अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 20
ऋषिः - अथर्वा
देवता - बार्हस्पत्यौदनः
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - ओदन सूक्त
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यस्मि॑न्त्समु॒द्रो द्यौर्भूमि॒स्त्रयो॑ऽवरप॒रं श्रि॒ताः ॥
स्वर सहित पद पाठयस्मि॑न् । स॒मु॒द्र: । द्यौ: । भूमि॑: । त्रय॑: । अ॒व॒र॒ऽप॒रम् । श्रि॒ता: ॥३.२०॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्मिन्त्समुद्रो द्यौर्भूमिस्त्रयोऽवरपरं श्रिताः ॥
स्वर रहित पद पाठयस्मिन् । समुद्र: । द्यौ: । भूमि: । त्रय: । अवरऽपरम् । श्रिता: ॥३.२०॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।
पदार्थ
(यस्मिन्) जिस [ओदन, परमेश्वर] में (द्यौः) सूर्य, (समुद्रः) अन्तरिक्ष और (भूमिः) भूमि, (त्रयः) तीनों [लोक] (अवरपरम्) नीचे-ऊपर (श्रिताः) ठहरे हैं ॥२०॥
भावार्थ
मन्त्र २२ के साथ ॥२०॥
टिप्पणी
२०−(यस्मिन्) ओदने, परमेश्वरे (समुद्रः) अ० १।१३।३। अन्तरिक्षम्-निघ० १।३। (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यः (भूमिः) (त्रयः) लोकाः (अवरपरम्) अधरोत्तरम् (श्रिताः) स्थिताः ॥
विषय
'सर्वलोकावाप्ति' रूप ओदनफल
पदार्थ
१. (ओदनेन) = इस ज्ञान के ओदन से [यज्ञैः प्राप्तव्यत्वेन उच्यमाना:-'वचे: विच्चिरूपम्'] (यज्ञवच:) = यज्ञों से प्राप्तव्यरूप में कहे गये (सर्वे लोका:) = सब लोक (समाप्या:) = प्राप्त करने योग्य होते हैं। ज्ञान-प्राप्ति से उन सब उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है, जो लोक कि यज्ञों से प्राप्तव्य हैं। २. यह ओदन वह है (यस्मिन्) = जिसमें (समुद्रः) = अन्तरिक्ष, (द्यौः भूमिः) = द्युलोक व पृथिवीलोक (त्रयः) = तीनों ही (अवरपरम्) = उत्तराधारभाव से-एक नीचे दूसरा ऊपर, इसप्रकार (श्रिता:) = स्थित हैं। इस ओदन में लोकत्रयी का ठीकरूप में ज्ञान दिया गया है। ३. यह ओदन वह है (यस्य) = जिसके जिससे प्रतिपादित-(उच्छिष्टे) = [ऊर्ध्व शिष्टे] प्रलय से भी बचे रहनेवाले प्रभु में (षट् अशीतयः) = [अश् व्यासौं]पूर्व पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, ऊपर-नीचे' इन छह दिशाओं में व्याप्तिवाले इनमें रहनेवाले (देवा:)= सूर्यचन्द्र आदि सब देव (अकल्पन्त) = सामर्थ्यवान् बनते हैं।
भावार्थ
ज्ञान से उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। इस वेदज्ञान में लोकत्रयो का ज्ञान उपलभ्य है। इसमें उस प्रभु का प्रतिपादन है, जिसके आधार से सूर्य आदि सब देव शक्तिशाली बनते हैं। [तस्य भासा सर्वमिदं विभाति]।
भाषार्थ
(यस्मिन्) जिस ओदन में (समुद्रः) अन्तरिक्ष, (द्यौः) द्युलोक, (भूमिः) और भूमि (त्रयः) ये तीन लोक (अवरपरम्) अधरोत्तरभाव में, अर्थात् परस्पर नीचे-ऊपर रूप में (श्रिताः) आश्रित हैं।
टिप्पणी
[समुद्रः अन्तरिक्षनाम (निघं० १।३)। जलमय पार्थिव-समुद्र तो भूमि के ही अन्तर्गत है। यह ओदन स्पष्टतया परमेश्वर है जिस के आश्रय में तीन लोक आश्रित हैं। इस से स्पष्ट प्रतीत होता है कि इन मन्त्रों में ओदन द्वारा परमेश्वर का ही मुख्य वर्णन अभिप्रेत हैं जो कि आध्यात्मिक भोजन है, और प्रासङ्गिकतया पाकशालीय ओदन का वर्णन भी हुआ है जो कि शारीरिक भोजन है। अभिप्राय यह पाकशालीय ओदन द्वारा शारीरिक पुष्टि के साथ-साथ आध्यात्मिक ओदन द्वारा आत्मा का भी पोषण करते रहना चाहिये]।
विषय
विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।
भावार्थ
(यस्मिन्) जिस ओदन में (समुद्रः द्यौः भूमिः) समुद्र, द्यौ और भूमि (त्रयः) तीनों (अवरपरं श्रिताः) एक दूसरे के ऊपर नीचे और उरे परे आश्रित हैं।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Odana
Meaning
It is that Brahmaudana, food for the spirit , in which are sustained the earth, heaven and the middle region of oceanic antariksha, the three worlds from the closest earth to the farthest high, which is the heaven of light.
Translation
In which (rice-dish) are set (srita), one below the other, the three, sea, sky, earth.
Translation
This is the Odana in which rest the three ocean, and the heaven and earth in order of being above and below.
Translation
In God rest in order the three regions, the atmosphere, heaven and earth.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२०−(यस्मिन्) ओदने, परमेश्वरे (समुद्रः) अ० १।१३।३। अन्तरिक्षम्-निघ० १।३। (द्यौः) प्रकाशमानः सूर्यः (भूमिः) (त्रयः) लोकाः (अवरपरम्) अधरोत्तरम् (श्रिताः) स्थिताः ॥
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