अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 19
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - त्रिपदार्षी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
2
स्यो॒नास्मै॑ भवपृथिव्यनृक्ष॒रा नि॒वेश॑नी। यच्छा॑स्मै॒ शर्म॑ स॒प्रथाः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठस्यो॒ना । अ॒स्मै॒ । भ॒व॒ । पृ॒थि॒वि॒ । अ॒नृ॒क्ष॒रा । नि॒ऽविश॑नी । यच्छ॑ । अ॒स्मै॒ । शर्म॑ । स॒ऽप्रथा॑: ॥२.१९॥
स्वर रहित मन्त्र
स्योनास्मै भवपृथिव्यनृक्षरा निवेशनी। यच्छास्मै शर्म सप्रथाः ॥
स्वर रहित पद पाठस्योना । अस्मै । भव । पृथिवि । अनृक्षरा । निऽविशनी । यच्छ । अस्मै । शर्म । सऽप्रथा: ॥२.१९॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
पृथिवी की विद्या का उपदेश।
पदार्थ
(पृथिवि) हे पृथिवी ! (अस्मै) इस [पुरुष] के लिये (स्योना) सुख देनेहारी, (अनृक्षरा) बिना काँटेवालीऔर (निवेशनी) प्रवेश करने योग्य (भव) हो। और (सप्रथाः) विस्तारवाली तू (अस्मै)इस [पुरुष] के लिये (शर्म) शरण (यच्छ) दे ॥१९॥
भावार्थ
मनुष्य पृथिवीविद्यामें निपुण होकर अनेक रत्नों और पदार्थों को प्राप्त करके निर्विघ्नता से आनन्दभोगें ॥१९॥यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि अन्त्येष्टिप्रकरण मेंउद्धृत है और कुछ भेद से ऋग्वेद में है−१।२२।१५ तथा यजु० ३५।२१ ॥
टिप्पणी
१९−(स्योना)सुखप्रदा (अस्मै) पुरुषाय (भव) (पृथिवि) हे भूमे (अनृक्षरा) अकण्टका (निवेशनी)प्रवेशयोग्या (यच्छ) देहि (शर्म) शरणम् (सप्रथाः) प्रथसा विस्तारेण सहिता त्वम्॥
विषय
'स्योना' पृथिवी
पदार्थ
१. हे (पृथिवि) = मातृभूतभूमे! तू (अस्मै) = उल्लिखित प्रकार से साधना करनेवाले के लिए (स्योना) = सुखकारिणी (भव) = हो। (अनृक्षरा) = तू इसके लिए कण्टकरहित हो अथवा [अनक्षरा] मनुष्यों [सन्तानों] का विनाश करनेवाली न हो। (निवेशनी) = तू इसके लिए निवेश देनेवाली हो और (सप्रथा:) = विस्तार से युक्त होती हुई तू (शर्म यच्छ) = सुख देनेवाली हो।
भावार्थ
उत्तम पितरों के सम्पर्क में साधनामय जीवन बितानेवाले पुरुष के लिए यह पृथिवी सुख देनेवाली होती है।
भाषार्थ
(पृथिवी) हे पृथिवी ! (अस्मै) इस प्रजाजन के लिये तू (स्योना) सुखप्रदा, (अनृक्षरा) कण्टकों तथा रीछ आदि हिंस्र प्राणियों से रहित, (निवेशनी) निवासयोग्या (भव) हो और (अस्मै) इस प्रजाजन के लिये (सप्रथाः) विस्तारवाली तू (शर्म) निवासस्थान, शान्ति तथा सुख (यच्छ) प्रदान कर।
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
Mother Earth, be good and gracious, free from thorny want and suffering, wide and hospitable for this humanity, and provide us a home of peace, progress and happiness.
Translation
Be pleasant to him, O earth, a thornless resting-place; furnish him broad refuge.
Translation
May this earth be free from thorny difficulties for him emerging on it, may it accommodate him and may broad earth give him ample happiness.
Translation
O Earth, be pleasant, thornless and habitable for this man. Vouchsafe him shelter, broad us thou art!
Footnote
See Rig, 1-22-15. Yajur, 35-21.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(स्योना)सुखप्रदा (अस्मै) पुरुषाय (भव) (पृथिवि) हे भूमे (अनृक्षरा) अकण्टका (निवेशनी)प्रवेशयोग्या (यच्छ) देहि (शर्म) शरणम् (सप्रथाः) प्रथसा विस्तारेण सहिता त्वम्॥
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