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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 54
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - द्विपदा भुरिक्साम्नी बृहती सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    स य ए॒वं वि॒दुष॑ उपद्र॒ष्टा भव॑ति प्रा॒णं रु॑णद्धि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । य: । ए॒वम् । वि॒दुष॑: । उ॒प॒ऽद्र॒ष्टा । भ॒व॒ति॒ । प्रा॒णम् । रु॒ण॒ध्दि॒ ॥५.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स य एवं विदुष उपद्रष्टा भवति प्राणं रुणद्धि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । य: । एवम् । विदुष: । उपऽद्रष्टा । भवति । प्राणम् । रुणध्दि ॥५.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 54
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो [मनुष्य] (एवम्) ऐसे [बड़े] (विदुषः) विद्वान् [सर्वज्ञ परमेश्वर] का (उपद्रष्टा) उपद्रष्टा [सूक्ष्मदर्शी वा साक्षात्कर्ता] (भवति) होता है, (सः) वह (प्राणम्) [अपने] प्राण [जीवन] को (रुणद्धि) रोकता है ॥५४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमात्मा के गुण, कर्म, स्वभाव को सूक्ष्म बुद्धि से साक्षात् करता है, वह जितेन्द्रिय होकर अपना जीवन और यश बढ़ाता है ॥५४॥

    टिप्पणी

    ५४−(सः) पुरुषः (यः) (एवम्) अनेन प्रकारेण (विदुषः) जानतः सर्वज्ञस्य परमेश्वरस्य (उपद्रष्टा) उपेत्य दर्शकः सूक्ष्मदर्शी। साक्षात्कर्ता (भवति) (प्राणम्) जीवनम् (रुणद्धि) आवृणोति। वर्धयतीत्यर्थः ॥

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    विषय

    प्राणरोध-सर्वज्यानि-शीघ्रमृत्यु

    पदार्थ

    १. (य:) = जो (एवम्) = इसप्रकार (विदुष:) = सृष्टितत्त्व के ज्ञाता का-ओदन के महत्त्व को समझनेवाले का (उपद्रष्टा) = आलोचक [निन्दक] (भवति) = होता है (सः) = वह (प्राणं रुणद्धि) = प्राणशक्ति का निरोध कर बैठता है-उसकी प्राणशक्ति क्षीण हो जाती है। २. (न च प्राणं रुणद्धि) = और केवल प्राणशक्ति का निरोध ही नहीं कर बैठता, वह (सर्वज्यानि जीयते) = सब प्रकार की हानि का भागी होता है-वह सर्वस्व खो बैठता है। (न च सर्वज्यानि जीयते) = न केवल सर्वस्व खो बैठता है, (अपितु प्राण:) = प्राण-जीवन (एनम्) = इसे (जरसः पुरा जहाति) = बुढ़ापे से पहले ही छोड़ जाता है, अर्थात् युवावस्था में ही समाप्त हो जाता है।

    भावार्थ

    जो ज्ञान के महत्त्व को न समझता हुआ ज्ञान-प्रवण नहीं होता, बल्कि ज्ञानियों की आलोचना ही करता है, वह प्राणशक्ति के हास-सर्वनाश व शीघ्रमृत्यु का भागी बनता है।

    गत सूक्तों में वर्णित ब्रह्मज्ञान में अपने को परिपक्व करनेवाला भार्गव' बनता है। यह उस 'स उ प्राणस्य प्राण: 'प्राणों के भी प्राण प्रभु से अपना मेल बनाकर 'वैदर्भि' [ otie, fasten, string together] कहलाता है। यह 'भार्गव वैदर्भि' 'प्राण' नाम से प्रभु का स्तवन करता है कि -

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    भाषार्थ

    (सः) वह (यः) जो पुरुष (एवं विदुषः) इस प्रकार के ब्रह्मज्ञ का, (उपद्रष्टा भवति) उस के समीप रह कर, उसका दर्शन ही करता रहता है [उस के द्वारा उपदिष्ट मार्ग के अनुसार जीवनचर्या नहीं करता] वह (प्राणम्) निज प्राण अर्थात् जीवन में (रुणद्धि) रुकावट डालता है।

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    विषय

    ब्रह्मज्ञ विद्वान् की निन्दा का बुरा परिणाम।

    भावार्थ

    (यः) जो (एवं) पूर्वोक्त प्रकार के (विदुषः) ब्रह्मरूप ओदन के रहस्य जानने वाले विद्वान् का (उपद्रष्टा) दोषदर्शी, निन्दक (भवति) होता है (सः) वह अपने ही (प्राणं) प्राण-बल का (रुणद्धि) विच्छेद करता है। अर्थात् अपने प्राण-बल का अन्त कर लेता है। (न च) और न केवल (प्राणं रुणद्धि) प्राण-बल का अन्त कर लेता है बल्कि (सर्वज्यानिम् जीयते) उसका सर्वनाश हो जाता है। (न च) और न केवल (सर्व ज्यानिं जीयते) सर्वनाश हो जाता है बल्कि (एनं) उसको (जरसः पुरा) बुढ़ापे के पहले ही (प्राणः जहाति) प्राण छोड़ देता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ओदनो देवता। ५० आसुरी अनुष्टुप्, ५१ आर्ची उष्णिक्, ५२ त्रिपदा भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्, ५३ आसुरीबृहती, ५४ द्विपदाभुरिक् साम्नी बृहती, ५५ साम्नी उष्णिक्, ५६ प्राजापत्या बृहती। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    One who becomes a close observer of the knower controls his pranic energy for divine realisation, but one who ignores and treats the knower with negligence and indifference violates his pranic energy.

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    Translation

    He who becomes the on-looker (upadrastr) of one knowing thus stops (his own) breath.

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    Translation

    One who finds fault with the man who is competent in knowing this Odana, stops his own life—breath.

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    Translation

    He who reviles him who knows the true nature of God, soon ends his vital breaths.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५४−(सः) पुरुषः (यः) (एवम्) अनेन प्रकारेण (विदुषः) जानतः सर्वज्ञस्य परमेश्वरस्य (उपद्रष्टा) उपेत्य दर्शकः सूक्ष्मदर्शी। साक्षात्कर्ता (भवति) (प्राणम्) जीवनम् (रुणद्धि) आवृणोति। वर्धयतीत्यर्थः ॥

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