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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 8
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - साम्न्यनुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    त्रपु॒ भस्म॒ हरि॑तं॒ वर्णः॒ पुष्क॑रमस्य ग॒न्धः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रपु॑ । भस्म॑ । हरि॑तम् । वर्ण॑: । पुष्क॑रम् । अ॒स्य॒ । ग॒न्ध: ॥३.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रपु भस्म हरितं वर्णः पुष्करमस्य गन्धः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रपु । भस्म । हरितम् । वर्ण: । पुष्करम् । अस्य । गन्ध: ॥३.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 8
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।

    पदार्थ

    (त्रपु) सीसा वा राँगा (भस्म) भस्म [उसकी राख समान], (हरितम्) सुवर्ण (वर्णः) [उसका] रङ्ग [समान] और (पुष्करम्) कमल का फूल (अस्य) इसका (गन्धः) गन्ध [समान] हैं ॥८॥

    भावार्थ

    सीसा सुवर्ण और कमल आदि वस्तु परमेश्वर से उत्पन्न हैं ॥८॥

    टिप्पणी

    ८−(त्रपु) शॄस्वृस्निहित्रप्यसि०। उ० १।१०। त्रपु लज्जायाम्-उ। अग्निं प्राप्य यत् त्रपते लज्जितमिव भवतीति तत् त्रपु सीसकं रोगं वा (भस्म) भस दीप्तौ-मनिन्। दग्धगोमयादिविकारः (हरितम्) सुवर्णम् (वर्णः) शुक्लादिरूपम् (पुष्करम्) कमलपुष्पम् (अस्य) ईश्वरस्य (गन्धः) घ्राणग्राह्यो गुणः ॥

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    विषय

    धातुएँ व कृषिसम्बद्ध पदार्थ

    पदार्थ

    १. (अस्य) = इस ब्रह्मौदन के विराट् शरीर के (श्यामम् अयः) = काले वर्ण का लोहधातु (मांसानि) = मांस स्थानापन्न है। (लोहितम्) = [अयः] लालवर्ण के ताम्र आदि धातु (अस्य लोहितम्) = इसका रुधिर ही है। (त्रपु) = सीसा (भस्म) = ओदनपाक के अनन्तर रहनेवाली राख ही है। (हरितम्) = मनोहारिवर्णवाला हेम [सोना] इसका (वर्ण:) = वर्ण है। (पुष्करम्) = कमल (अस्य गन्धः) = इस ओदन का गन्ध है। २. (खल:) = व्रीहि आदि धान्यों का पलाल से पृथक् करने का स्थान (पात्रम्) = यह ओदन का पात्र है। (स्फ्यौ) = दोनों 'स्पय' नामक यज्ञसाधन [A sword shaped implement used in sacrifices] इसके (अंसौ) = कैंधे हैं। (ईषे) = शकट-सम्बन्धी दण्ड इसके (अनूक्ये) = कन्धे व मध्यदेह के संधि-स्थल हैं, पृष्ठास्थिविशेष हैं। (जत्रव:) = जोत इसकी (आन्त्राणि) = आते हैं, (वरत्रा:) = रज्जुएँ (गुदा:) = गुदा स्थानापन्न हैं।

    भावार्थ

    वेद में जहाँ 'लोहा, तांबा, सीसा, सोना' आदि धातुओं के वर्णन के साथ कमल आदि पुष्पों का वर्णन उपलभ्य है, वहाँ कृषक के साथ सम्बद्ध 'खल, स्फ्य, ईषा, जत्र, वरत्र' आदि वस्तुओं का भी प्रतिपादन है।

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    भाषार्थ

    (त्रपु) सीसा (भस्म) भस्मस्थानी है, (हरितम्) हेम अर्थात् सुवर्ण (वर्णः) पीत वर्ण स्थानी है, (पुष्करम्) कमल (अस्य) इस का (गन्धः) गन्ध स्थानी है।

    टिप्पणी

    [त्रपु काला सा होता है, ओदन पाकानन्तर बची भस्म भी काली सी होती है। केसर का पुट देकर ओदन का निखरा पीत वर्ण सुवर्ण के पीतवर्ण के सदृश होता है। तथा इसे इस प्रकार पकाना चाहिये कि कमल के गन्ध के सदृश ओदन का गन्ध हो जाय। हरितम्= हेम (सायण)। हरित् = yellow (आप्टे)। त्रपु, हरित और पुष्कर का सम्बन्ध ओदन-ब्रह्म के साथ है और वर्ण तथा गन्ध का सम्बन्ध कृष्योदन के साथ है। यह परस्पर प्रतिरूपता ओदन-ब्रह्म तथा ओदन कृषि में दर्शाई है]।

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    विषय

    विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।

    भावार्थ

    (त्रपु = भस्म) टीन, सीसा आदि इसका ‘भस्म’ है। (हरितम् वर्णः) पीला सुवर्ण आदि धातु इसका (वर्णः) उत्तम वर्ण है। (पुष्करम् गन्धः) इसका गन्ध द्रव्य है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    Lead is its ash, gold is its colour, and the lotus flower is its fragrance.

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    Translation

    Tin (its) ash; greens (? haritam) (its) colour, blue lotus (puskara) its smell.

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    Translation

    Tin is like its ashes, gold is like its color and blue lotus flower like its scent.

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    Translation

    Tin is His ashes, gold His color, the blue lotus flower His scent.

    Footnote

    Tin, gold and lotus have been created by God.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ८−(त्रपु) शॄस्वृस्निहित्रप्यसि०। उ० १।१०। त्रपु लज्जायाम्-उ। अग्निं प्राप्य यत् त्रपते लज्जितमिव भवतीति तत् त्रपु सीसकं रोगं वा (भस्म) भस दीप्तौ-मनिन्। दग्धगोमयादिविकारः (हरितम्) सुवर्णम् (वर्णः) शुक्लादिरूपम् (पुष्करम्) कमलपुष्पम् (अस्य) ईश्वरस्य (गन्धः) घ्राणग्राह्यो गुणः ॥

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