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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 32
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    2

    य॒मः परोऽव॑रो॒विव॑स्वा॒न्ततः॒ परं॒ नाति॑ पश्यामि॒ किं च॒न। य॒मे अ॑ध्व॒रो अधि॑ मे॒निवि॑ष्टो॒ भुवो॒ विव॑स्वान॒न्वात॑तान ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य॒म: । पर॑: । अव॑र: । विव॑स्वान् । तत॒: । पर॑म् । न । अति॑ । प॒श्या॒मि॒ । किम् । च॒न । य॒मे । अ॒ध्व॒र: । अधि॑ । मे॒ । न‍िऽवि॑ष्ट: । भुव॑: । विव॑स्वान् । अ॒नुऽआ॑ततान ॥२.३२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यमः परोऽवरोविवस्वान्ततः परं नाति पश्यामि किं चन। यमे अध्वरो अधि मेनिविष्टो भुवो विवस्वानन्वाततान ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम: । पर: । अवर: । विवस्वान् । तत: । परम् । न । अति । पश्यामि । किम् । चन । यमे । अध्वर: । अधि । मे । न‍िऽविष्ट: । भुव: । विवस्वान् । अनुऽआततान ॥२.३२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 32
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    ईश्वर के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (विवस्वान्) प्रकाशमय (यमः) न्यायकारी परमात्मा (परः) दूर और (अवरः) समीप है, (ततः) उससे (परम्) बड़ा (किं चन) किसी वस्तु को भी (अति) उल्लङ्घन करके (न पश्यामि) नहीं देखता हूँ। (यमे) न्यायकारी परमात्मा में (अध्वरः) हिंसारहित व्यवहार (मे) मेरे लिये (अधि)सर्वथा (निविष्टः) स्थापित है, (विवस्वान्) प्रकाशमय परमात्मा ने (भुवः) सत्ताओंको (अन्वाततान) निरन्तर सब ओर फैलाया है ॥३२॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! परमात्मासर्वज्ञ, सर्वव्यापक और सर्वनियन्ता है, उससे बड़ा संसार में कुछ भी नहीं है, उसीने सब लोकों को रचा है, तुम उसी की उपासना से अपनी उन्नति करो ॥३२॥मन्त्र ३२और ३३ महर्षिदयानन्दकृत संस्कारविधि अन्त्येष्टिप्रकरण में उद्धृत हैं॥

    टिप्पणी

    ३२−(यमः) न्यायकारी परमात्मा (परः) दूरस्थः (अवरः) समीपस्थः (विवस्वान्)प्रकाशमयः (ततः) तस्मात् परमेश्वरात् (परम्) उत्कृष्टम् (न) निषेधे (अति)अतीत्य। उल्लङ्घ्य (पश्यामि) अवलोकयामि (यमे) न्यायकारिणि परमेश्वरे (अध्वरः)हिंसारहितो व्यवहारः (अधि) सर्वथा (मे) मह्यम् (निविष्टः) स्थापितः (भुवः) भूसत्तायाम्-क्विप्। सर्वाः सत्ताः। लोकान् (विवस्वान्) प्रकाशमयः परमेश्वरः (अन्वाततान) निरन्तरं समन्ताद् विस्तारितवान् ॥

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    विषय

    परोवरः यमः

    पदार्थ

    १. प्रभुस्मरण ही हमें उत्तम जीवनवाला बनाता है, अत: साधक प्रभुस्मरण करता हुआ कहता है कि-(यमः) = सर्वनियन्ता प्रभु (परः अवर:) = दूर-से-दूर है और समीप-से-समीप है। 'दूरात् सुदूरे तदिहान्तिके च'। (विवस्वान्) = वह ज्ञान की किरणोंवाला है-अपनी ज्ञानकिरणों से साधकों के हृदयान्धकार को नष्ट करता है। (ततः परम्) = उस प्रभु से उत्कृष्ट मैं (किंचन न अतिपश्यामि) = किसी भी वस्तु को नहीं देखता हूँ। वह प्रत्येक गुण की चरमसीमा है। २. यह (मे अध्वर:) = मेरा यज्ञ (यमे अधिपश्यामि) = उस नियन्ता प्रभु में ही स्थित है-प्रभु के आधार से ही इस यज्ञ की पूर्ति होती है। 'अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च । वस्तुत: प्रभु ही होता' है, हम तो बीच में निमित्तमात्र बनते हैं। ये (विवस्वान्) = सूर्यसम दीप्त प्रभु (भुवः) = सब लोकों को (अन्वाततान) = अनुकूलता से विस्तृत किये हुए हैं। इन लोकों को वे प्रभु ही विस्तृत करनेवाले हैं। उस प्रभु का प्रकाश ही लोकों में सर्वत्र फैला हुआ है।

    भावार्थ

    सर्वनियन्ता प्रभु सर्वव्यापक हैं, प्रभु से महान् और कुछ भी नहीं। प्रभु ही हमारे यज्ञों के पालक हैं और प्रभु ने ही सब लोकों को आलोकित किया हुआ है।

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    भाषार्थ

    (यमः) जगन्नियामक परमेश्वर (परः) परे है, और (विवस्वान्) सूर्य (अवर:) नजदीक है। (ततः) उस परमेश्वर से (परम्) परे (किंचन) किसी वस्तु को (न अति पश्यामि) अतिक्रान्त हुए में नहीं देखता। (यमे अधि) इस पर-भूत जगन्नियामक में मेरा (अध्वरः) यज्ञ-कर्म (निविष्टः) स्थित होता है। (विवस्वान्) सूर्य, रश्मियों द्वारा (भुवः) केवल पृथिवियों अर्थात् ग्रहों और उपग्रहों तक (अन्वाततान) फैला हुआ है।

    टिप्पणी

    [यमः = यम को सूर्य का पुत्र और मृत्यु का अधिष्ठाता कहा जाता है। जो यम सूर्य से भी परे अर्थात् सर्वव्यापक है, वह "सूर्य का पुत्र" सम्भव नहीं।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Yama is far, very far indeed. Vivasvan, the sun, relatively, is close. Beyond Yama, I see nothing, nothing that I know. My yajna of love, devotion and non-violent self-sacrifice is established in Yama, and really it is the self-refulgent Yama who has spread the light of the sun also over the regions of the universe.

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    Translation

    Yama beyond, below Vivasvant - beyond that do I see nothing whatever; into Yama has entered my sacrifice Vivasvant stretched after the worlds.

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    Translation

    Yama, the All-controlling God is paramount and the sun is lower. I the seeker do not see anything supreme to him. My Yajna free from violence is motivated in him. The sun spreads out the light on earth and atmosphere.

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    Translation

    The Refulgent God is distant and near. I see none higher than God. My non-violent life rests on Him, He has spread around different worlds.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३२−(यमः) न्यायकारी परमात्मा (परः) दूरस्थः (अवरः) समीपस्थः (विवस्वान्)प्रकाशमयः (ततः) तस्मात् परमेश्वरात् (परम्) उत्कृष्टम् (न) निषेधे (अति)अतीत्य। उल्लङ्घ्य (पश्यामि) अवलोकयामि (यमे) न्यायकारिणि परमेश्वरे (अध्वरः)हिंसारहितो व्यवहारः (अधि) सर्वथा (मे) मह्यम् (निविष्टः) स्थापितः (भुवः) भूसत्तायाम्-क्विप्। सर्वाः सत्ताः। लोकान् (विवस्वान्) प्रकाशमयः परमेश्वरः (अन्वाततान) निरन्तरं समन्ताद् विस्तारितवान् ॥

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