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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 19
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    ओ॑द॒नेन॑ यज्ञव॒चः सर्वे॑ लो॒काः स॑मा॒प्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ओ॒द॒नेन॑ । य॒ज्ञ॒ऽव॒च: । सर्वे॑ । लो॒का: । स॒म्ऽआ॒प्या᳡: ॥३.१९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ओदनेन यज्ञवचः सर्वे लोकाः समाप्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ओदनेन । यज्ञऽवच: । सर्वे । लोका: । सम्ऽआप्या: ॥३.१९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 19
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।

    पदार्थ

    (ओदनेन) ओदन [सुख बरसानेवाले अन्नरूप परमेश्वर] द्वारा (यज्ञवचः) यज्ञों [श्रेष्ठकर्मों] से बताये गये (सर्वे) सब (लोकाः) स्थान (समाप्याः) यथावत् पाने योग्य हैं ॥१९॥

    भावार्थ

    परमेश्वर की आराधना से मनुष्य सब उत्तम-उत्तम अधिकार पा सकता है ॥१९॥

    टिप्पणी

    १९−(ओदनेन) अ० ९।५।१९। सुखवर्षकेण, अन्नरूपेण परमेश्वरेण (यज्ञवचः) वचेः कर्मणि-विच्। यज्ञैः श्रेष्ठकर्मभिः कथ्यमानाः (सर्वे) (लोकाः) भुवनानि (समाप्याः) सम्यक् प्रापणीयाः ॥

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    विषय

    'सर्वलोकावाप्ति' रूप ओदनफल

    पदार्थ

    १. (ओदनेन) = इस ज्ञान के ओदन से [यज्ञैः प्राप्तव्यत्वेन उच्यमाना:-'वचे: विच्चिरूपम्'] (यज्ञवच:) = यज्ञों से प्राप्तव्यरूप में कहे गये (सर्वे लोका:) = सब लोक (समाप्या:) = प्राप्त करने योग्य होते हैं। ज्ञान-प्राप्ति से उन सब उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है, जो लोक कि यज्ञों से प्राप्तव्य हैं। २. यह ओदन वह है (यस्मिन्) = जिसमें (समुद्रः) = अन्तरिक्ष, (द्यौः भूमिः) = द्युलोक व पृथिवीलोक (त्रयः) = तीनों ही (अवरपरम्) = उत्तराधारभाव से-एक नीचे दूसरा ऊपर, इसप्रकार (श्रिता:) = स्थित हैं। इस ओदन में लोकत्रयी का ठीकरूप में ज्ञान दिया गया है। ३. यह ओदन वह है (यस्य) = जिसके जिससे प्रतिपादित-(उच्छिष्टे) = [ऊर्ध्व शिष्टे] प्रलय से भी बचे रहनेवाले प्रभु में (षट् अशीतयः) = [अश् व्यासौं]पूर्व पश्चिम, उत्तर-दक्षिण, ऊपर-नीचे' इन छह दिशाओं में व्याप्तिवाले इनमें रहनेवाले (देवा:)= सूर्यचन्द्र आदि सब देव (अकल्पन्त) = सामर्थ्यवान् बनते हैं।

    भावार्थ

    ज्ञान से उत्तम लोकों की प्राप्ति होती है। इस वेदज्ञान में लोकत्रयो का ज्ञान उपलभ्य है। इसमें उस प्रभु का प्रतिपादन है, जिसके आधार से सूर्य आदि सब देव शक्तिशाली बनते हैं। [तस्य भासा सर्वमिदं विभाति]।

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    भाषार्थ

    (ओदनेन) ओदन द्वारा (यज्ञवचः) पञ्चमहायज्ञ आदि में प्रोक्त सब लोक प्राप्त हो जाते हैं।

    टिप्पणी

    [ओदन-ब्रह्म जब जीवन में परिपक्व हो जाता है, और उस द्वारा आत्मिक उन्नति हो जाती है, तो मानो उसे सब लोक प्राप्त हो गए हैं। देखो अथर्व० (९।६। पर्याय ४), इस में केवल अतिथि यज्ञ द्वारा सब प्रकार के यज्ञों के फलों की प्राप्ति कही है]।

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    विषय

    विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।

    भावार्थ

    ऐसे (ओदनेन) ‘ओदन’ से (यज्ञवचः) यज्ञों के फलस्वरूप कहे गये अथवा—(यज्ञवचः) यज्ञकर्त्ता को प्राप्त होने योग्य (सर्वे लोकाः) समस्त लोक (सम आप्याः) भली प्रकार प्राप्त हो जाते हैं। ‘यज्ञवचः’ इसके स्थान में पैप्पलाद संहिता का ‘यज्ञवतः’ पाठ अधिक शुद्ध और उचित जान पड़ता है।

    टिप्पणी

    ‘यशवतः सर्वे’ इति पैप्प० सं०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    Through preparation, maturation and experiential assimilation are realised all the facts, worlds and the Spirit of existence defined in the yajnic words of Vedic meditation.

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    Translation

    By the rice-dish of him who hath an offering (?) all worlds are to be obtained together.

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    Translation

    Through this Odana all the worlds or states described as attainable in result of the Yajna—performance are won.

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    Translation

    Through the grace of God are attainable all eminent positions, that result from noble deeds.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १९−(ओदनेन) अ० ९।५।१९। सुखवर्षकेण, अन्नरूपेण परमेश्वरेण (यज्ञवचः) वचेः कर्मणि-विच्। यज्ञैः श्रेष्ठकर्मभिः कथ्यमानाः (सर्वे) (लोकाः) भुवनानि (समाप्याः) सम्यक् प्रापणीयाः ॥

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