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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 14
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    ऋ॒चा कु॒म्भ्यधि॑हि॒तार्त्वि॑ज्येन॒ प्रेषि॑ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒चा । कु॒म्भी । अधि॑ऽहिता । आर्त्वि॑ज्येन । प्रऽइ॑षिता ॥३.१४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋचा कुम्भ्यधिहितार्त्विज्येन प्रेषिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋचा । कुम्भी । अधिऽहिता । आर्त्विज्येन । प्रऽइषिता ॥३.१४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।

    पदार्थ

    (कुम्भी) कुम्भी [छोटा पात्र] (ऋचा) वेदवाणी के साथ (अधिहिता) ऊपर चढ़ाई गई और (आर्त्विज्येन) ऋत्विजों [सब ऋतुओं में यज्ञ करनेवालों] के कर्म से (प्रेषिता) भेजी गई है ॥१४॥

    भावार्थ

    जैसे जल आदि के लिये कुम्भी उपकारी होती है, वैसे ही वेदवाणी विद्वानों द्वारा प्रचरित होकर हित करती है ॥१४॥

    टिप्पणी

    १४−(ऋचा) ऋग् वाङ्नाम-निघ० १।११। स्तुत्या वेदवाण्या सह (कुम्भी) जलादिलघुपात्रम्। उखा (अधिहिता) उपरि स्थापिता (आर्त्विज्येन) गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च। पा० ५।१।१२४। ऋत्विज्−ष्यञ्। ऋत्विजां कर्मणा (प्रेषिता) प्रेरिता ॥

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    विषय

    कुम्भी का अग्नि पर स्थापन

    पदार्थ

    १. (कुम्भी) = ब्रह्मौदन के पाचन की साधनभूत 'लोकरूप ढक्कनबाली पृथिवीरूप कुम्भी' (ऋचा अधिहिता) = ऋग्वेद के मन्त्रों से अग्नि के ऊपर स्थापित होती है। (आर्त्विज्येन) = [ऋत्विजः अध्वर्यवः] ऋत्विक्सम्बन्धी कर्मों के प्रतिपादक यजुर्वेद से (प्रेषिता) = अग्नि के प्रति भेजी जाती है। (ब्रह्मणा परिगृहीता) = आथर्वण ब्रह्मवेद से यह परितः धारित होती है और (साम्ना पढूंढा) = साममन्त्रों से अंगारों से परिवेष्टित की जाती है। २. उस समय (बृहत्) = बृहत्साम (आयवनम्) = उदक में प्रक्षिप्त तण्डुलों का मिश्रणसाधन काठ होता है और (रथन्तरम्) = रथन्तरसाम (दर्वि:) = ओदन के उद्धरण की साधनभूत कड़छी होती है।

    भावार्थ

    इस ब्रह्मौदन का पाचन 'ऋग, यजुः, साम व अथर्व' मन्त्रों से होता है तथा 'बृहत् रथन्तर' आदि साम इस ओदन-पाचन के साधन बनते हैं।

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    भाषार्थ

    (कुम्भी) ओदन के पाक के लिए हण्डिया (ऋचा) ऋग्वेद द्वारा (अधिहिता) अग्नि पर स्थापित की है, (आर्त्विज्येन), अध्वर्यु-ऋत्विक् सम्बन्धि कर्म के प्रतिपादक यजुर्वेद द्वारा (प्रेषिता) अग्नि के प्रति प्रेषित की गई है, भेजी गई है ॥१४॥

    टिप्पणी

    [मन्त्र में ओदन-परिपाक के ४ प्रक्रमों का वर्णन हुआ है और इन प्रक्रमों को चतुर्वेदों में प्रोक्त विधि द्वारा, या चतुर्वेदों के तत्सम्बन्धी मन्त्रों का उच्चारण कर परिपाक करने का विधान मन्त्र १४, १५ में हुआ है। प्रत्येक शुभकर्म, मन्त्रोच्चारण पूर्वक, तथा वेदोक्त-विधि द्वारा करने की प्रेरणा, इन दो मन्त्रों द्वारा हुई है। यह वर्णन पाकशाला सम्बन्धी ओदन के सम्बन्ध में हुआ है। परमेश्वरोदन के सम्बन्ध में, ज्ञानाग्नि पर परमेश्वरीय भावनाओं का परिपाक करना चाहिये, और वह परिपाक वेदों के प्रतिपादन के अनुसार होना चाहिये। या चारों वेदों के विषयों अर्थात् ज्ञान, कर्म, उपासना, तथा विज्ञान पूर्वक होना चाहिये। परमेश्वरोदन के परिपक्व करने के लिए कुम्भी है शरीर, तथा शरीरगत इन्द्रियां, मन, बुद्धि और आत्मा]

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    विषय

    विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।

    भावार्थ

    (ऋचा कुम्भी अधिहिता) ऋग्वेद द्वारा पूर्वोक्क डेगची, आग पर रखदी गई और (आर्त्विज्येन प्रेषिता) यजुर्वेद द्वारा आग से गरम की।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    The cooking pan is placed on the fire by the yajna-performer with the chant of Rks...

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    Translation

    With sacred verse (rca) is the vessel put on, with priesthood sent forth;

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    Translation

    The cauldron is put on the fire and has been shaken by Yajurveda.

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    Translation

    The cauldron has been placed on fire through the Rigveda, and heated through the Yajurveda.

    Footnote

    Just as the cauldron cooks food for men, so the teachings of the Rigveda and Yajurveda elevate our souls.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(ऋचा) ऋग् वाङ्नाम-निघ० १।११। स्तुत्या वेदवाण्या सह (कुम्भी) जलादिलघुपात्रम्। उखा (अधिहिता) उपरि स्थापिता (आर्त्विज्येन) गुणवचनब्राह्मणादिभ्यः कर्मणि च। पा० ५।१।१२४। ऋत्विज्−ष्यञ्। ऋत्विजां कर्मणा (प्रेषिता) प्रेरिता ॥

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