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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 15
    ऋषिः - अथर्वा देवता - बार्हस्पत्यौदनः छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    ब्रह्म॑णा॒ परि॑गृहीता॒ साम्ना॒ पर्यू॑ढा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ब्रह्म॑णा । परि॑ऽगृहिता । साम्ना॑ । परि॑ऽऊढा ॥३.१५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ब्रह्मणा परिगृहीता साम्ना पर्यूढा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ब्रह्मणा । परिऽगृहिता । साम्ना । परिऽऊढा ॥३.१५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 15
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    सृष्टि के पदार्थों के ज्ञान का उपदेश।

    पदार्थ

    (ब्रह्मणा) ब्रह्मा [वेदज्ञाता] करके (परिगृहीता) ग्रहण की गई वह [कुम्भी] (साम्ना) दुःखनाशक [मोक्ष ज्ञान] द्वारा (पर्यूढा) सब ओर ले जायी गयी है ॥१५॥

    भावार्थ

    ब्रह्मज्ञानी लोग वेदवाणी को ग्रहण करके मोक्ष प्राप्त करते हैं ॥१५॥

    टिप्पणी

    १५−(ब्रह्मणा) ब्रह्मवादिना ब्राह्मणेन (परिगृहीता) स्वीकृता (साम्ना) षो अन्तकर्मणि-मनिन्। दुःखनाशकेन मोक्षज्ञानेन (पर्यूढा) वह प्रापणे-क्त। सर्वतो नीता ॥

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    विषय

    कुम्भी का अग्नि पर स्थापन

    पदार्थ

    १. (कुम्भी) = ब्रह्मौदन के पाचन की साधनभूत 'लोकरूप ढक्कनबाली पृथिवीरूप कुम्भी' (ऋचा अधिहिता) = ऋग्वेद के मन्त्रों से अग्नि के ऊपर स्थापित होती है। (आर्त्विज्येन) = [ऋत्विजः अध्वर्यवः] ऋत्विक्सम्बन्धी कर्मों के प्रतिपादक यजुर्वेद से (प्रेषिता) = अग्नि के प्रति भेजी जाती है। (ब्रह्मणा परिगृहीता) = आथर्वण ब्रह्मवेद से यह परितः धारित होती है और (साम्ना पढूंढा) = साममन्त्रों से अंगारों से परिवेष्टित की जाती है। २. उस समय (बृहत्) = बृहत्साम (आयवनम्) = उदक में प्रक्षिप्त तण्डुलों का मिश्रणसाधन काठ होता है और (रथन्तरम्) = रथन्तरसाम (दर्वि:) = ओदन के उद्धरण की साधनभूत कड़छी होती है।

    भावार्थ

    इस ब्रह्मौदन का पाचन 'ऋग, यजुः, साम व अथर्व' मन्त्रों से होता है तथा 'बृहत् रथन्तर' आदि साम इस ओदन-पाचन के साधन बनते हैं।

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    भाषार्थ

    (ब्रह्मणा) ब्रह्मवेद अर्थात् अथर्ववेद द्वारा (परिगृहीता) अग्नि से उतार कर ग्रहण कर ली गई है, (साम्ना) सामवेद द्वारा (पर्यूढा) अङ्गारों द्वारा परिवेष्टित की गई है ||१५।।

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    विषय

    विराट् प्रजापति का बार्हस्पत्य ओदन रूप से वर्णन।

    भावार्थ

    (ब्रह्मणा) ब्रह्म वेद, अथर्व-वेद से (परिगृहीता) धारण की गई, और (साम्ना पर्यूढ़ा) सामवेद से परिवेष्टित है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। बार्हस्पत्यौदनो देवता। १, १४ आसुरीगायत्र्यौ, २ त्रिपदासमविषमा गायत्री, ३, ६, १० आसुरीपंक्तयः, ४, ८ साम्न्यनुष्टुभौ, ५, १३, १५ साम्न्युष्णिहः, ७, १९–२२ अनुष्टुभः, ९, १७, १८ अनुष्टुभः, ११ भुरिक् आर्चीअनुष्टुप्, १२ याजुषीजगती, १६, २३ आसुरीबृहत्यौ, २४ त्रिपदा प्रजापत्यावृहती, २६ आर्ची उष्णिक्, २७, २८ साम्नीबृहती, २९ भुरिक्, ३० याजुषी त्रिष्टुप् , ३१ अल्पशः पंक्तिरुत याजुषी। एकत्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    ...Covered with flames of Samans, it has been taken off with the hymns of Atharva-veda.

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    Translation

    With sacredness (brahman) seized about, with sacred chant (saman) carried about.

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    Translation

    This cauldron has been held by Atharva Veda and has been covered by Sama Veda.

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    Translation

    The cauldron is protected by the Atharvaveda, and solemnly directed by the Samaveda.

    Footnote

    The teachings of the Atharvaveda and Samaveda conduce to the good of humanity.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १५−(ब्रह्मणा) ब्रह्मवादिना ब्राह्मणेन (परिगृहीता) स्वीकृता (साम्ना) षो अन्तकर्मणि-मनिन्। दुःखनाशकेन मोक्षज्ञानेन (पर्यूढा) वह प्रापणे-क्त। सर्वतो नीता ॥

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