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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 17
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    ऋ॒तवः॑ प॒क्तार॑ आर्त॒वाः समि॑न्धते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ऋ॒तव॑: । प॒क्तार॑: । आ॒र्त॒वा: । सम् । इ॒न्ध॒ते॒ ॥३.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऋतवः पक्तार आर्तवाः समिन्धते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ऋतव: । पक्तार: । आर्तवा: । सम् । इन्धते ॥३.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 17
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।

    पदार्थ

    (ऋतवः) ऋतुएँ और (आर्तवाः) ऋतुओं के अवयव [महीने दिन राति आदि] (पक्तारः) पाककर्ता होकर [अग्नि को] (सम्) यथानियम (इन्धते) जलाते हैं ॥१७॥

    भावार्थ

    ऋतुएँ और महीने आदि ईश्वरनियम से संसार में पचन क्रिया करते हैं ॥१७॥

    टिप्पणी

    १७−(ऋतवः) वसन्तादयः (पक्तारः) पाचकाः (आर्तवाः) ऋतूनामवयवाः (सम्) सम्यक् (इन्धते) दीपयन्ति, अग्निं ज्वलयन्ति ॥

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    विषय

    ब्रह्मौदन के पक्ता [पाचक]

    पदार्थ

    १. (ऋतव:) = ऋतुएँ (पक्तार:) = इस ओदन को पकानेवाली हैं। ज्ञानरूप ओदन का पाक काल के अधीन तो है ही। (आर्तवा:) = ऋतु-सम्बन्धी अहोरात्र (समिन्धते) = इसे सन्दीस करते हैं। ब्रह्मौदन के पकाने की साधनभूत ज्ञानाग्नि को दीप्त करते हैं। दिन-रात्रि में परिवर्तन के साथ ज्ञान में वृद्धि होती चलती है। २. (पञ्चबिलम् चरुम्) = 'गौ, अश्व, पुरुष, अजा, अवि' रूप पञ्चधा विभिन्न मुखवाली ब्रह्मौदन [चरु] के पाचन की साधनभूत स्थालों को (घर्म:) = यह आदित्य (अभीन्धे) = सम्यक् दीप्त करता है। ज्ञानाग्नि को दीस करने में सूर्य का प्रमुख स्थान है। सूर्य-किरणें केवल शरीर के स्वास्थ्य को ही नहीं बढ़ाती, बुद्धि को भी स्वस्थ करती हैं।

    भावार्थ

    ऋतुएँ, ऋतु-सम्बन्धी अहोरात्र तथा सूर्य-किरणें हमारी बुद्धि की वृद्धि का साधन बनती हैं।

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    भाषार्थ

    (ऋतवः) ऋतुएं हैं (पक्तार:) ओदन के उपादान भूत व्रीहि को पकाने वालीं, (आर्तवा) तथा ऋतु-ऋतु में प्राप्त भिन्न-भिन्न वृक्षों के भिन्न भिन्न काष्ठ (समिन्धते) अग्नि को प्रदीप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    [परमेश्वर पक्ष में भिन्न-भिन्न ऋतु काल तथा ऋतु कालों में प्रतीयमान परमेश्वरीय भिन्न-भिन्न कृतियां परमेश्वर सम्बन्धी भावनाओं को प्रदीप्त करती हैं, और खेतों में व्रीहि को ऋतु काल पकाते हैं।]

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    विषय

    विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।

    भावार्थ

    ऐसे ‘ओदन’ के (पक्तारः) पकाने वाले (ऋतवः) ऋतुगण हैं। (आर्तवाः समिन्धते) ऋतु सम्बन्धी व काल के अंश अथवा उनमें उत्पन्न वायुएं ओदन के पाककारी अग्नि को प्रदीप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    Seasons are the cooks and seasonal fuel and fragrances, the food of fire.

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    Translation

    The seasons the cooks, they of the seasons kindle fire.

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    Translation

    Seasons are the cook of it and the day of the seasons kindle the fire.

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    Translation

    The seasons are the dressers, the days and nights kindle the fire.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १७−(ऋतवः) वसन्तादयः (पक्तारः) पाचकाः (आर्तवाः) ऋतूनामवयवाः (सम्) सम्यक् (इन्धते) दीपयन्ति, अग्निं ज्वलयन्ति ॥

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