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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 49
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - भुरिक् त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    1

    ये न॑ पि॒तुःपि॒तरो॒ ये पि॑ताम॒हा य आ॑विवि॒शुरु॒र्वन्तरि॑क्षम्। य आ॑क्षि॒यन्ति॑पृथि॒वीमु॒त द्यां तेभ्यः॑ पि॒तृभ्यो॒ नम॑सा विधेम ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । न॒: । पि॒तु: । पि॒तर॑: । ये । पि॒ता॒म॒हा । ये । आ॒ऽवि॒वि॒शु: । उ॒रु । अ॒न्तरि॑क्षम् । ये । आऽक्षि॒यन्ति॑ । पृथि॒वीम् । उ॒त । द्याम् । तेभ्य॑: । पि॒तृऽभ्य॑: । नम॑सा । वि॒धे॒म॒ ॥२.४९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये न पितुःपितरो ये पितामहा य आविविशुरुर्वन्तरिक्षम्। य आक्षियन्तिपृथिवीमुत द्यां तेभ्यः पितृभ्यो नमसा विधेम ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । न: । पितु: । पितर: । ये । पितामहा । ये । आऽविविशु: । उरु । अन्तरिक्षम् । ये । आऽक्षियन्ति । पृथिवीम् । उत । द्याम् । तेभ्य: । पितृऽभ्य: । नमसा । विधेम ॥२.४९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 49
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    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो पुरुष (नः)हमारे (पितुः) पिता के (पितरः) पिता के समान हैं, और (ये) जो [उसके] (पितामहाः)दादे के तुल्य हैं, और (ये) जो (उरु) चौड़े (अन्तरिक्षम्) आकाश में [विद्याबलसे विमान आदि द्वारा] (आविविशुः) प्रविष्ट हुए हैं और (ये) जो (पृथिवीम्)पृथिवी (उत) और (द्याम्) आकाश में (आक्षियन्ति) सब प्रकार शासन करते हैं, (तेभ्यः) उन (पितृभ्यः) पितरों [रक्षक महात्माओं] की (नमसा) अन्न से (विधेम) हमसेवा करें ॥४९॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जोतुम्हारे पिता दादे, परदादे आदि बड़े योगी विद्वान् होकर विद्याबल से विमान आदिद्वारा आकाश में पहुँचे हैं और जो पृथिवी और आकाश में राज्य करते हैं, उनका अन्नआदि से सत्कार करके अपनी उन्नति करो ॥४९॥इस मन्त्र का पूर्वार्द्ध आगे है-अथ०१८।३।५९ ॥

    टिप्पणी

    ४९−(ये) माननीयाः (नः) अस्माकम् (पितुः) जनकस्य (पितरः)पितृतुल्यमाननीयाः (ये) (पितामहाः) पितामहसमानपूजनीयाः (ये) (आविविशुः)प्रविष्टा बभूवुः (उरु) विस्तृतम् (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (ये) (आक्षियन्ति) क्षिऐश्वर्यनिवासयोः। अन्तर्गतण्यर्थः। क्षयति क्षियति, ऐश्वर्यकर्मा-निघ० २।२१।समन्ताद्दर्शयन्ति। सम्यक् शासति (पृथिवीम्) (उत) अपि च (द्याम्) आकाशम् (तेभ्यः) तादृशेभ्यः (पितृभ्यः) पालकेभ्यो महात्मभ्यः (नमसा) अन्नेन (विधेम)परिचरेम-निघ० ३।५ ॥

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    विषय

    'अन्तरिक्ष, पृथिवी व द्युलोक' में स्थित पितर

    पदार्थ

    १.(ये) = जो (न:) = हमारे (पितुः पितरः) = पिता के भी पिता है-पिताजी के भी पिता के समान हैं, (ये) = जो (पितामहा) = हमारे दादा है, (ये) = जो उरु (अन्तरिक्षम् आविविशुः) = गृहस्थ के संकुचित क्षेत्र से निकलकर विशाल अन्तरिक्ष में प्रविष्ट हुए हैं जिन्होंने अब सारी वसुधा को ही अपना कुटुम्ब बनाया है, (ये) = जो (पृथिवीम् आक्षियन्ति) = पृथिवी में निवास करते हैं इस प्रकृतिरूप पृथिवी में निवास करते हुए गतिशील होते हैं [क्षि निवासगत्यौ], (उत) = और (द्याम्) = जो द्युलोक में-ज्ञान के प्रकाश में निवास करते हैं, (तेभ्यः पितृभ्यः) = उन पितरों के लिए (नमसा विधेम) = नमन से [आदर से] तथा अन से पूजन करते हैं। उन्हें आदरपूर्वक अन्न देनेवाले बनते हैं।

    भावार्थ

    पितर वे हैं जो गृहस्थ के छोटे क्षेत्र से विशाल अन्तरिक्ष में प्रविष्ट हुए हैं वानप्रस्थ बनकर सभी को अपना मानने लगे हैं। जो इस शरीर में निवास करते हुए गतिशील हैं और उत्कृष्ट आत्मतत्त्व को प्राप्त करते हैं। इन पितरों का हम आदरपूर्वक आतिथ्य करें।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (नः) हमारे (पितुः) पिता के (पितरः) पितर, तथा (ये) जो पिता के (पितामहाः) पितामह हैं, (ये) जो कि (उरु अन्तरिक्षम्) विस्तृत अन्तरिक्ष में (आ विविशुः) आकर प्रवेश पाए हुए हैं, (ये) और जो (पृथिवीम् उत द्याम्) पृथिवी तथा द्युलोक में (आ क्षियन्ति) विचरते है, (तेभ्यः पितृभ्यः) उन पितरों की, (नमसा) नमस्कारों द्वारा (विधेम) हम परिचर्या करते हैं।

    टिप्पणी

    [मृत पितरों का निवास अन्तरिक्ष, पृथिवी, द्युलोक इन सभी स्थानों में हो सकता है। श्रद्धापूर्वक नमस्कारों द्वारा उनका स्मरण करना चाहिये, और उनकी जीवनियों से अपने जीवनों में स्फूर्ति पानी चाहिये। नमसा =नमस्कारों द्वारा। अपने-अपने कर्मानुसार जीवात्माओं की भिन्न- भिन्न गतियों का वर्णन मन्त्र में किया गया है।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    To those senior souls who are our father’s parents and grand parents, those who sojourn in the vast skies, and those who live on earth and have reached the regions of light, to all these parental souls, we offer our homage of reverence.

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    Translation

    They that are our Father's fathers, that are (his) grandfathers that entered the wide atmosphere, they that dwell upon earth and heaven - to those Fathers would we pay worship with homage.

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    Translation

    We should serve with food and drink to those elders who are our father's father who are our grand-father's fathers, those who penetrate through knowledge the vast firmament, who live on the earth and heavenly region.

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    Translation

    They, who are like our father’s fathers, or like grandfathers, who fly in planes in the atmosphere, who rule over earth and space, deserve to be worshipped by us with reverence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४९−(ये) माननीयाः (नः) अस्माकम् (पितुः) जनकस्य (पितरः)पितृतुल्यमाननीयाः (ये) (पितामहाः) पितामहसमानपूजनीयाः (ये) (आविविशुः)प्रविष्टा बभूवुः (उरु) विस्तृतम् (अन्तरिक्षम्) आकाशम् (ये) (आक्षियन्ति) क्षिऐश्वर्यनिवासयोः। अन्तर्गतण्यर्थः। क्षयति क्षियति, ऐश्वर्यकर्मा-निघ० २।२१।समन्ताद्दर्शयन्ति। सम्यक् शासति (पृथिवीम्) (उत) अपि च (द्याम्) आकाशम् (तेभ्यः) तादृशेभ्यः (पितृभ्यः) पालकेभ्यो महात्मभ्यः (नमसा) अन्नेन (विधेम)परिचरेम-निघ० ३।५ ॥

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