अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 26
ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त
देवता - भुरिक् त्रिष्टुप्
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
1
यत्ते॒अङ्ग॒मति॑हितं परा॒चैर॑पा॒नः प्रा॒णो य उ॑ वा ते॒ परे॑तः। तत्ते॑ सं॒गत्य॑पि॒तरः॒ सनी॑डा घा॒साद्घा॒सं पुन॒रा वे॑शयन्तु ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । ते॒ । अङ्ग॑म् । अति॑ऽहितम् । प॒रा॒चै: । अ॒पा॒न: । प्रा॒ण: । य: । ऊं॒ इति॑ । वा॒ । ते॒ । परा॑ऽइत: । तत् । ते॒ । स॒म्ऽगत्य॑ । पि॒तर॑: । सऽनी॑डा: । घा॒सात् । घा॒सम् । पुन॑: । आ । वे॒श॒य॒न्तु॒ ॥२.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्तेअङ्गमतिहितं पराचैरपानः प्राणो य उ वा ते परेतः। तत्ते संगत्यपितरः सनीडा घासाद्घासं पुनरा वेशयन्तु ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । ते । अङ्गम् । अतिऽहितम् । पराचै: । अपान: । प्राण: । य: । ऊं इति । वा । ते । पराऽइत: । तत् । ते । सम्ऽगत्य । पितर: । सऽनीडा: । घासात् । घासम् । पुन: । आ । वेशयन्तु ॥२.२६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (3)
विषय
मनुष्यों का पितरों के साथ कर्त्तव्य का उपदेश।
पदार्थ
[हे मनुष्य !] (यत्)जो (ते) तेरा (अङ्गम्) [शारीरिक वा आत्मिक] अङ्ग (पराचैः) उलटा होकर (अतिहितम्)हट गया है, (उ) और (ते) तेरा (यः) (अपानः) अपान [प्रश्वास] (वा) अथवा (प्राणः)प्राण [श्वास] (परेतः) विचल गया है। (सनीडाः) समान घरवाले (पितरः) पितर लोग [रक्षक महात्मा] (संगत्य) मिलकर (ते) तेरी (तत्) उस [हानि] को (पुनः) फिर (आवेशयन्तु) भर देवें, [जैसे] (घासात्) घास से (घासम्) घास को [बाँध देते हैं]॥२६॥
भावार्थ
मनुष्य अपने शारीरिकऔर आत्मिक दोषों को समझ कर विद्वानों की संमति से उनकी निवृत्ति करें॥२६॥
टिप्पणी
२६−(यत्) (ते) तव (अङ्गम्) अवयवः (पराचैः) पराङ्मुखम्। प्रतिकूलम् (अतिहितम्) अतीत्य धृतम् (अपानः) प्रश्वासः (प्राणः) श्वासः (यः) (उ) चार्थे (वा) अथवा (ते) तव (परेतः) दूरे गतः (तत्) तत्सर्वम् (ते) तव (संगत्य) एकीभूय (पितरः) रक्षका महात्मानः (सनीडाः) समानगृहाः (घासात्) तृणात् (घासम्) तृणं यथा (पुनः) (आ वेशयन्तु) प्रवेशयन्तु ॥
विषय
क्षीणता का उचित उपचार
पदार्थ
१. (यत्) = जो (ते) = तेरा (आङ्गम्) = अंग (पराचैः अतिहितम्) = [पराङ्मुखम् अतीत्य स्थितम् सा०] उलटकर अपने स्थान से विचलित हो गया है (वा) = या (य:) = जो (ते) = तेरा (प्राण: अपान:) = प्राण और अपान (परा इत:) = तुझसे दूर चला गया है, अर्थात् प्राणापान शक्ति में कमी आ गई है, (तत्) = उसको (ते) = तेरे (सनीडा) = समान घरवाले (पितर:) = पितर [रक्षक] लोग (संगत्य) = मिलकर-परस्पर विचार करके-(घासाद्) = [अद्यते भुज्यतेऽस्मिन् इति घास: शरीरम्] शरीर के उद्देश्य से शरीर को ठीक करने के लक्ष्य से-(घासम्) = भोजन को (पुनः) = फिर (आवेशयन्तु) = शरीर में प्रविष्ट कराएँ।
भावार्थ
अंग भंग हो जाए, अथवा प्राणापान शक्ति में कमी आ जाए तो बड़े, अनुभवी लोग मिलकर शरीर को ठीक करने के उद्देश्य से उचित भोजन की व्यवस्था करें। औषध से भी अधिक महत्त्व इस पध्य भोजन का है। पथ्य के अभाव में औषध तो व्यर्थ ही हो जाती है।
भाषार्थ
हे नवीन वानप्रस्थ ! गृहस्थ में रहते हुए (ते) तेरा (यत्) जो (अङ्गम्) जीवनाङ्ग (पराचैः) धर्म से पराङ्मुख कृत्यों के कारण (अतिहितम्) हितकर नहीं रहा था, (वा) अथवा (ते) तेरा (यः) जो (अपानः) अपाण और (प्राणः) प्राण (परेतः) तुझ से पराङ्मुख हो चुका था, (सनीडाः) तेरे साथ आश्रम में रहनेवाले (पितरः) बुज़र्ग (ते) तेरे (तत्) उस जीवनाङ्ग को, तथा अपान और प्राण को (संगत्य) मिलकर (पुनः) फिर तुझ में (आ वेशयन्तु) प्रविष्ट कर देवें, जैसे कि (घासात्) घास से (घासम्) नए घास को अङ्कुरित कर दिया जाता है।
टिप्पणी
[अपानः = अपान वायु के विकार हैं—पेट में अफारा, मलरोध, उदर-पीड़ा, क्षुधाविनाश आदि। प्राणः– प्राण के विकार हैं- दमा, श्वास-प्रश्वास की अनियमित गति आदि। अतिहितम् = हितमतिक्रान्तम्।]
इंग्लिश (4)
Subject
Victory, Freedom and Security
Meaning
If some part of your body system has been wasted away, your prana and apana energies expended, by over-strain to exhaustion, let your parental seniors in residence together rejuvenate it bit by bit from con¬ sumption to recuperation like grass regrown from grass.
Translation
What limb of thine is put over at a distance, and what expiration (or) breath has gone forth upon the wind, let the associated Fathers, assembling, make that enter thee again, bit from bit.
Translation
O man, whatever member of your body has gone out of normal way, if your vital breath in the wind have disappeared, your fore-fathers who are in your houses with you may put in order again by consulting each other, like grass from grass.
Translation
O man, if any organ of thy body has been dislocated, or vital breaths displaced, thy learned elders who dwell together shall meet, and reunite thee with all of these, piece after piece.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२६−(यत्) (ते) तव (अङ्गम्) अवयवः (पराचैः) पराङ्मुखम्। प्रतिकूलम् (अतिहितम्) अतीत्य धृतम् (अपानः) प्रश्वासः (प्राणः) श्वासः (यः) (उ) चार्थे (वा) अथवा (ते) तव (परेतः) दूरे गतः (तत्) तत्सर्वम् (ते) तव (संगत्य) एकीभूय (पितरः) रक्षका महात्मानः (सनीडाः) समानगृहाः (घासात्) तृणात् (घासम्) तृणं यथा (पुनः) (आ वेशयन्तु) प्रवेशयन्तु ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal