अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 18
ऋषिः - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - आसुर्यनुष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
0
च॒रुं पञ्च॑बिलमु॒खं घ॒र्मो॒भीन्धे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठच॒रुम् । पञ्च॑ऽबिलम् । उ॒खम् । घ॒र्म: । अ॒भि । इ॒न्धे॒ ॥३.१८॥
स्वर रहित मन्त्र
चरुं पञ्चबिलमुखं घर्मोभीन्धे ॥
स्वर रहित पद पाठचरुम् । पञ्चऽबिलम् । उखम् । घर्म: । अभि । इन्धे ॥३.१८॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पदार्थ
(घर्मः) तपनेवाला सूर्य (पञ्चबिलम्) पाँच [पृथिवी, जल, तेज, वायु, आकाश रूप] बिल [छिद्र] वाले (चरुम्) पकाने के बर्तन, (उखम् अभि) हाँडी के आस-पास (इन्धे) जलता है ॥१८॥
भावार्थ
परमेश्वर के नियम से सूर्य अन्य लोकों को तपाकर आनन्द देता है ॥१८॥
टिप्पणी
१८−(चरुम्) पाकपात्रम् (पञ्चबिलम्) पञ्च पृथिवीजलतेजोवाय्वाकाशरूपाणि बिलानि च्छिद्राणि यस्मिन् तम् (उखम्) पुंस्त्वं छान्दसम्। उखां स्थालीम् (घर्मः) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। घृ दीप्तौ-मक्, गुणो निपातितः। आतपः। ग्रीष्मः। सूर्यः (अभि) प्रति (इन्धे) दीप्यते ॥
विषय
ब्रह्मौदन के पक्ता [पाचक]
पदार्थ
१. (ऋतव:) = ऋतुएँ (पक्तार:) = इस ओदन को पकानेवाली हैं। ज्ञानरूप ओदन का पाक काल के अधीन तो है ही। (आर्तवा:) = ऋतु-सम्बन्धी अहोरात्र (समिन्धते) = इसे सन्दीस करते हैं। ब्रह्मौदन के पकाने की साधनभूत ज्ञानाग्नि को दीप्त करते हैं। दिन-रात्रि में परिवर्तन के साथ ज्ञान में वृद्धि होती चलती है। २. (पञ्चबिलम् चरुम्) = 'गौ, अश्व, पुरुष, अजा, अवि' रूप पञ्चधा विभिन्न मुखवाली ब्रह्मौदन [चरु] के पाचन की साधनभूत स्थालों को (घर्म:) = यह आदित्य (अभीन्धे) = सम्यक् दीप्त करता है। ज्ञानाग्नि को दीस करने में सूर्य का प्रमुख स्थान है। सूर्य-किरणें केवल शरीर के स्वास्थ्य को ही नहीं बढ़ाती, बुद्धि को भी स्वस्थ करती हैं।
भावार्थ
ऋतुएँ, ऋतु-सम्बन्धी अहोरात्र तथा सूर्य-किरणें हमारी बुद्धि की वृद्धि का साधन बनती हैं।
भाषार्थ
(पञ्चविलम्) पांच बिलों अर्थात् छिद्रों वाली (चरुम् उखम्) ओदन परिपाकार्थ कुम्भी रूपी उषा को (घर्मः) काष्ठाग्नि की गर्मी (अभीन्धे) अभितप्त करती हैं। तथा भूतपञ्चकरूपी पांच बिलों वाली पृथिवी को (घर्मः) सूर्य की गर्मी (अभीन्धे) अभितप्त करती है।
टिप्पणी
[पृथिवी= कुम्भी (मन्त्र ११)। कृष्योदन के परिपाक के लिये कुम्भी अर्थात् देगची पर के ढकने में ५ छिद्र (blank) होने चाहिये, ऐसी विधि प्रतीत होती है। इस विधि द्वारा कुम्भी की भाप का नियन्त्रण होता रहता है।]
विषय
विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।
भावार्थ
(पञ्चबिलं चरुम् उखम्) पांच मुख वाले उस ओदन से भरे ‘चरु’ रूप ‘उख’ अर्थात् डेगची को (धर्मः अभि इन्धे) धर्म या घाम, सूर्य और भी प्रदीप्त करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Odana
Meaning
The heat of fire heats up the cauldron with five openings as the solar fire heats up the earth (mantra 11) for the ripening of grain.
Translation
Heat (gharma) burns upon the pot of five openings, the boiler (ukha).
Translation
The heat boils the rice of Odana kept in the caulabon which has five openings.
Translation
The Sun flames the cauldron, the cooking vessel which has got five openings.
Footnote
Five openings: Earth, Water, Fire, Air, Space. The grotesquely fantastic character of the hymn precludes attempts at serious explanation.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१८−(चरुम्) पाकपात्रम् (पञ्चबिलम्) पञ्च पृथिवीजलतेजोवाय्वाकाशरूपाणि बिलानि च्छिद्राणि यस्मिन् तम् (उखम्) पुंस्त्वं छान्दसम्। उखां स्थालीम् (घर्मः) घर्मग्रीष्मौ। उ० १।१४९। घृ दीप्तौ-मक्, गुणो निपातितः। आतपः। ग्रीष्मः। सूर्यः (अभि) प्रति (इन्धे) दीप्यते ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal