अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 22
ऋषिः - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
0
तं त्वौ॑द॒नस्य॑ पृच्छामि॒ यो अ॑स्य महि॒मा म॒हान् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । ओ॒द॒नस्य॑ । पृ॒च्छा॒मि॒ । य: । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मा । म॒हान् ॥३.२२॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वौदनस्य पृच्छामि यो अस्य महिमा महान् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । ओदनस्य । पृच्छामि । य: । अस्य । महिमा । महान् ॥३.२२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पदार्थ
[हे आचार्य !] (त्वा) तुझसे (ओदनस्य) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] की (तम्) उस [महिमा] को (पृच्छामि) मैं पूछता हूँ, (यः) जो (अस्य) उसकी (महान्) बड़ी (महिमा) महिमा है ॥२२॥
भावार्थ
जिस परमेश्वर के सामर्थ्य में सब लोक और सब दिशाएँ वर्तमान हैं, मनुष्य उसकी महिमा को खोज कर अपना सामर्थ्य बढ़ावे, म० २०-२२ ॥
टिप्पणी
२२−(तम्) महिमानम् (त्वा) त्वामाचार्यम् (ओदनस्य) सुखवर्षकस्यान्नरूपस्य परमेश्वरस्य (पृच्छामि) अहं जिज्ञासे (यः) (अस्य) परमेश्वरस्य (महिमा) महत्त्वम् (महान्) अधिकः ॥
विषय
न अल्पः, न अनुपसेचनः
पदार्थ
१. वेदज्ञान को यहाँ 'ब्रह्मौदन' कहा गया है। इस ब्रह्मौदन का सर्वमहत्त्वपूर्ण प्रतिपाद्य विषय प्रभु हैं, अत: एक आचार्य से जिज्ञासु [विद्यार्थी] कहता है कि (तं त्वा) = उन आपसे मैं (ओदनस्य) = ओदन के विषय में (पृच्छामि) = पूछता हूँ, (य:) = जो (अस्य) = इस ब्रह्मौदन की (महान् महिमा) = महनीय महिमा है। इसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रतिपाद्य विषय प्रभु के विषय में मैं आपसे पूछता हूँ। २. आचार्य उत्तर देते हुए कहते हैं कि (स:) = वह (य:) = जो (ओदनस्य) = इस ब्रह्मौदन की (महिमानम्) = महिमा को-सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रतिपाद्य विषय को (विद्यात्) = जाने वह (इति ब्रूयातू) = इतना ही कहे [कह सकता है] कि (न अल्पः) = वे प्रभु अल्प नहीं हैं-सर्वमहान् हैं, सर्वत्र व्याप्त है। (न अनुपसेचनः इति) = वे उपासक को आनन्द से सिक्त न करनेवाले नहीं। प्रभु उपासक को आनन्द से सर्वत: सिक्त कर देते हैं। उपासक एक अवर्णनीय आनन्द का अनुभव करता है। वह उस प्रभु के विषय में यही कह सकता है कि (इदं च किञ्चन इति) = वे प्रभु यह जो कुछ प्रत्यक्ष दिखता है, वह नहीं है। आँखों से दिखनेवाले व कानों से सुनाई पड़नेवाले व नासिका से प्राणीय, जिह्वा से आस्वादनीय व त्वचा से स्पर्शनीय' वे प्रभु नहीं है। वे 'यह नहीं है-यह नहीं हैं' यही उस ओदन की महान् महिमा के विषय में कहा जा सकता है। ३. (दाता) = ब्रह्मज्ञान देनेवाला (यावत्) = जितना (अभिमनस्येत) = उस ब्रह्म के विषय में मन से विचार करे, (तत् न अतिवदेत्) = उससे अधिक न कहे, अर्थात् ब्रह्म के विषय में मनन पर ही वह अधिक बल दे और जितना उसका मनन कर पाये उतना ही जिज्ञासु से कहे।
भावार्थ
वेदज्ञान का मुख्य प्रतिपाद्य विषय 'ब्रह्म' है। ब्रह्म के विषय में इतना ही कहा जा सकता है कि वह 'सर्वमहान्' हैं, आनन्ददाता हैं, इन्द्रियों का विषय नहीं हैं। हमें उसके मनन का ही प्रयत्न करना है। उसका शब्दों से ज्ञान देना कठिन है।
भाषार्थ
(त्वा) तुझ से (ओदनस्य) ओदन की (तम्) उस महिमा को (पृच्छामि) पूछता हूं; (यः) जो कि (अस्य) इस ओदन की (महान महिमा) महामहिमा है।
विषय
विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।
भावार्थ
(तम् ओदनं त्वापृच्छामि) हे विद्वन् गुरो ! मैं तुझ से उस ‘ओदन’ के विषय में प्रश्न करता हूं (यः अस्य महिमा महान्) और उसकी जो बड़ी भारी महिमा है वह भी बतला।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Odana
Meaning
Great as is the glory of this Odana, food for the spirit, of that I ask you. Pray enlighten me.
Translation
Thee here I ask of the rice-dish, what is its great greatness.
Translation
O Man of learning I ask you, the gory and magnitude of this Odana.
Translation
O preceptor, I ask thee of the glory of God, which is mighty!
Footnote
A yogi who knows the glory of God.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२२−(तम्) महिमानम् (त्वा) त्वामाचार्यम् (ओदनस्य) सुखवर्षकस्यान्नरूपस्य परमेश्वरस्य (पृच्छामि) अहं जिज्ञासे (यः) (अस्य) परमेश्वरस्य (महिमा) महत्त्वम् (महान्) अधिकः ॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal & Sri Ashish Joshi
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
Sri Amit Upadhyay
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal