प्रभु-प्राप्ति का मार्ग है।
भावार्थ
हम जीवन का लक्ष्य प्रभु-प्राप्ति को समझें। सरलमार्ग से चलते हुए पितरों में गिने-जाते हुए, प्रभु को प्राप्त करें।
भाषार्थ
हे साधक ! (प्राणः, अपानः, व्यानः, आयुः, सूर्याय दृशये चक्षुः) तेरा प्राण, अपान, व्यान, आयु, और सूर्य को देखने के लिये आंख सौ वर्षों तक बने रहें। इसके लिये (अपरिपरेण पथा) मोक्षविमुख संसारी लोगों के मार्ग से भिन्न मार्ग द्वारा तू, (यमराज्ञः) यमनियमों का आचार्य है राजा जिनका ऐसे (पितॄन्) पिता पितामह आदि बुजुर्गों के सङ्ग में (गच्छ) जा, अर्थात् वानप्रस्थ आदि को प्राप्त हो।
टिप्पणी
[प्राणः-मुख नासिका द्वारा छाती में संचार करनेवाली वायु, जो कि रक्त में मिलकर समग्र शरीर को जीवित रखती है, अर्थात् रक्त संस्थान। अपानः- पेट और आन्तों में संचार करनेवाली, मल-मूत्र का निःसारण करनेवाली वायु। व्यानः- ज्ञानवाहिनी और क्रियावाहिनी नाड़ियां, अर्थात् Nervous system. अपरिपर= परिगृहीतः परैः मोक्षविमुखैः संसारिभिः इति परिपरः पन्थाः, तद्भिन्नः अपरिपरः, तेन। यमराज्ञः- यमः राजा येषां तान्। यमाचार्य का वर्णन कठोपनिषद् में भी हुआ है। पितॄन्= सभी बुजुर्ग, जो कि वानप्रस्थ तथा संन्यस्त हैं। 'छन्दसि परिपन्थिपरिपरिणौ पर्यवस्थातरि" (अष्टा० ५।२।८९)]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Let pranic energy for inhalation, exhalation, systemic efficiency and good health for full age, and the eye for the vision of divine sun, be with you. And living thus, go by the simple and clear path free from crookedness to be with parental seniors and sages who abide by the laws of Yama, lord divine of life and law over time.
Translation
Breath, expiration, through-breathing, life-time, an eye to see the sun: by a road not beset with enemies go thou to the Fathers whose king is Yama.
Translation
May in-breath, out-breath diffused, breath life and eyesight remain unto us longer to see the sun. Seek O man, the company of an experienced whose controller is God through unwinding direct ways.
Translation
O man, thy in-breath, out-breath, breath diffused life, sight are meant for the realization of God. Seek by a straight path free from disease and malice, the elders, whose Ruler is God!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४६−(प्राणः)श्वासः (अपानः) प्रश्वासः (व्यानः) सर्वशरीरव्यापको वायुः (आयुः) जीवनम् (चक्षुः) नेत्रम् (दृशये) दर्शनाय। द्रष्टुम् (सूर्याय) सूर्यम्। सर्वप्रेरकंपरमात्मानम् (अपरिपरेण) छन्दसि परिपन्थिपरिपरिणौ पर्यवस्थातरि। पा० ५।२।८९। अत्रपरिपरशब्द इनिप्रत्ययान्तो दृश्यते। परि परितः सर्वतः परः परभावो भिन्नभावःकुटिलभावो न विद्यते यस्मिन् तादृशेन महासरलेन (पथा) मार्गेण (यमराज्ञः) यमोन्यायकारी परमात्मा राजा येषां तान् (पितॄन्) पालकान्। महापुरुषान् (गच्छ)प्राप्नुहि ॥
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