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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 3/ मन्त्र 50
    ऋषिः - अथर्वा देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - आसुर्यनुष्टुप् सूक्तम् - ओदन सूक्त
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    ए॒तद्वै ब्र॒ध्नस्य॑ वि॒ष्टपं॒ यदो॑द॒नः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒तत् । वै । ब्र॒ध्नस्य॑ । वि॒ष्टप॑म् । यत् । ओ॒द॒न: ॥५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतद्वै ब्रध्नस्य विष्टपं यदोदनः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एतत् । वै । ब्रध्नस्य । विष्टपम् । यत् । ओदन: ॥५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 3; मन्त्र » 50
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    ब्रह्मविद्या का उपदेश।

    पदार्थ

    (एतत्) यह (वै) ही (ब्रध्नस्य) महान् [पृथिवी आदि के आकर्षक सूर्य] का (विष्टपम्) आश्रय (यत्) यजनीय [पूजनीय ब्रह्म], (ओदनः) ओदन [सुख बरसानेवाला अन्नरूप परमेश्वर] है ॥५०॥

    भावार्थ

    परमात्मा के ही आश्रय अर्थात् धारण आकर्षण सामर्थ्य से सूर्य आदि लोक स्थित हैं ॥५०॥

    टिप्पणी

    ५०−(एतत्) सर्वत्र दृश्यमानम् (वै) एव (ब्रध्नस्य) अ० ७।२२।२। बन्ध बन्धने-नक् ब्रधादेशश्च। ब्रध्नो महन्नाम-निघ० ३।३। महतो बन्धकस्य पृथिव्यादिलोकानामाकर्षकस्य सूर्यस्य (विष्टपम्) अ० १०।१०।३१। वि+ष्टभि प्रतिबन्धे-क्विप्, भस्य पः। यद्वा, विश प्रवेशने-कप् तुडागमश्च। आश्रयः (यत्) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। यजेः-अदि, डित्। यजनीयं पूजनीयं ब्रह्म (ओदनः) अ० ९।५।१९। सुखवर्षकोऽन्नरूपः परमेश्वरः ॥

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    विषय

    बध्नस्य विष्टपम्

    पदार्थ

    १. (यत् एतत् ओदन:) = यह जो ब्रह्मौदन-सुखों से हमें सिक्त करनेवाला वेदज्ञान है, वह (वै) = निश्चय से (बध्नस्य) = इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने में बाँधनेवाले महान् प्रभु का [ब्रह्मा का] (विष्टपम्) = लोक है, अर्थात् यह वेदज्ञान हमें प्रभु की ओर ले-चलनेवाला है। २. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार इस ओदन के आधार को समझ लेता है, वह (बध्नलोकः भवति) = ब्रह्मलोकवाला होता है, अर्थात् (बध्नस्य विष्टपि) = उस सब ब्रह्माण्ड को अपने में बाँधनेवाले महान् प्रभु के लोक में (श्रयते) = आश्रय करता है।

    भावार्थ

    यह ब्रह्मौदन [वेदज्ञान] ब्रह्म का लोक है। वेद को समझनेवाला पुरुष ब्रह्मलोक को प्राप्त करता है।

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    भाषार्थ

    (यद्) जो कि (ओदनः) ओदन अर्थात् ब्रह्मौदन है, (एतद्) यह (वै) निश्चय से (ब्रध्नस्य) महान् सूर्य का (विष्टपम्) प्रवेश स्थान है।

    टिप्पणी

    [ब्रध्नस्य= ब्रध्नो महान् सूर्यः (उणा० ३।५, महर्षि दयानन्द)। ब्रध्न शब्द "बन्ध बन्धने” का रूप है। महान सूर्य ने ग्रह-उपग्रह आदि को अपने साथ आकर्षक द्वारा बान्धा हुआ है। विष्टपम् = विशन्ति यत्रेति (उणा० ३।१४५, महर्षि दयानन्द)। सूर्य तथा लोकलोकान्तर ब्रह्म में प्रविष्ट हैं, अतः ब्रह्म विष्टप है]।

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    विषय

    ब्रह्मज्ञ विद्वान् की निन्दा का बुरा परिणाम।

    भावार्थ

    (यत् ओदनः) जो पूर्व सूक्तों में ‘ओदन’ कहा गया है (एतत् वै) वह (ब्रध्नस्य विष्टपम्) सकल संसार को अपने भीतर बांधने वाला विष्टप = लोक, सबका आश्रय, विशेष रूप से तपनेहारा परम तेज है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अथर्वा ऋषिः। ओदनो देवता। ५० आसुरी अनुष्टुप्, ५१ आर्ची उष्णिक्, ५२ त्रिपदा भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्, ५३ आसुरीबृहती, ५४ द्विपदाभुरिक् साम्नी बृहती, ५५ साम्नी उष्णिक्, ५६ प्राजापत्या बृहती। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Odana

    Meaning

    This Brahmaudana is the summit gateway to the presence of Brahma.

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    Subject

    PARYAYA - III

    Translation

    This - namely, the rice-dish is indeed the summit (vistapa) of the ruddy one (bradhana).

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    Translation

    Whatever is this Odana, it is the whole of the earth, the sun and other great worlds.

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    Translation

    This Adorable God is the support of the mighty Sun.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५०−(एतत्) सर्वत्र दृश्यमानम् (वै) एव (ब्रध्नस्य) अ० ७।२२।२। बन्ध बन्धने-नक् ब्रधादेशश्च। ब्रध्नो महन्नाम-निघ० ३।३। महतो बन्धकस्य पृथिव्यादिलोकानामाकर्षकस्य सूर्यस्य (विष्टपम्) अ० १०।१०।३१। वि+ष्टभि प्रतिबन्धे-क्विप्, भस्य पः। यद्वा, विश प्रवेशने-कप् तुडागमश्च। आश्रयः (यत्) त्यजितनियजिभ्यो डित्। उ० १।१३२। यजेः-अदि, डित्। यजनीयं पूजनीयं ब्रह्म (ओदनः) अ० ९।५।१९। सुखवर्षकोऽन्नरूपः परमेश्वरः ॥

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