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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 17
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - अनुष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    1

    ये युध्य॑न्तेप्र॒धने॑षु॒ शूरा॑सो॒ ये तनू॒त्यजः॑। ये वा॑ स॒हस्र॑दक्षिणा॒स्तांश्चि॑दे॒वापि॑ गच्छतात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । युध्य॑न्ते । प्र॒ऽधने॑षु । धूरा॑स: । ये । त॒नू॒ऽत्यज॑: । ये । वा॒ । स॒हस्र॑ऽदक्षिणा: । तान् । चि॒त् । ए॒व । अपि॑ । ग॒च्छ॒ता॒त् ॥२.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये युध्यन्तेप्रधनेषु शूरासो ये तनूत्यजः। ये वा सहस्रदक्षिणास्तांश्चिदेवापि गच्छतात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । युध्यन्ते । प्रऽधनेषु । धूरास: । ये । तनूऽत्यज: । ये । वा । सहस्रऽदक्षिणा: । तान् । चित् । एव । अपि । गच्छतात् ॥२.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 17
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    हिन्दी (3)

    विषय

    विद्वानों के सत्सङ्ग से बढ़ती का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो [वीर] (प्रधनेषु) संग्रामों में (युध्यन्ते) युद्ध करते हैं, और (ये) जो (शूरासः) शूर (तनूत्यजः) शरीर का बलिदान करनेवाले [वा उपकार का दान करनेवाले] हैं। (वा) और (ये) जो (सहस्रदक्षिणाः) सहस्रों प्रकार की दक्षिणा देनेवाले हैं, (तान्) उन [महात्माओं] को (चित्) सत्कार से (एव) ही (अपि) अवश्य (गच्छतात्) तू प्राप्त हो॥१७॥

    भावार्थ

    जैसे शूरवीर पुरुषधर्मयुद्ध में अपने को बलिदान करके संसार में शान्ति स्थापित करते हैं, वैसे हीमनुष्यों को दुष्कर्मियों के दण्ड देने में सदा उद्यत रहना चाहिये ॥१७॥

    टिप्पणी

    १७−(ये)वीराः (युध्यन्ते) शस्त्राणि संप्रहरन्ति (प्रधनेषु) संग्रामेषु (शूरासः) शूराःपराक्रमिणः (ये) (तनूत्यजः) तनु विस्तारे तन उपकारे च-ऊ+त्यज हानौ दानेच-क्विप्। शरीराणां त्यक्तारः। उपकारस्य दातारः (ये) (वा) चार्थे (सहस्रदक्षिणाः) सहस्राणि दक्षिणाः प्रतिष्ठापदानि दत्तानि यैस्ते। अन्यत्पूर्ववत्-म० १४ ॥

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    विषय

    योद्धा व दाता

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (शूरास:) = शत्रुओं को शीर्ण करनेवाले वीर (प्रधनेषु) = [प्रकीर्णानि धनानि अस्मिन्] प्रकृष्ट धनों की प्राप्ति के साधनभूत संग्ग्रामों में (युध्यन्ते) = युद्ध करते हैं और (ये) = जो इन संग्रामों में (तनूत्यजः) = शरीरों को छोड़ने के लिए उद्यत होते हैं (वा) = अथवा (ये) = जो पितर (सहस्त्रदक्षिण:) = हज़ारों का दान देनेवाले हैं, (तान् चित् एव) = उन पितरों को ही निश्चय से यह (अपिगच्छतात्) = प्राप्त हो।

    भावार्थ

    बीर योद्धाओं व दानवीरों के सम्पर्क में हम भी संग्राम से मुख न मोड़नेवाले वीर व दानवीर बनें।

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    भाषार्थ

    (ये) जो लोग (प्रधनेषु) धर्मयुद्धों में (युध्यन्ते) युद्ध करते हैं, (ये) जो (शूरासः) शूरवीर इन धर्मयुद्धों में (तनूत्यजः) शरीर त्याग करते हैं, (वा) या (ये) जो (सहस्रदक्षिणाः) हजारों की दक्षिणाएं देनेवाले यजमान हैं, (तान् चिद एव) उन्हें ही हे सद्गृहस्थ ! (अपि गच्छतात्) तू शिक्षार्थ प्राप्त हुआ कर।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Those brave who fight to the end in battles, who give up even their life of body for a cause, and those who give in charity a thousand ways, to those, O soul, you too go and join, the spirit of life flows universally.

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    Translation

    They who fight in the contests, who are self-sacrificing heroes, or who give thousand-fold sacrificial gifts, unto them do thou go. [Also Rg.X.154.3]

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    Translation

    O Man, you also go those elders who as heroes fight in the tremendous battle and are ready to sacrifice their lives and those who give thousands in remuneration of Yajna-priests.

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    Translation

    O man, go to those heroes who fight in battles, and sacrifice their lives for their country,-and who give away thousands in charity! and receive instruction from them.

    Footnote

    See Rig, 10-154-3

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(ये)वीराः (युध्यन्ते) शस्त्राणि संप्रहरन्ति (प्रधनेषु) संग्रामेषु (शूरासः) शूराःपराक्रमिणः (ये) (तनूत्यजः) तनु विस्तारे तन उपकारे च-ऊ+त्यज हानौ दानेच-क्विप्। शरीराणां त्यक्तारः। उपकारस्य दातारः (ये) (वा) चार्थे (सहस्रदक्षिणाः) सहस्राणि दक्षिणाः प्रतिष्ठापदानि दत्तानि यैस्ते। अन्यत्पूर्ववत्-म० १४ ॥

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