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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 2/ मन्त्र 47
    ऋषिः - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
    1

    ये अग्र॑वःशशमा॒नाः प॑रे॒युर्हि॒त्वा द्वेषां॒स्यन॑पत्यवन्तः। ते द्यामु॒दित्या॑विदन्तलो॒कं नाक॑स्य पृ॒ष्ठे अधि॒ दीध्या॑नाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । अग्र॑व: । श॒श॒मा॒ना: । प॒रा॒ऽई॒यु: । हि॒त्वा । द्वेषां॑सि । अन॑पत्यऽवन्त: । ते । द्याम् । उ॒त्ऽइत्य॑ । अ॒वि॒द॒न्त॒ । लो॒कम् । नाक॑स्य । पृ॒ष्ठे । अधि॑ । दीध्याना॑: ॥२.४७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये अग्रवःशशमानाः परेयुर्हित्वा द्वेषांस्यनपत्यवन्तः। ते द्यामुदित्याविदन्तलोकं नाकस्य पृष्ठे अधि दीध्यानाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । अग्रव: । शशमाना: । पराऽईयु: । हित्वा । द्वेषांसि । अनपत्यऽवन्त: । ते । द्याम् । उत्ऽइत्य । अविदन्त । लोकम् । नाकस्य । पृष्ठे । अधि । दीध्याना: ॥२.४७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 2; मन्त्र » 47
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    पितरों के गुणों का उपदेश।

    पदार्थ

    (ये) जो (अग्रवः) आगेचलनेवाले, (शशमानाः) उद्योगी (अनपत्यवन्तः) अनैश्वर्य [दरिद्रता] न रखनेवालेपुरुष (द्वेषांसि) द्वेषों को (हित्वा) छोड़कर (परेयुः) ऊँचे गये हैं। (ते) उन (दीध्यानाः) प्रकाशमान लोगों ने (द्याम्) प्रकाशमान विद्या को (उदित्य) उत्तमतासे प्राप्त करके (नाकस्य) महासुख के (पृष्ठे) उपरि भाग में (लोकम्) स्थान (अधि)अधिकारपूर्वक (अविदन्त) पाया है ॥४७॥

    भावार्थ

    विद्वान् उद्योगीमहापुरुष ही पक्षपात छोड़ विद्या प्राप्त करके मोक्षसुख भोगते हैं ॥४७॥

    टिप्पणी

    ४७−(ये)विद्वांसः (अग्रवः) मीपीभ्यां रुः। उ० ४।१०१। अग गतौ रु प्रत्ययः। अग्रगामिनः (शशमानाः) शश प्लुतगतौ−चानश्। प्लुतगमनशीलाः। उद्योगिनः (परेयुः) पराप्राधान्येन गताः (हित्वा) त्यक्त्वा (द्वेषांसि) विरोधान् (अनपत्यवन्तः)अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। द्विनञ्पूर्वात् पत ऐश्वर्ये-यक्।पत्यतेरैश्वर्यकर्मा-निघ० २।२१। अनैश्वर्यरहिताः। परमैश्वर्यवन्तः (ते) (द्याम्)प्रकाशमानां विद्याम् (उदित्य) उत्तमतया प्राप्य (अविदन्त) विद्लृ लाभे-लुङ्।अलभन्त (लोकम्) स्थानम् (नाकस्य) महासुखस्य (दीध्यानाः) दीधीङ्दीप्तिदेवनयोः-शानच्। दीप्यमानाः ॥

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    विषय

    'सुखमय दीप्त' जीवन

    पदार्थ

    १. (ये) = जो (अग्रवः) = अग्नगतिवाले, अग्नु [ummarried] गृहस्थ में अनासक्त [अविवाहित], (शशमानाः) [शंसमानाः] = प्रभु-स्तवन करते हुए अथवा [शश प्लुतगती] प्लुतगति से कर्तव्यकों को करते हुए (द्वेषांसि हित्वा) = सब प्रकार के द्वेषभावों को छोड़कर (अनपत्यवन्तः) = सन्तानों के चक्कर में न पड़े हुए. अथवा ऐश्वर्यशाली [पत्यते एश्वर्यकर्मण:]-ज्ञान के ऐश्वर्य से सम्पन्न पुरुष (परयः) = [परा ईयुः] सब दुरितों से दूर गतिवाले होते हैं। (ते) = वे (द्याम् उत् इत्य) = पृथिवीलोक से अन्तरिक्ष में और अन्तरिक्ष से ऊपर उठकर धुलोक में (लोकम् अविदन्त) = प्रभु के प्रकाश को प्राप्त करते है-ब्रह्मलोक को प्राप्त करते हैं 'दिवो नाकस्य पृष्ठात् स्वज्योतिरगामहम्'। २. ये व्यक्ति नाकस्य पृष्ठे स्वर्गलोक के पृष्ठ पर (अधिदीध्याना:) = आधिक्येन दीप्त होते हैं। ये सुखमय व दीतजीवनवाले होते हैं। वस्तुतः प्रभु की दीप्ति से इनका जीवन दीस बनता है।

    भावार्थ

    हम अग्रगतिवाले, प्रभु-स्तवन की वृत्तिवाले, द्वेषशून्य, ज्ञानेश्वर्य पूर्ण बनकर प्रभु के प्रकाश को देखनेवाले बनें तभी हमारा जीवन सुखमय व दीप्त होगा।

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    भाषार्थ

    (ये) जो (अग्रवः) अविवाहित ब्रह्मचारी (द्वेषांसि हित्वा) राग-द्वेष छोड़कर, (अनपत्यवन्तः) विना सन्तानों के, (शशमानाः) शश=खरगोश के सदृश मानों प्लुतियां लगाते हुए (परेयुः) सांसारिक व्यवहारों से परे चले गए हैं, (ते) वे (द्याम्) द्युलोक को (उदित्य) प्राप्त कर, और (नाकस्य) दुःखों से दूर करनेवाले सहस्रार-चक्र की (पृष्ठे अधि) पीठ पर अधिकृत होकर (दीध्यानाः) ध्यान लगाए हुए, (लोकम्) आलोकमय परमेश्वर को (अविदन्त) पा लेते हैं।

    टिप्पणी

    [अग्रवः=जनियन्ति नौ अग्रवः (अथ० १४।२।७२); अर्थात् "अग्रु" लोग जाया चाहते है। अथवा आध्यात्मिक जीवन में "आगे बढ़नेवाले”। द्याम् = सिर। शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत" (यजु० ३१।१२) तथा “दिवं यश्चक्रे मूर्धानम्" (अथर्व० १०।७।३२)।]

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Victory, Freedom and Security

    Meaning

    Those pioneers of peace and enlightenment, who were free from the pitfalls of ordinary humanity, gave up hate and enmity and rose to the light of heaven, they all, shining with the light of divinity, attained to the top of the regions of bliss.

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    Translation

    They that departed unmarried (but) assiduous abandoning hatreds, having no progeny they, going up to heaven, have - found a place, (they) shining upon the back of the firmament.

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    Translation

    May those elders who are first in good works, who are praised but are without off-spring and who leaving all sort of aversions and considering utility of life, walk in the life unattached with the worldly luster, attaining enlightenment reach the state of happiness.

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    Translation

    The enterprising, laborious people, free from poverty, renouncing hatred have advanced in life. Such illustrious persons, acquiring knowledge, have rightly secured a place in final beatitude.

    Footnote

    Final beatitude: Salvation, Moksha.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ४७−(ये)विद्वांसः (अग्रवः) मीपीभ्यां रुः। उ० ४।१०१। अग गतौ रु प्रत्ययः। अग्रगामिनः (शशमानाः) शश प्लुतगतौ−चानश्। प्लुतगमनशीलाः। उद्योगिनः (परेयुः) पराप्राधान्येन गताः (हित्वा) त्यक्त्वा (द्वेषांसि) विरोधान् (अनपत्यवन्तः)अघ्न्यादयश्च। उ० ४।११२। द्विनञ्पूर्वात् पत ऐश्वर्ये-यक्।पत्यतेरैश्वर्यकर्मा-निघ० २।२१। अनैश्वर्यरहिताः। परमैश्वर्यवन्तः (ते) (द्याम्)प्रकाशमानां विद्याम् (उदित्य) उत्तमतया प्राप्य (अविदन्त) विद्लृ लाभे-लुङ्।अलभन्त (लोकम्) स्थानम् (नाकस्य) महासुखस्य (दीध्यानाः) दीधीङ्दीप्तिदेवनयोः-शानच्। दीप्यमानाः ॥

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