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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 51
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - आर्च्युष्णिक् सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    ब्र॒ध्नलो॑को भवति ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपि॑ श्रयते॒ य ए॒वं वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्र॒ध्नऽलो॑क: । भ॒व॒ति॒ । ब्र॒ध्नस्य॑ । वि॒ष्टपि॑ । श्र॒य॒ते॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥५.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रध्नलोको भवति ब्रध्नस्य विष्टपि श्रयते य एवं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रध्नऽलोक: । भवति । ब्रध्नस्य । विष्टपि । श्रयते । य: । एवम् । वेद ॥५.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 51
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    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    वह [मनुष्य] (ब्रध्नलोकः) महान् [सबके नियामक परमेश्वर] में निवासवाला (भवति) होता है और [उसी] (ब्रध्नस्य) महान् [सर्वनियामक परमेश्वर] के (विष्टपि) सहारे में (श्रयते) आश्रय लेता है, (यः) जो [मनुष्य] (एवम्) ऐसा (वेद) जानता है ॥५१॥

    भावार्थ

    जो ज्ञानी पुरुष परमात्मा का आश्रय लेता है, वह पुरुषार्थी आनन्द पाता है ॥५१॥

    टिप्पणी

    ५१−(ब्रध्नलोकः) ब्रध्ने सर्वनियामके परमेश्वरे लोको निवासो यस्य सः (भवति) (ब्रध्नस्य) म० ५०। महतः सर्वनियामकस्य परमेश्वरस्य (विष्टपि) म० ५०। आश्रये (श्रयते) तिष्ठति (यः) मनुष्यः (एवम्) उक्तप्रकारेण (वेद) जानाति परमात्मानम् ॥

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    विषय

    बध्नस्य विष्टपम्

    पदार्थ

    १. (यत् एतत् ओदन:) = यह जो ब्रह्मौदन-सुखों से हमें सिक्त करनेवाला वेदज्ञान है, वह (वै) = निश्चय से (बध्नस्य) = इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने में बाँधनेवाले महान् प्रभु का [ब्रह्मा का] (विष्टपम्) = लोक है, अर्थात् यह वेदज्ञान हमें प्रभु की ओर ले-चलनेवाला है। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार इस ओदन के आधार को समझ लेता है, वह (बध्नलोकः भवति) = ब्रह्मलोकवाला होता है, अर्थात् (बध्नस्य विष्टपि) = उस सब ब्रह्माण्ड को अपने में बाँधनेवाले महान् प्रभु के लोक में (श्रयते) = आश्रय करता है।

    भावार्थ

    यह ब्रह्मौदन [वेदज्ञान] ब्रह्म का लोक है। वेद को समझनेवाला पुरुष ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है।

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    भाषार्थ

    (यः) जो उपासक (एवम्) इस प्रकार ब्रह्मौदन के स्वरूप को (वेद) जान लेता है उसे (ब्रध्नलोकः) महान् सूर्यलोक (भवति) प्राप्त हो जाता है, ओर (ब्रध्नस्य) महान् सूर्यलोक के (विष्टपि) प्रवेशस्थान परमेश्वर में (श्रयते) वह आश्रय पाता है।

    टिप्पणी

    [ब्रध्नः = महान् सूर्यः (उणा० ३।५, महर्षि दयानन्द); तथा sun (आप्टे)। विष्टपि= विशन्ति यत्रेति (उणा० ३।१४५; महर्षि दयानन्द)। ब्रध्नलोकः = "अथ यत्रैतदस्माच्छरीरादुत्क्रामत्यथैतैरेव रश्मिभिरूर्ध्वमाक्रमते स ओमिति वा होद्वा मीयते स यावत्क्षिप्येन्मनस्तावदादित्यं गच्छत्येतद्वै खलु लोकद्वारं विदुषां प्रपदनं निरोधोऽविदुषाम्‌॥" (छान्दोग्य उप० अध्या० ८। खण्ड ६। सन्दर्भ ५), अर्थात् जब इस शरीर से उत्क्रमण करता है, तब इन ही रश्मियों द्वारा ऊर्ध्वे की ओर आक्रमण करता है, वह "ओ३म्" ऐसा कहता है, ऊर्ध्व गति करता है, जितनी देर मन को सूर्य तक उत्क्षेपण में लगती उतने काल में वह आत्मा आदित्य को पहुंच जाता है। यह आदित्य ब्रह्मलोक का द्वार है, जिसे कि ब्रह्मवेत्ता लोग पाते हैं। यजुर्वेद में ब्रह्म को आदित्यनिष्ठ कहा है। यथा- "योऽसावादित्ये पुरुषः सोऽसावहम्। ओ३म् खं ब्रह्म (४०।१७) ब्रह्म है तो सर्वव्यापक, परन्तु वह सौरमण्डल के नियन्त्रण में केन्द्रिय शक्तिरूप आदित्य में स्थित हो कर सौरमण्डल का नियन्त्रण करता है। मन्त्र ५१ में सूर्य की स्थिति ब्रह्म में कही है। ब्रह्म, सूर्य में प्रविष्ट भी है, और सूर्य का आश्रय भी]।

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    विषय

    ब्रह्मज्ञ विद्वान् की निन्दा का बुरा परिणाम।

    भावार्थ

    (यः एवं वेद) जो इस प्रकार जान लेता है वह (ब्रध्नस्य) उस सबको बांधने वाले परम बन्धुरूप सूर्य के समान (त्रिष्टपि) परम तेजोमय लोक में (श्रयते) आश्रय पाता है। (ब्रध्नलोकः भवति) और स्वयं भी इसी प्रकार अन्यों को अपने आश्रय में बांधने वाला आश्रयभूत ‘लोक’ आत्मा हो जाता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ओदनो देवता। ५० आसुरी अनुष्टुप्, ५१ आर्ची उष्णिक्, ५२ त्रिपदा भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्, ५३ आसुरीबृहती, ५४ द्विपदाभुरिक् साम्नी बृहती, ५५ साम्नी उष्णिक्, ५६ प्राजापत्या बृहती। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    One that knows this rests on top of the presence of Brahma in Brahma-loka.

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    Translation

    He cometh to have the ruddy one for his world, he resorteth (Sri) to the summit of the ruddy one, who knoweth thus.

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    Translation

    He who knows like-wise he comes like the sun and get shelter in the place or body of light and happiness.

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    Translation

    He who thus knows God, resides in the Almighty, and takes shelter under Him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५१−(ब्रध्नलोकः) ब्रध्ने सर्वनियामके परमेश्वरे लोको निवासो यस्य सः (भवति) (ब्रध्नस्य) म० ५०। महतः सर्वनियामकस्य परमेश्वरस्य (विष्टपि) म० ५०। आश्रये (श्रयते) तिष्ठति (यः) मनुष्यः (एवम्) उक्तप्रकारेण (वेद) जानाति परमात्मानम् ॥

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